Thursday - 31 October 2024 - 2:31 AM

सुप्रीम कोर्ट के जज ने उमर के केस की सुनवाई करने से किया इनकार

न्यूज डेस्क

नेशनल कॉफ्रेंस के नेता व पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की बहन सारा अब्दुल्ला ने बीते सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में उमर अब्दुल्ला को पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत हिरासत में लिए जाने को चुनौती दी थी। इस मामले में नया मोड़ आ गया है। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश एम. एम. शांतानागौडर ने इस याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है।

न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति शांतानागौडर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की तीन न्यायाधीशों वाली पीठ के समक्ष सारा पायलट की याचिका सुनवाई के लिए आई थी। बुधवार को जब इस याचिका पर सुनवाई शुरु होने का समय आया तो न्यायमूर्ति शांतानागौडर ने कहा, ‘मैं मामले में शामिल नहीं हो रहा हूं।’

उन्होंने सुनवाई से खुद को अलग करने के लिए कोई विशिष्ट कारण नहीं बताया। फिलहाल अब इस याचिका पर सुनवाई गुरुवार को होगी।

मालूम हो कि 10 फरवरी को सारा अब्दुल्ला ने जम्मू कश्मीर जन सुरक्षा कानून, 1978 के तहत अपने भाई उमर अब्दुल्ला को नजरबंद किए जाने को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। उनकी याचिका में नजरबंदी के आदेश को गैरकानूनी बताते हुए कहा गया है कि इसमें बताई गईं वजहों के लिए पर्याप्त सामग्री और ऐसे विवरण का अभाव है जो इस तरह के आदेश के लिए जरूरी है। याचिका में उमर अब्दुल्ला को जन सुरक्षा कानून के तहत नजरबंद करने संबंधी पांच फरवरी का आदेश निरस्त करने का अनुरोध किया गया है।

गौरतलब है कि उमर अब्दुल्ला 5 अगस्त, 2019 से सीआरपीसी की धारा 107 के तहत हिरासत में थे। इस कानून के तहत, उमर की छह महीने की एहतियातन हिरासत अवधि गुरुवार यानी 5 फरवरी 2020 को खत्म होने वाली थी, लेकिन 5 जनवरी को सरकार ने जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर और महबूबा मुफ्ती के खिलाफ पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) लगा दिया है। इसके बाद उनकी हिरासत को 3 महीने से 1 साल तक बिना किसी ट्रायल के बढ़ाया जा सकता है।

उमर और महबूबा पर पीएसए लगाने को लेकर पूर्व गृह मंत्री व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने अपनी नाराजगी व्यक्त की थी। चिदंबरम ने ट्वीट कर कहा था कि दोनों नेताओं पर पीएसए के तहत मामला दर्ज होने को लेकर मैं हैरान हूं। आरोपों के बिना किसी पर कार्रवाई लोकतंत्र का सबसे घटिया कदम है। वहीं महबूबा मुफ्ती की बेटी ने भी ट्विटर पर मोदी सरकार पर निशाना साधा था।

पब्लिक सेफ्टी एक्ट क्या है?

पब्लिक सेफ्टी एक्ट राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के समान है जिसे सरकारें एहतियातन हिरासत में लेने के लिए इस्तेमाल करती रही हैं। पीएसए किसी व्यक्ति को सुरक्षा के लिहाज से खतरा मानते हुए एहतियातन हिरासत में लेने का अधिकार देता है।

इस कानून के तहत किसी स्थान पर जाने पर रोक लगाई जा सकती है। सरकार आदेश पारित कर किसी स्थान पर लोगों के जाने पर रोक लगा सकती है। इस कानून की धारा 23 के तहत इस अधिनियम में बीच-बीच में बदलाव किए जाने का प्रावधान भी है।

राज्य की सुरक्षा और कानून व्यवस्था के लिए खतरा समझते हुए किसी महिला या पुरुष को इस कानून के तहत हिरासत में लिया जा सकता है।

जैसा कि इसकी परिभाषा से स्पष्ट है हिरासत में लेना सुरक्षात्मक (निवारक) कदम है न कि दंडात्मक। पीएसए बिना किसी ट्रायल के किसी व्यक्ति को दो साल हिरासत में रखने की इजाजत देता है।

इसे डिविजनल कमिश्नर या जिलाधिकारी के प्रशासनिक आदेश पर ही अमल में लाया जा सकता है न कि पुलिस से आदेश पर।

पीएसए में हिरासत में लिए गए दोनों के पास एडवाइजरी बोर्ड के पास जाने का अधिकार भी है और उसे (बोर्ड को) आठ हफ्तों के भीतर इस पर रिपोर्ट सौंपनी होगी।

गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में पब्लिक सेफ्टी एक्ट शेख अब्दुल्लाह के शासनकाल में 8 अप्रैल 1978 को लागू किया गया था। उन्होंने इसे विधानसभा में पारित कराया था। इसके तहत 18 साल से अधिक उम्र के किसी भी व्यक्ति को हिरासत में लिया जा सकता है और उस पर बिना कोई मुकदमा चलाए उसे दो साल तक हिरासत में रखा जा सकता है।

हालांकि पहले यह उम्र सीमा 16 साल थी, जिसे 2012 में संशोधित कर 18 वर्ष कर दिया गया। 2018 में यह भी संशोधन किया गया कि जम्मू-कश्मीर के बाहर के भी किसी व्यक्ति को पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत हिरासत में लिया जा सकता है।

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