न्यूज़ डेस्क
सीएए को लेकर दायर की गई 140 से ज्यादा याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान सुप्रीमकोर्ट ने सीएए की प्रक्रिया पर तुरंत रोक लगाने से इंकार कर दिया हैं। साथ ही इस मामले को संवैधानिक पीठ के हवाले कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जवाब देने के लिए चार हफ़्तों का वक्त दिया है। इसके अलावा कोर्ट ने सुनवाई करते हुए असम, पूर्वोत्तर, उत्तर प्रदेश से जुड़ी याचिकाओं के लिए अलग कैटेगरी बनाई दी है।
अलग-अलग कैटेगरी में होगी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में सीएए पर दायर याचिकाओं को अलग-अलग कैटेगरी में बांट दिया है। इसके तहत असम, नॉर्थईस्ट के मसले पर अलग सुनवाई की जाएगी। वहीं, उत्तर प्रदेश में जो सीएए की प्रक्रिया को शुरू कर दिया गया है उसको लेकर भी अलग से सुनवाई की जाएगी। इसके अलावा अदालत ने सभी याचिकाओं की लिस्ट जोन के हिसाब से मांगी है, जो भी बची हुई याचिकाएं हैं उनपर केंद्र को नोटिस जारी किया जाएगा।
सीजीआई ने नहीं जारी किया कोई आदेश
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एस. ए. बोबडे ने कहा है कि हम अभी कोई भी आदेश जारी नहीं कर सकते हैं, क्योंकि काफी याचिकाओं को पूरी तरह से सुनना जरूरी है। अटॉर्नी जनरल ने अपील की है कि कोर्ट को आदेश जारी करना चाहिए कि अब कोई नई याचिका दायर नहीं होनी चाहिए। जबकि सुप्रीमकोर्ट में वकील वैद्यनाथन ने कहा है कि मुस्लिम और हिंदुओं में बाहर ऐसा डर है कि एनपीआर की प्रक्रिया होती है तो उनकी नागरिकता पर सवाल होगा। अभी एनपीआर को लेकर कोई साफ गाइडलाइंस नहीं हैं।
सुप्रीमकोर्ट के बाहर धरने पर बैठी महिलाएं
सुनवाई से पहले सुप्रीम कोर्ट के बाहर कुछ महिलाओं ने सीएए का विरोध भी किया। सुप्रीम कोर्ट के बाहर कुछ महिलाएं पोस्टर, बैनर लेकर पहुंचीं। हालांकि, कुछ समय के बाद उन्हें वहां से हटा दिया गया था। इस दौरान एक शख्स को हिरासत में लिए जाने की खबर है।
क्या है सीएए
केंद्र सरकार के द्वारा लाए गए सीएए के तहत बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से आने वाले जैन, हिंदू, सिख, पारसी, ईसाई और बौद्ध शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिलेगी। साल 2014 से पहले जो भी शरणार्थी भारत में आए होंगे, अगर वो छह साल से अधिक तक भारत में रुकते हैं तो उन्हें नागरिकता दी जाएगी। इस कानून में इन पड़ोसी देशों के मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया है।
क्यों हो रहा है विरोध?
इस मुद्दे को लेकर विपक्ष और कई संगठन लगातार विरोध कर रहे हैं और इसे संविधान विरोधी बता रहे हैं। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि सीएए के साथ एनआरसी को जोड़ देने के कारण ये कानून मुस्लिम विरोधी हो जाता है। वहीं, सुप्रीमकोर्ट में दायर की याचिकाओं में कहा गया कि भारत में धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। ये देश के संविधान का उल्लंघन हैं।
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इसलिए इस कानून को रद्द करके मुसलमानों को भी शामिल किया जाना चाहिए। साथ ही कई अन्य देश में भी लोग प्रताड़ित है उन्हें भी भारत में जगह मिलनी चाहिए।