राजीव ओझा
जेएनयू में पहले जोरदार पढ़ाई होती थी, अब लड़ाई होती है। जेएनयू जो पहले बहस, संवाद और वैचारिक वाद-विवाद के लिए जाना जाता था अब बलवा, हिंसा और फेक वीडियो के लिए जाना जाता है। जेएनयू में शुरू से ही वामपंथियों का बोलबाला था लेकिन कैम्पस में हिंसा का कोई स्थान नहीं था।
जेएनयू देश की टॉप यूनिवर्सिटी में से एक थी। धीरे-धीरे कैम्पस में वामपंथियों को दक्षिणपंथियों से चुनौती मिलने लगी। इसके साथ ही पढाई पीछे छूट गई और राजनीति सर चढ़ के बोलने लगी। लेकिन केंद्र में कांग्रेस राज जाते ही कैम्पस में राजनीति जोर पकड़ने लगी। यह राजनीति अब हिंसक संघर्ष में तब्दील होने लगी है। इसमें वामपंथियों या दक्षिण पंथियों में से किसी एक को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
लेफ्ट को जब राईट से चुनौती मिली तो संघर्ष तेज हो गया। अगर कुछ सालों तक यही चला तो जेएनयू की साख मिट्टी में मिल जाएगी। अब आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। दरअसल जेएनयू की लड़ाई वर्चस्व की लड़ाई है। यहाँ कोई देशद्रोही नहीं है, सब ठेकेदार हैं। उन्हें इससे कोई मतलब नहीं कि छात्रों और यूनिवर्सिटी का कितना नुकसान होता है, उन्हें सिर्फ अपनी राजनीति चमकाने से मतलब है। अब यूनिवर्सिटी की हिंसा को लेकर बिग बॉस के सीजन 13 के कलाकार, राजनीतिक विश्लेषक और प्रियंका वाड्रा के रिश्तेदार तहसीन पूनावाला ने दिल्ली पुलिस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इससे कुछ होने वाला नहीं। कांग्रेस ने कैम्पस हिंसा के खिलाफ कैंडल मार्च निकला। इसी तरह सन्डे की रात को भी पुलिस हेडक्वार्टर पर ढपली के साथ आजादी राग आलापा गया।
कैंडल मार्च और ढपली राग के साथ विरोध का अब उतना असर नहीं होता। दोनों पक्ष अपने अपने दावे और सबूत पेश कर रहे हैं। कोई वीडियो दिखा रहा कोई सोशल मीडिया पर आडियो शेयर कर रहा, कोई चैट के स्क्रीन शॉट दिखा रहा। इनमें क्या सच है क्या डॉक्टर्ड, पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता। जो जैसा दिखता वैसा होता नहीं। अब कैम्पस में घुसे नकाबपोशों की पहचान की कोशिश हो रही। वामपंथियों, एबीवीपी, एनएसयूई सब ने शिकायत दर्ज कराई है। वामपंथियों के साथ ओवैसी, कांग्रेस खडी है तो एबीवीपी के साथ बीजेपी और समान सोच वाले लोग हैं। जेएनयू में माहौल तभी से गर्माना शुरू हो गया था जब कई वर्षों बाद फीस में बढ़ोतरी की गई। सन्डे को हुए विवाद के जड़ में भी यही है। अब जेएनयू की अध्यक्ष और बीजेपी के सहयोगी दल जेडीयू ने वीसी को हटाने की मांग की है।
जेएनयू में फिलहाल शांत है। फीस बढ़ोतरी का विरोध करने वाले छात्रों का कहना है कि काई बार बुलाने पर भी पुलिस नहीं आई और जब नकाबपोश मवाली चले गए तब आई। अब पुलिस भी कैम्पस पर तैनात है। डरे स्टूडेंट घर जा रहे हैं। कैम्पस के आसपास धारा 144 लगी है।
धारा 144 जिससे बलवाइयों को बिलकुल डर नहीं लगता। धारा 144 लगाने के बाद भी कैम्पस में हिंसा का तांडव हुआ लेकिन एक भी बलवाई चौबीस घंटे बीतने के बाद भी गिरफ्तार नही किया जा सका। लेकिन पुलिस प्रशासन का कहना है की दोषियों को शीघ्र पकड़ लिया जायेगा। संभव है कुछ बाहरी लोग पकडे भी जाएँ। लेकिन इससे ख़ास फर्क नहीं पड़ेगा। फर्क तभी पड़ेगा जन जेएनयू की स्टूडेंट यूनियन किसी राजनितिक दल से न जुड़ कर छात्रों की नुमाइन्दगी करे। वह सिर्फ एक ख़ास तरह की सोच वाले छात्रों की ठेकेदार न बने। ऐसा होगा तो ठेकेदारों को उसी भाषा में चुनती मिलनी तय है। फीस वृद्धि का शांतिपूर्ण विरोध ठीक है लेकिन जो छात्र फीस देना और रजिस्ट्रेशन कराना चाहते हैं उस प्रक्रिया में बाधा डालना भी कानून हाथ में लेना ही है। जिसका जवाब सन्डे को नकाबपोशों ने हाथ में कानून लेकर दिया। उनको पकड़ना मुश्किल है।
हमलावरों के वीडयो और फोटो में सब के चेहरे ढके हुए हैं। एक तरफ एबीवीपी है तो दूसरी तरफ एनएसयूआई, वामपंथी और एसएफआई हैं। जेएनयू में पढाई की जगह जो हो रहा वह दुखद है। वीसी को हटाने या चंद इस्तीफों से भी बात नहीं बनेगी। जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी प्रशासन ने दावा किया है कि 3 जनवरी को कुछ नकाबपोश छात्र करीब 1 बजे सेंटर फॉर इंफार्मेशन सिस्टम के ऑफिस में जबरदस्ती घुस गए और वहां छात्रों ने जमकर हंगामा किया था।
जेएनयू प्रशासन ने आरोप लगाया कि छात्रों ने बिजली कनेक्शन भी काट दिए, सभी कर्मचारियों को जबरन बाहर निकाला और कार्यालय के सर्वर को बेकार कर दिया। जेएनयू में सेंटर फॉर इंफार्मेशन सिस्टम के ठप होने की वजह से पूरा रजिस्ट्रेशन प्रोसेस बाधित हो गया, जिससे छात्रों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। यूनिवर्सिटी ने कहा है कि वो उन छात्रों के खिलाफ सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई करेगा, जिन्होंने हजारों छात्रों का नुकसान किया है। दरअसल यही ठेकेदारी प्रथा है कैम्पस की। इसको खत्म किये बिना जेएनयू शांत होने वाला नहीं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)