उत्कर्ष सिन्हा
वैसे तो राजनीति में दल और घर बदलना कोई खास बात नहीं है लेकिन उपेक्षा का दंश राजनीति में बहुत कुछ करवाता है । ठीक ऐसा ही मामला 18 जनवरी को सामने आने वाला है जब यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खास सिपहसालार रहा शख्स समाजवादी पार्टी में शामिल होगा ।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जब राजनीति में सक्रिय हुए तो उनकी ताकत बनी थी हिन्दू युवा वाहिनी । 2002 में गठित हिन्दू युवा वाहिनी ने पूर्वाञ्चल के जिलों में योगी को एक बड़ा आधार दिया । फिलहाल यूपी की विधानसभा में भाजपा के विधायक डा राधा मोहन दास अग्रवाल को पहली बार भाजपा के शिव प्रताप शुक्ल के खिलाफ चुनाव भी योगी ने हिन्दू महासभा के टिकट पर ही लड़ाया था और भाजपा को लंबे समय बाद गोरखपुर में शिकस्त मिली थी । इस चुनाव में भी हिन्दू युवा वाहिनी के संगठन ने ही काम किया था ।
हिन्दू युवा वाहिनी के तत्कालीन प्रमुख सुनील सिंह को योगी का सबसे मजबूत सिपाहसालार माना जाता रहा । सुनील सिंह ने कम वक्त में ही आजमगढ़ से ले कर बहराईच तक हिन्दू युवा वाहिनी का विस्तार कर दिया । योगी आदित्यनाथ की कट्टर हिन्दुत्व वाले सख्त नेता की छवि भी इसी वाहिनी के कार्यकर्ताओं ने बनाई ।
हिन्दू युवा वाहिनी की ताकत इतनी बढ़ गई कि भारतीय जनता पार्टी भी गोरखपुर के आस पास के जिलों में योगी के दबाव में आ गई और कुछ वक्त के बाद ही योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बने । अपनी राजनीति के कई यहां मोड़ पर योगी ने हिन्दू युवा वाहिनी के संगठन और प्रभाव के जरीए ही भाजपा पर दबाव भी बनाया ।
लेकिन 2017 के विधानसभा चुनावों के थी पहले हिन्दू युवा वाहिनी के कर्ता धर्ता रहे सुनील सिंह को हाशिये पर डाल दिया गया । हालांकि तब सुनील सिंह ने योगी के लिए भाजपा पर दबाव बनने में बड़ी भूमिका निभाई थी । योगी को उचित सम्मान न मिलने की बात कहते हुए सुनील सिंह ने न सिर्फ योगी सीएम नहीं तो भाजपा नहीं के होर्डिंग लगवाए बल्कि 17 जगहों पर अपने प्रत्याशी भी उतार दिए।
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ऐसे हुई अदावत
सुनील सिंह तो सियासी मैदान में योगी के लिए बैटिंग कर रहे थे लेकिन अचानक ही उन्हे दरकिनार कर दिया गया । इसके बाद गुरु चेले में जंग शुरू हो गई । योगी ने तो यहाँ तक कह दिया की वे सुनील सिंह को जानते ही नहीं । इसके बाद तलखिया इतनी बढ़ी कि सुनील सिंह ने संगठन को दो फाड़ करते हुए 2018 में अलग हिन्दू युवा वाहिनी (भारत) का गठन कर लिया ।
योगी के मुख्यमंत्री काल में 30 जुलाई 2018 को गोरखपुर के राजघाट थाने की पुलिस ने सुनील सिंह के निकट सहयोगी और हियुवा भारत के एक पदाधिकारी चंदन विश्वकर्मा को गिरफ्तार किया था। इसके बाद जब राजघाट थाने पहुंचे सुनील सिंह ने इस पर आपत्ति की तो उनकी गाड़ी में पेट्रोल बम होने का आरोप लगाते हुए पुलिस ने उन्हे भी गिरफ्तार कर लिया । सुनील का आरोप है कि खुद मुख्यमंत्री इस घटना की मानीटरिंग कर रहे थे और उनके कहने पर ही थाने में पुलिस ने उन्हे बुरी तरह से मारा और पुलिस ने सुनील और चंदन के विरुद्ध रासुका की कार्रवाई कर दी । बाद में सुनील हाईकोर्ट से जमानत पा कर रिहा हुए ।
2019 के लोकसभा चुनाव में सुनील सिंह ने गोरखपुर सीट से भाजपा प्रत्याशी रवि किशन के खिलाफ पर्चा भरा । इसके जरिए वे अपनी ताकत दिखाना चाहते थे । उनके नामांकन में भी भारी भीड़ देखी गई लेकिन सुनील का पर्चा खारिज हो गया ।
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इसका आरोप भी योगी आदित्यनाथ पर लगाते हुए सुनील सिंह कहते हैं – यह सब कुछ मुख्यमंत्री के निर्देशों पर किया गया, अधिकारियों पर दबाव डाल कर मेरा पर्चा खारिज करवाया गया जबकि उसमे कोई कमी नहीं थी । योगी को डर था की अगर मैं मैदान में रहा तो भाजपा यह सीट शर्तिया हारेगी ।
अपनी ताकत बताते हुए सुनील सिंह कहते है- “हम संगठन वाले लोग हैं, हमने ही हिन्दू युवा वाहिनी बनाने में हमने खून पसीना एक कर दिया था, लेकिन बाद में महाराज जी (योगी) दूसरों के बहकावे में आ गए और राजनीतिक लालच में उन्होंने अपने पुराने वफ़ादारों को उपेक्षित करना शुरू कर दिया। वे अब पुराने तेवरों वाले योगी आदित्यनाथ नहीं रह गए हैं, बल्कि राजनीतिक लाभ के लिए समझौते करने वाले एक सामान्य राजनेता हो गए हैं। “
समाजवादी पार्टी ही क्यों ? इस सवाल के जवाब में सुनील सिंह अखिलेश यादव की समझ से प्रभावित होने की बात कहते हैं – “अखिलेश यादव में बहुत ऊर्जा है और उन्होंने विकास के बड़े काम किए काम करने की इच्छा रखने वाला हर युवा उनसे प्रभावित है।“ सुनील का दावा है की उनका संगठन यूपी के हर जिले में है और उनके कार्यकर्ता समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर काम करेंगे ।
सुनील सिंह को करीब से देखने वाले लोगों का यह कहना है कि अगर किसी राजनीतिक दल ने उन्हे मजबूत समर्थन दिया तो वे योगी के गढ़ में एक बड़ी चुनौती बन सकते हैं ।
गोरखपुर की सियासी जमीन पर गुरु चेले का यह संघर्ष देखना दिलचस्प हो सकता है , मगर समाजवादी पार्टी के साथ तालमेल करने के बीच उनकी हिन्दुत्व वाली छवि जरूर आड़े आएगी । लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू ये भी है कि सुनील सिंह के आने से समाजवादी पार्टी के मुस्लिमपरस्त होने के भाजपा के आरोप की काट भी हो सकती है ।
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