घनश्याम दुबे
सुसाइड आदमी के इसी जीवन का अंत नहीं करता, वह उसके कई आने वाले जीवन को ऐसे दुष्चक्र में फंसा देता है, जिसे इक्का दुक्का छोड़ कर कोई नहीं जानता!
दुनिया में बहुत से धर्म और समुदाय हैं, जो पुनर्जन्म को नहीं मानते।यही जीवन एक जीवन है बस। इसमें इस्लाम सहित कई और भी धर्म – समुदाय हैं पूरी दुनिया में।लेकिन सनातन धर्म , जिसे हिन्दू धर्म का पर्याय भी मानते हैं लोग, पुनर्जन्म की अवधारणा को मानता है और पूरी तरह मानता है।
मैंने जन्म – पुनर्जन्म के आध्यात्मिक और मनुष्य चेतना के बारे में काफी पढ़ा और सुना भी है। उसमें एक बात बहुत ही महत्वपूर्ण है ” आवागमन ” और सुसाइड के बारे में। उसका सार यह है कि सामान्य तरह से पैदा होना – मरना जन्म मृत्यु की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। हालांकि इसके भी आध्यात्मिक और मनुष्य चेतना के नियम हैं, कोई माने , न माने। इसमें प्रारब्ध के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है। यह उस व्यक्ति की जानकारी – समझ और उसकी पूरी आंतरिक बनावट पर निर्भर है। वह विषय भी काफी लंबा है।उसकी बात यहां नहीं हो रही है।
बात परमात्मा – ईश्वर या पूरे इस अनंत अनादि ” अस्तित्व ” से उपजे – मिले जीवन के बारे में है। अगर कोई व्यक्ति इस जीवन को इसके खुद विदा होने के पहले सहज – सरल तरीके से, अचानक इसे खुद समाप्त करता है तो वह अस्तित्व के नियमो में हस्तक्षेप या दखल देता है। उसे इसका अधिकार ही नहीं है और अगर जिन भी कारणों से ऐसा करताहै , इसकी सजा उसे परमात्मा देता है और बहुत ही खतरनाक तरीके से देता है और कई जन्मों तक देता है। आदमी को इसका जरा भी अंदाजा नहीं है …!
अध्यात्म और मनुष्य की चेतना को गहराई से जानने वालों कुछ चैतन्य लोगों ने इस पर बहुत ढंग से , विस्तार से बात की है ..! उनका कहना है कि आत्महत्या करने वाला व्यक्ति इस मिले हुए जीवन का ही अंत नहीं करता बल्कि वह उसे इसके बाद मिलने वाले जीवन को भी बरबाद कर लेता है। जीवन – मृत्यु के बारे में गहराई से जाने – अनुभव किए हुए या बुद्धत्व को उपलब्ध लोगों ने कहा है –
मनुष्य जब अपने जीवन का अंत खुद करता है तो वह अपने को एक अनजाने दुष्चक्र में फंसा लेता है या फंस जाता है! उनका कहना है कि अगले जन्म में जब भी हो, वह व्यक्ति ठीक उसी उम्र में, उन्हीं परिस्थितियों में पहुंचेगा , जो इस जन्म में आत्महत्या करने के समय थीं! लगभग ठीक ठीक वही हालात उस समय होंगे और वह फिर वही करेगा, जो उसने पिछले जनम में जिन भी कारणों से किया था ….वह इससे बच नहीं सकता ! मतलब वह फिर आत्महत्या करेगा। इससे वह बच नहीं सकेगा ..!!
कुल मिला कर वह एक ऐसे बहुत ही खतरनाक और जल्दी न ख़तम होने वाले जन्मों जन्मों तक के घातक ” चक्र ” में फंसेगा, जिसका उसे जरा भी ख्याल नहीं होता उस समय ..!
यह दुष्चक्र कब तक चलेगा या ख़तम होगा , यह उस व्यक्ति के पूरी चेतना के स्तर पर निर्भर करेगा ..! लेकिन यही पीड़ा – कष्ट उसके सामने बार बार खड़ी होगी …!
सीधा सा, सरल सा रास्ता है कि उसे अपने पर भरोसा हो न हो ,उस पर भरोसा होना करना चाहिए , जिससे उसे यह जीवन मिला है । दुख है, कष्ट है, वेदना है, तुम्हारे अपने जैसे होने और जीने में तो यह सब परमात्मा पर छोड़ दें, उसे सौंप दें। इतना यह भी जान लें कि परमात्मा ने किसी भी व्यक्ति को ” अकारण ” धरती पर भेजा ही नहीं है, वह भेजता ही नहीं।वह ऐसी गलती करता ही नहीं है! आत्महत्या व्यक्ति का वह बहुत ही बारीक – महीन अहंकार का परिणाम होती है। यह व्यक्ति की लाचारी या बेबसी की नहीं, उसके अहंकार की ही देन है।बहुतों को यह अहंकार नहीं लगेगा! देखने में लगेगा कि आदमी कितना कमजोर हो गया था, पर आप ऐसा सोच कर गलती कर रहे हैं! यहां उसका छोटा सा बहुत ही छोटा सा अहंकार ही बड़े महीन तरीके से पीछे छिप कर काम कर रहा है और व्यक्ति को जन्मों – जन्मों की गहरी ” अंधेरी सुरंग ” में धकेल रहा है! उसे अस्तित्व के प्रति पूरी तरह समर्पित होना चाहिए।इस भाव से कि – जैसी तेरी मर्जी …! यह आसान नहीं है ..! उसे अपने पर भरोसा हो ना हो , परमात्मा पर भी भरोसा न होने के नाते, इस जन्म से ले कर अगले कई जन्मों की खतरनाक पीड़ा को बुला रहा है ……! अहंकार कितना भी छोटा से छोटा क्यों न हो, है। वह व्यक्ति जैसा भी बना है, है राजी नहीं है ..! तो वह फिर कैसे राजी हो …? सिर्फ अस्तित्व के प्रति पूरी तरह समर्पण से।
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कोई भी व्यक्ति इतने बड़े ब्रह्माण्ड में है ही क्या? उसकी हैसियत ही इस विराट की तुलना में क्या है ..! अगर गीता में कृष्ण कहते हैं —
मामेंकम शरणम् व्रज तो सिर्फ तू अपने को मुझ पर छोड़ दे और अपने स्वभाव के अनुसार काम कर ..! यही समर्पण है!
अन्यथा यह बहुत ही खतरनाक है, खतरनाक है और खतरनाक है ..!!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)