न्यूज डेस्क
सोशल मीडिया पर देश के अधिकांश नेता सक्रिय हैं। ट्विटर हैंडल तो नेताओं के प्रवक्ता की भूमिका में आ गया है। जनता से उन्हें जो भी संवाद करना हो वह ट्वीट कर देते हैं। फेसबुक पर नेताओं की सक्रियता थोड़ी कम है, लेकिन आरजेडी नेता व लालू प्रयाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव काफी दिनों बाद गुरुवार को फेसबुक पर सक्रिय हुए और दिल की बात की।
तेजस्वी यादव ने अपने पोस्ट में लिखा कि जिस देश या राज्य की आबादी का जितना प्रतिशत गरीबी और हाशिए के अंतिम पायदान पर खड़ा होता है उस राज्य के लिए एक संवेदनशील सरकार का होना उतना ही आवश्यक होता है। तेजस्वी ने बहुत सारी बातें लिखी लेकिन उनके निशाने पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही रहे।
तेजस्वी ने लिखा है-हर नीतिगत निर्णय, सरकार व प्रशासन की चपलता या शिथिलता का सीधा-सीधा कमजोर वर्गों और गरीबों की सुरक्षा, आय और जीवन स्तर पर पड़ता है। बिहार एक ऐसा ही राज्य है जिसकी बहुसंख्यक आबादी की आय राष्ट्रीय औसत से कम है। और यह तब है जब लगभग पिछले 14 वर्षों से ऐसी सरकार रही है जो अपने आप को सुशासन या डबल इंजन की सरकार कहने से नहीं अघाती!
उन्होंने आगे लिखा है -उद्योग धंधे, पूँजी निवेश, रोजगार के अवसर तो नदारद रहे, फिर भी स्वघोषित सुशासन! शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं व निर्धन नागरिकों का जीवन स्तर सहारा अफ्रीका से भी बदतर! कानून व्यवस्था नाम की चीज नहीं, ऊपर से भ्रष्टाचार, भू माफिया और महंगाई की मार सहते विकल्पहीन नागरिक! सुशासन का अर्थ कोई गुणात्मक सुधार नहीं बल्कि उसके पहले के यानि आज से 25-30 वर्ष पूर्व के कार्यकाल का हौआ खड़ा करने और अपनी हर नाकामी पर उसे कोसने की आदत भर है।
एक सरकार का बर्ताव नागरिकों के लिए उसी प्रकार का अपेक्षित है जैसा एक मां का अपनी संतानों के लिए होता है। सदैव उनका दर्द समझना और उनके भविष्य व हितों के प्रति पूरी संवेदना से सजग होना। बिहार में चमकी बुखार की भेंट में प्रतिवर्ष की भांति फिर 200 से अधिक बच्चे चढ़ गए और सारी व्यवस्था, सरकार और प्रशासन खानापूर्ति कर कुछ सुधार करने का नहीं बल्कि प्रकृति को दोष देने का प्रयास करता रहा।
उन्होंने लिखा है कि चरमराती व्यवस्था, मदमस्त अफ़सर व सरकार और दोनों के बोझ तले कराहती जनता! इसी तरह लू की चपेट में भी आकर 200 से अधिक नागरिकों ने अपने प्राण गंवा दिए! सरकारी अस्पताल बेहतर इलाज देने तक की स्थिति में नहीं! हर साल राज्य में कुछ क्षेत्र सूखाग्रस्त रह जाते हैं और कुछ बाढ़ की चपेट में आकर आम जनजीवन को अस्त व्यस्त कर देते हैं।
दोनों ही स्थिति में इसे राज्य का आम नागरिक और गरीब किसान अकेले झेलता है। इन प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए सरकार हर बार पूरी तरह से असमर्थ और उदासीन दिखती है। अगर प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान से सरकार गरीबों को बचा ही नहीं सकतीं तो सरकार चुनने का भला क्या उद्देश्य रह जाता है?