अशोक कुमार
समकालीन शिक्षा में विश्वविद्यालय शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान है। विश्व विद्यालय शिक्षा संपूर्ण शिक्षा पद्धति की शीर्ष बिंदु है। यह पूरी शिक्षा पद्धति की शीर्ष बिंदु होने के साथ ही साथ उसे संपूर्णता प्रदान करती है। इससे राष्ट्र के नायक प्रशिक्षित होते हैं, राजनैतिक नेता, औद्योगिक नेता, नीति निर्माता, राष्ट्रीय शिक्षा विद ,पत्रकार व समाज सुधारक ,विश्वविद्यालय की ही देन है। विश्वविद्यालय सभी प्रकार के ज्ञान का सत्य एवं सिद्धांत का अन्वेषण एवं खोज के प्रयोग तथा कल्पना का केंद्र बिंदु है।
अनेक शिक्षाविदों ने अपने विश्लेषण और अनुभवों से स्पष्ट किया है कि भारतीय विश्वविद्यालयों में नेतृत्व की स्वायत्तता प्रत्याभूत है परंतु उसके व्यापक पैमाने पर हो रहे दुरुपयोगओं ने विश्वविद्यालय प्रशासन नेतृत्व की स्वायत्तता के समक्ष प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है ।
विश्वविद्यालय अधिनियम और शिक्षक संघ छात्र संघ के संविधान में नेतृत्व से संबंधित प्रावधानमें स्वच्छता का मूल तत्व विश्वविद्यालय के समस्त महत्वपूर्ण घटकों से संबंधित मुख्य कार्यक्षेत्र छात्रों के चयन में पाठ्यक्रम के निर्धारण शिक्षा पद्धति तथा प्रशासनिक निकाय के सुचारू रूप से निकाय की भांति संचालन में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है ।
नई शिक्षा नीति में छात्रों की भागीदारी को देखकर नई शिक्षा नीति मे कई गतिविधियां जुड़ी हुई हैं, जिनमें विभिन्न समिति में छात्रों का जुड़ाव विश्वविद्यालयों मे होने की संभावना है। उच्च गुणवत्ता वाले शिक्षण संस्थान मे छात्रों को बहुत सारे भागीदारी के अवसर सेवा परियोजनाएं दिए जाएंगे । खेल, संस्कृति , कला क्लब, इको-क्लब, गतिविधि क्लबसमुदाय में सेवा परियोजनाएं, आदि प्रणाली होगी ।
छात्रावास की बढ़ती सुविधाओं सहित ग्रामीण पृष्ठभूमि के छात्रों को अपेक्षित सहायता प्रदान करना जैसी जरूरत प्रदान की जाएगी । सभी संस्थानों में छात्रों के लिए गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सुविधाएं सुनिश्चित की जाएगी । छात्रों को वित्तीय सहायता विभिन्न उपायों के माध्यम से उपलब्ध कराई जाएगी। प्रयास करेंगे कि एससी, एसटी, ओबीसी और अन्य एसईडीजी से संबंधित छात्रों की योग्यता को प्रोत्साहित करने के लिए बनाया जाएगा। राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल को छात्रों की प्रगति को समर्थन, बढ़ावा देने और ट्रैक करने के लिए विस्तारित किया जाएगा । छात्रवृत्ति प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
लेकिन आश्चर्य है की छात्र संघ का कोई उल्लेख नहीं है। भारत की स्वतंत्रता पूर्व और स्वतंत्रता के बाद भारत में जितने भी परिवर्तनकारी सामाजिक आंदोलन हुए, उनमें छात्रों की भूमिका बहुत अहम रही है। छात्र शक्ति, समाज को सुधारने और उसे मजबूत करने वाली घटकों में से एक है। इसलिए कहा जाता है की युवा देश के रीढ़ हैं, जिसके कंधे पर देश का भविष्य टिका होता है। स्वतंत्रता के पूर्व और स्वतंत्रता के बाद भारत में जितने भी परिवर्तनकारी सामाजिक आंदोलन हुए, उनमें छात्रों की भूमिका बहुत अहम रही है।
बदलते वक़्त ने छात्रो की राजनीती और आन्दोलन के स्वरुप को ही बदल डाला है । प्रारम्भ मे छात्रोंका आंदोलन स्कूलों, पाठ्यक्रमों और शैक्षिक धन पर केंद्रित था; फिर उनका झुकाव भारत की आजादी के संघर्ष की ओर स्थानांतरितहुआ और अब इनकी सक्रियता राजनैतिक संगठनो के साथ अधिक देखी जाती है।
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इच्छा और आशा है कि जब योजना का विवरण आएगा, तो विभिन्न शैक्षिक संस्थानों में छात्र संघ के गठन और कार्य के बारे में एक ऐतिहासिक योजना आएगी ।
(लेखक वर्तमान में कुलपति, श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय, निम्बाहेड़ा (राजस्थान) है तथा कानपुर विश्वविद्यालय व गोरखपुर विश्वविद्यालय (उतरप्रदेश) के पूर्व कुलपति रहे हैं)