यशोदा श्रीवास्तव
इसे सिर मुड़ाते ओले पड़ने जैसा नहीं कहा सकता,जब ताजा ताजा बनी प्रचंड सरकार के गृहमंत्री को पद से इस्तीफा देना पड़ा हो, उनको प्रतिनिधि सभा की सदस्यता भी गंवानी पड़ी हो और फिर उनकी राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी के प्रचंड सरकार से समर्थन वापसी की धमकी जैसी ख़बरें आ रही हों।
नेपाल की राजनीति में गृहमंत्री रवि लामीछाने के साथ हुई इस घटना की खूब चर्चा है लेकिन इसमें प्रचंड की कोई भूमिका कहीं नहीं है।
वे सिर्फ इस बात पर अड़े हैं कि प्रतिनिधि सभा की सदस्यता गंवा चुके व्यक्ति को दुबारा मंत्रिमंडल में नहीं शामिल करेंगे जबतक कि वह प्रतिनिधि सभा में चुन कर नहीं आ जाते।
चूंकि ओली का दबाव है कि रवि लामीछाने को पुनः गृहमंत्री बनाया जाय लेकिन इतने मात्र से ही ओली और प्रचंड के बीच किसी मतभेद जैसा कयास निराधार है जैसा कि मीडिया में दिख रहा है।
बता दें कि नागरिकता विवाद को लेकर राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी के अध्यक्ष और गृहमंत्री रवि लामीछाने को पद से इस्तीफा देना पड़ा साथ ही उनकी प्रतिनिधि सभा की सदस्यता भी रद हो गई।
रवि लामीछाने नेपाल के साथ अमेरिका के भी नागरिक थे। अमेरिका की नागरिकता रद किए बिना वे चुनाव लड़ गए।
जीत गए और समझौते में गृहमंत्री जैसा महत्वपूर्ण पद भी मिल गया। एक वकील की याचिका पर उच्च न्यायालय ने अमेरिकी नागरिकता को लेकर रवि लामीछाने की मंत्रि पद और प्रतिनिधि सभा की सदस्यता रद करने का आदेश जारी कर दिया। न्यायालय के इस आदेश से सत्ता रूढ़ गठबंधन में खलबली मच गई।
आननफानन में रवि लामीछाने ने अपनी अमरीका की सदस्यता रद करवा दी और ओली की सिफारिश पर बिना देर किए उनकी नेपाली नागरिकता भी बहाल कर दी गई लेकिन प्रतिनिधि सभा में तो चुन कर ही आना होगा। भारत की तरह नेपाल में भी ऐसा प्रावधान है कि कोई व्यक्ति छ माह तक बिना किसी सदन का सदस्य रहे मंत्री बन सकता है।
इसी आधार पर ओली रवि लामीछाने को पुनः गृहमंत्री बनाए जाने का दबाव बना रहे थे। प्रचंड के इनकार करने पर बात यहां तक आ गई कि रवि लामीछाने प्रचंड सरकार से अपनी पार्टी का समर्थन वापस ले लेंगे।
बाद में संभावना यह बन रही थी कि रवि लामीछाने को दुबारा गृह मंत्री भले न बनाया जाए , कोई अन्य मंत्रालय जरूर दिया जाय। इस विषय पर विचार विमर्श हो पाता कि फिर न्यायालय में रिट हो गई कि किसी ऐसे सदस्य को मंत्री न बनाया जाय जो किसी सदन का सदस्य न हो।
मामला कोर्ट में चले जाने से रवि लामीछाने का मंत्री पदअधर में लटक गया। नेपाल की राजनीति में इसे भूचाल या ओली प्रचंड के बीच मतभेद की दृष्टि से देखा जाने लगा और रवि लामीछाने की पार्टी के प्रचंड सरकार से समर्थन वापसी की चर्चा होने लगी।
रवि लामीछाने ने प्रचंड को समर्थन वापसी की चेतावनी भी दे दी लेकिन प्रचंड पर इसका असर इसलिए नहीं पड़ा क्योंकि इस बार नाम के अनुरूप ही सरकार बहुत मजबूत स्थिति में है।
यदि रवि लामीछाने की पार्टी प्रचंड सरकार से बाहर हो भी जाए तो भी सरकार पर कोई असर नहीं पड़ने वाला क्योंकि ओली भी जानते हैं कि सिर्फ उनके समर्थन से ही प्रचंड सरकार नहीं बनी है, नेपाली कांग्रेस का भी प्रचंड को भरपूर समर्थन है भले ही वह सरकार में न हो। भारी समर्थन की ताकत के बल पर ही प्रचंड के इरादे काफी मजबूत हैं, प्रधानमंत्री के रूप में वे अपने तीसरे कार्यकाल को किसी के हाथ की कठपुतली बनकर नहीं पूरा करना चाहेंगे लेकिन अपने गठबंधन सहयोगियों का सम्मान भी उनकी प्राथमिकता में है।
नेपाल में केपी शर्मा ओली की पार्टी के साथ मिलकर प्रचंड का प्रधानमंत्री बनना चकित करने जैसा था। इसे लेकर तमाम कयास लगाए जाने लगे थे जिसमें एक यह भी था कि ओली से जा मिले प्रचंड फिर चीन के पाले में चले गए।
लेकिन अपने मंत्रिमंडल के प्रमुख सहयोगी और गृहमंत्री रवि लामीछाने को लेकर प्रचंड के स्टैंड ने साफ कर दिया कि वे न तो ओली की कठपुतली बने हैं और न ही चीन के झांसे में ही फंसे हैं।
हां नेपाल के प्रगति, खुशहाली और समृद्धि के लिए यदि वे भारत और चीन के बीच संतुलित संबंध बनाए रखते हैं तो यह कहीं से गलत नहीं है।
कोई भी राष्ट्राध्यक्ष अपने देश के लिए ऐसा ही करेगा। उन्होंने बतौर प्रधानमंत्री अपनी पहली विदेश यात्रा भारत की करने का भी एलान किया है जो प्रचंड के स्वभाव में बड़े बदलाव का संकेत है ही,प्रचंड और भारत को लेकर किसी शंका आशंका की गुंजाइश को भी खारिज करती है।
चुनाव के कुछ माह पहले अमेरिका से आए नेपाली मूल के नागरिक व टीवी पत्रकार रवि लामीछाने ने राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी नामक एक राजनीतिक पार्टी का गठन किया, प्रतिनिधि सभा का चुनाव लड़ा और अच्छी खासी सीटें जीत कर नेपाल की राजनीति में धमाके दार इंट्री की।
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली में 20 सीटें हासिल करने वाली रवि लामीछाने की पार्टी त्रिशंकु संसद में किसी के नेतृत्व में बनने वाली सरकार में देवदूत की भांति देखी जाने लगी।
इधर जब नेपाली कांग्रेस से प्रधानमंत्री पद को लेकर प्रचंड की बात नहीं बनी तो वे ओली के साथ चले गए जहां आधे आधे पारी की समझौते के साथ प्रचंड पहली पारी के लिए प्रधानमंत्री नियुक्त हुए।
इस साझेदार सरकार के गठन में निश्चित ही तमाम तरह की शर्तें होंगी। उसी में से एक राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी के मुखिया रवि लामीछाने को गृहमंत्री बनाया जाना भी था।
नेपाल के राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि प्रचंड से मतभेद के चलते यदि रवि लामीछाने की पार्टी के 20 सदस्य सरकार से बाहर हो जाते हैं तो आसन्न राष्ट्र पति चुनाव में इसका असर पड़ सकता है।
माना जा रहा है कि प्रचंड को समर्थन देते वक्त यह शर्त भी है कि राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार ओली की पार्टी एमाले का होगा। जाहिर है कि नेपाली कांग्रेस भी अपना उम्मीदवार उतारेगी।
नेपाली कांग्रेस के अधिकांश सांसदों ने प्रचंड को समर्थन दिया है लेकिन राष्ट्रपति पद के लिए वे नेपाली कांग्रेस उम्मीदवार के साथ होंगे।
राष्ट्र पति का चुनाव जब भी हो, होगा बड़ा दिलचस्प और मुकाबला भी कांटे का होगा। इस चुनाव में रवि लामीछाने की पार्टी की भूमिका निर्णायक होगी, इसलिए ओली की कोशिश रवि लामीछाने को हर हाल अपने पाले में बनाए रखने की है। ओली का उन्हें गृहमंत्री बनाए जाने का दबाव भी राष्ट्र पति चुनाव के अंकगणित का ही हिस्सा है।