संदीप पाण्डेय
क्राइम फाइल में आज बात होगी एक ऐसे डॉन की, जो कानून का ककहरा पढ़ते पढ़ते कानून से ही खिलवाड़ करने लगा। एक ऐसा छात्र जो यूनिवर्सिटी कैंपस की छात्र राजनीति का शिकार हुआ और बन गया अंतर्राष्ट्रीय डॉन। जिसकी तलाश एक वक्त इंटरपोल को भी थी। वो इतना शातिर दिमाग था कि वो एक नहीं कई दफा पुलिस को चकमा दे चुका था।
एक बार की बात है यूपी पुलिस के सूचना मिली कि कुछ अपराधी दिल्ली में एक अपरहण को अंजाम देकर यूपी में घुसने वाले है। बॉर्डर के जिलों की पुलिस सक्रिय हो गई। हाइवे पर चेकिंग शुरू कर दी गई। रात में दिल्ली की तरफ से एक कार आती हुई दिखाई दी तो पुलिस ने उसे रोका। कार के अंदर बैठा शख्स बाहर निकला और पुलिस वालों पर बरस पड़ा। अंग्रेजी में उसने कहा कि वो एक डॉक्टर है और मरीज को लेकर अस्पताल जा रहा है। अगर मरीज को कुछ हुआ तो इसके जिम्मेदार पुलिस वाले होंगे। कार पर डॉक्टर का स्टीकर भी लगा था। पुलिसवाले उसके झांसे में आ गए उसे जाने दिया। कहते हैं कि वो अपराधी बबलू श्रीवास्तव था।
कानून के छात्र से किडनैपिंग किंग तक का सफर तय करने वाले बबलू श्रीवास्तव की कहानी शुरू होती है लखनऊ यूनिवर्सिटी के कैंपस से। वो साल 1982 था। छात्रसंघ चुनाव के चलते कैंपस मका माहौल गर्म था। बबलू का एक दोस्त नीरज जैन चुनाव में महामंत्री पद का उम्मीदवार था। प्रचार जोरों पर था। छात्र नेता एक दूसरे को हराने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार थे। इसी दौरान दो छात्र गुटों में चुनावी झगड़ा हुआ, जिसमें किसी ने एक छात्र को चाकू मार दिया।
बताया जाता है कि घायल छात्र का संबंध लखनऊ के माफिया अरुण शंकर शुक्ला उर्फ अन्ना के साथ था। कहा जाता है कि इस मामले में अन्ना ने बबलू श्रीवास्तव को आरोपी बनवा कर जेल भिजवा दिया। ये बबलू के खिलाफ पहला मुकदमा था और यहीं से बबलू, डॉन बबलू श्रीवास्तव बनने की ओर चल पड़ा। जेल से छूटने के बाद बबलू अन्ना शुक्ला के विरोधी गुट रामगोपाल मिश्रा से जुड़ा।
इसी दौरान बबलू की सोहबत राजू भटनागर नाम के कुख्यात अपराधी से हुई। उन दिनों राजू भटनागर पर अपहरण के कई आरोप थे। पुलिस उसकी तलाश में थी। साल 1985 में इलाहाबाद के जार्ज टाउन इलाके में राजू भटनागर गैंग और पुलिस के बीच मुठभेड़ हुई जिसमें राजू मारा गया। इसी मुठभेड़ में पुलिस ने बबलू श्रीवास्तव को गिरफ्तार कर लिया। लेकिन कहा जाता है कि राजू भटनागर की मुखबीरी बबलू ने ही की थी। क्योंकि पुलिस ने बबलू पर दबाव बनाया था।
पुलिस के राजू भटनागर की एक डायरी भी मिली जिसमें देश के कई नामचीन लोगों के नाम दर्ज थे। वो सारे नाम राजू भटनागर के टारगेट थे। यानी उनके अपरहण की प्लानिंग थी।
राजू भटनागर के मरे जाने के बाद बबलू खुद अपहरण के धंधे में उतर गया। जैसे जैसे उसके नाम पर केस बढ़ते गए तो पुलिस भी उसके पीछे हाथ धो कर पड़ गई। तब बबलू एक ऐसे तांत्रिक की शरण में गया जो देश विदेश के बड़े राजनेताओं से अपने संबंधों के लिए जाना जाता था। बकौल बबलू वो साल 1989 था जब वो चंद्रास्वामी से मिला लेकिन वहां उसकी बात नहीं बन पाई। इसके बाद वो नेपाल भाग गया।
नेपाल में मिर्जा से दोस्ती की कहानी फिर दाउद से जुड़ना फिर दुबई भाग जाना। दुबई से गैंग ऑपरेट करना, यूपी, दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक में उद्योगपियों का अपहरण करना।
अपहरण की बारीक प्लानिंग बनाना, अपहरण करने वाले गैंग में लड़की का होना। अपरहण करने के बाद अपह्रत किए गए व्यक्ति को रिहाइशी कॉलोनी में रखना। जिससे किसी को शक न हो।
फिरौती के लिए हवाला का इस्तेमाल करने की परंपरा शुरू की। जिसमें मिर्जा एक बड़ा साझीदार था। गैंग में शहर के पढ़े लिखे स्मॉर्ट लड़कों को शामिल करना।
1993 में दाउद से अलगाव हो गया, वजह बताई गई कि बम ब्लास्ट के चलते अलग हुआ लेकिन इसके पीछे और भी कारण थे दोनों के बीच पैसे को लेकर भी अनबन हुई थी। साथ ही बबलू की छोटा शकील और अनिस इब्राहिम से नहीं पटती थी।
खतरा भांप कर वो दुबई से भागा, कुछ दिन नेपाल में रहा फिर वहां उसे शक हुआ कि मिर्जा उसकी मुखबीरी दाउद से करता है। फिर दुबई आया लेकिन खतरा बना हुआ था तो सिंगापुर के लिए निकल गया। साल 1995 में सिंगापुर एयरपोर्ट पर इंटरपोल की टीम ने उसे गिरफ्तार कर लिया। सिंगापुर जाने की सूचना दाउद ने ही इंटरपोल को दी थी।
देखिए पूरी कहानी इस वीडीओ में