जुबिली पोस्ट ब्यूरो
लखनऊ। कहानीकार के रूप में पधारे डॉ0 सुधाकर अदीब ने अपनी कहानी चरैवेति- चरैवेति का पाठ किया। एक पुराने पुल पर आती-जाती नई व पुरानी गाड़ियों की आवाजाही का सुन्दर चित्रण करते हुए कहानी के मर्म को सुनाया।
उनकी कहानी में देहाती चिड़िया व शहराती चिड़िया के वार्तालाप में गांव व शहरों की तुलनात्मक बातचीत का अद्वितीय चित्रण मिलता है। उनकी कहानी में अन्धविश्वास को चोट करते हुए समाज को एक दिशा निर्देश तथा उनसे बचना चाहिए।
उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के तत्त्वावधान में डॉ0 सदानन्द प्रसाद गुप्त, कार्यकारी अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की अध्यक्षता में साहित्य संवाद शृंखला के अन्तर्गत कहानी पाठ का आयोजन आचार्य रामचन्द्र शुक्ल पुस्तकालय हिन्दी भवन लखनऊ में किया गया। कहानी पाठ में कहानीकार के रूप में नवनीत मिश्र एवं डॉ0 सुधाकर अदीब आंमत्रित थे।
अगली कड़ी में कहानीकार नवनीत मिश्र ने अपनी टारगेट कहानी का पाठ किया। कहानी में पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन नौकरी में आने वाली समस्याओं की व्यथा का चरित्र चित्रण किया गया है। कहानी पाठ में कहानीकारों से अपनी जिज्ञासाओं का समाधान भी किया। निम्नलिखित श्रोताओं ने प्रश्न किया-
श्रोता – कहानी का अंत क्या पाठकों की मनःस्थिति पर छोड़ देना चाहिए ?
नवनीत मिश्र – लेखक जो लिखता है जरूरी नहीं वह उसी रूप में पहुँचे। निष्कर्ष यह है कि कहानी का अंत पाठकों पर छोड़ देना चाहिए।
श्रोता – चरैवेति-चरैवेति कहानी का मर्म क्या है ?
अदीब – लेखक ने व्यंग्यात्मक रूप में समाज की विकृति को दर्शाया गया है।
रामकृष्ण जायसवाल – चरैवेति-चरैवेति शीर्षक उपयुक्त है चिड़ियों का संवाद अच्छा लगा।
श्रोता- चरैवेति-चरैवेति एक मायाजाल है।
संजय चौबे – दोनों कहानीकारों का साधुवाद।
डॉ0 रंगनाथ मिश्र सत्य – नयी कहानी आन्दोलन का कोई भविष्य है ?
नवनीत – दोनों भविष्य अच्छी कहानी का होता है। आन्दोलन नहीं होता है।
अध्यक्षीय सम्बोधन में डॉ0 सदानन्द प्रसाद गुप्त, मा0 अध्यक्ष, हिन्दी संस्थान ने कहा रचनाकार का सीधा संवाद श्रोता व पाठकों से होता है। रचनाकार अपने आपको अपनी रचनाओं के माध्यम से अभिव्यक्त करता है। रचनाकार अपनी पीड़ा से गुजरता है। रचना का पाठ जब किया जाता है तब पाठक भी उसके साथ रचना यात्रा करता है।
आज कहानियों का शिल्प बदल गया है। कफन कहानी इसका उदाहरण है। हिन्दी साहित्य के पाठकों की भी प्राथमिकताएं बदली है। सभ्यता ने हमारी संवेदनाओं को भी कुंद कर दिया है। आज कहानी का स्वरूप बदला है। कहानी ने एक लम्बी यात्रा की है।
इस अवसर पर डॉ0 विद्या बिन्दु सिंह, प्रदीप अग्रवाल, डॉ0 रामकठिन सिंह, डॉ0 मंजु शुक्ला, डॉ0 उषा चौधरी, डॉ0 रामकृष्ण, डॉ0 नीरज चौबे, अलका प्रमोद, अंजु मिश्रा सहित अनेक साहित्यकार उपस्थित थे।