नवेद शिकोह
चेहरे पर दाग ना हो तो चेहरे के तिल को ताड़ बनाने की कोशिश होती है। यूपी की योगी सरकार इसलिए भी निश्चिन्त हैं क्योंकि उसे लग रहा है कि विपक्ष यानी विरोधियों के आईने में भी सरकार के चेहरे पर कोई दाग नहीं दिख रहा है। तभी तो सारस की कहानी के तिल को सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता अखिलेश यादव ताड़ बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
सत्ता हमेशा मज़बूत और सक्रिय विपक्ष के गंभीर मुद्दों की जवाबदेही से डरती है। विपक्ष जनता के बीच जाता है, पड़ताल और रिसर्च करके अनियमितताओं और घोटालों की पर्तें खोलता है। इस तरह की घेराबंदी सरकार के सामने मुश्किलें पैदा करती हैं।
यूपी की सियासत का फिलहाल अजब हाल है। कांग्रेस और बसपा हाशिए पर हैं, सपा की विपक्षी भूमिका ट्वीटर पर सिमट गई है।
पार्टी की चुनावी रणनीति को दरयाफ़्त करने के लिए अखिलेश यादव के ट्वीटर को देखिए तो लगता है कि आरिफ से सारस जुदा होने के मुद्दे की अति के आगे बड़े से बड़े सियासी मुद्दे बौने कर दिए गए हैं। तमाम जन-सरोकारों और अहम सियासी मुद्दों को छोड़कर अखिलेश ताबड़तोड़ ट्वीट तो कर ही रहे हैं रविवार को उन्होंने सारस मामले पर दूसरी प्रेस कांफ्रेंस की।
कांग्रेस सहित कई क्षेत्रीय दल लोकतंत्र के खतरों को राष्ट्रीय मुद्दा बनाकर देश के सभी विपक्षी दलों को एक सूत्र में बांधने की कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस के दिग्गज राहुल गांधी की हेट स्पीच पर सज़ा और फिर संसद सदस्यता समाप्त होने को लोकतंत्र पर हमला बताकर भाजपा विरोधी एकजुट होने की मंशा पाले हैं।
इरादा था कि इस मुद्दे पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सहित देश के तमाम क्षेत्रीय दल कांग्रेस के साथ आकर लोकतंत्र की रक्षा, अडानी मामले, मंहगाई, बेरोजगारी, आरक्षण इत्यादि मुद्दों को लेकर सड़कों पर उतर आएंगे।
विपक्षी एकता के पैरोकारों को सबसे ज्यादा उम्मीद सबसे विशाल सूबे उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े विपक्षी दल सपा के नेता अखिलेश यादव से थी। लेकिन राहुल गांधी पर एफआईआर और फिर संसद सदस्यता जाने के बाद अखिलेश यादव ने इसके विरोध में सिर्फ एक ट्वीट ही किया।
और राहुल प्रकरण के दो दिन के दौरान भी वो सारस मामले में ट्वीट पर ट्वीट करते ही जा रहे हैं। जैसे कि आरिफ के सारस मामले को ही प्रदेश का सबसे बड़े मुद्दा बनाकर वो लोकसभा चुनाव में भाजपा को चुनौती देने का मन बना चुके हों। या यूं कहिए कि सपा को लग रहा है कि सारस गठबंधन का मजबूत घटक दल बनके भाजपा को परास्त करने की शक्ति रखता है।
जबकि सारस और आरिफ की जुदाई से योगी सरकार इसलिए नहीं घिर सकती क्योंकि वन जीव अधिनियम के तहत ही वन विभाग ने आरिफ से राजकीय पक्षी सारस को अलग किया है।
अखिलेश यादव ने शनिवार को सारस को लेकर जो ट्वीट किया है उससे साफ जाहिर हो रहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के मुखिया पालतू पशु और ग़ैर पालतू पशुओं में भी अंतर नहीं समझते। जबकि ये ज्ञान तो कक्षा दो के बच्चों की कोर्स की किताबों में शामिल हैं।
शायद यही कारण है कि भाजपा लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश को सबसे अधिक आसान मान रही है। तमाम मजबूतियों के बाद भी भाजपा तमाम क्षेत्रों और जातियों पर आधारित छोटे दलों के गठबंधन (एनडीए) से लैस है। ख़ासकर यूपी में पिछड़ी जातियों के नेता और दल भाजपा के संपर्क में हैं।
माना जा रहा है कि भाजपा को चुनौती देने के लिए विपक्षी एकजुटता, कांग्रेस के साथ क्षेत्रीय दलों का सामंजस्य महागठबंधन बना लें तब ही बराबर की चुनौती लड़ाई की उम्मीद बन सकती है। विशेषकर यूपी में भाजपा विरोधी वोट बिखर गए तो भाजपा करीब करीब सभी सीटों पर विजय प्राप्त करने में कामयाब हो सकती है।
भाजपा केवल जनता का विश्वास जीतने में ही सफल नहीं है, जनाधार में मज़बूत होने के साथ पार्टी का नेतृत्व रणनीतिक में बेहद दक्ष है।
ख़ासकर यूपी में, यहां अकेले लड़ने का दम है फिर भी छोटे-छोटे दलों को साथ लेने की कोशिश जारी रहती है। पिछले कुछ चुनावों के नतीजे देखिए तो यूपी में पैंतालीस से पचास के आसपास भाजपा गठबंधन का वोट प्रतिशत है। इसलिए भाजपा को टक्कर देने के लिए किसी विपक्षी दल या गठबंधन को पचास फीसद वोट की ताकत पैदा करनी होगी। ख़ासकर यूपी में बेहद मजबूत विपक्षी गठबंधन या दलों के आपसी सामंजस्य की जरूरत है। और इसके लिए विपक्षी एकता की जरूरत है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी की संसद सदस्यता जाने के बाद विपक्षी एकता का एक बड़ा मौका है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का जनाधार और संगठन भले ही ना के बराबर हो लेकिन लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर राहुल गांधी और कांग्रेस चर्चा में है। इससे ये जाहिर होता है कि आगामी लोकसभा में समाजवादी पार्टी को यूपी में भाजपा विरोधी एकतरफा वोट मिलना आसान नहीं है। कांग्रेस के साथ सपा का सामंजस्य नहीं बना तो वोट बंटेगा और भाजपा को टक्कर देने की स्थिति में कोई भी नहीं होगा।
इसलिए ये वक्त विपक्षियों में आपसी सहमति और एकजुटता कायम करने का है। राहुल के समर्थन में अखिलेश का एक ट्वीट नजर आया तो लगा कि कुछ ऐसा होने वाला है। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। सपा अध्यक्ष फिर सारस वाले मुद्दे को लेकर ट्वीट की राजनीति में मसरूफ हो गए। लगा जैसे कि सारस और आरिफ से जुड़ी मानवीय संवेदना ही देश-प्रदेश का सबसे बड़ा मुद्दा है़।
लग रहा है कि सारस ही विपक्ष के बीच सामंजस्य पैदा करेगा। प्रतीत हो रहा है कि सारस ही समाजवादी पार्टी के गठबंधन का मजबूत साथी बनने जा रहा हो। राहुल गांधी को सज़ा सुनाए जाने और फिर उनकी संसद सदस्यता जाने पर एक और सारस वाले मुद्दे पर लगातार ट्वीट देखकर ये भी लगा कि अखिलेश यादव राहुल गांधी से ज्यादा अहमियत सारस की समझते हैं ! राहुल से संसद सदस्यता छीन ली गई तो एक ट्वीट और आरिफ से सारस छिन लिया तो ताबड़तोड़ ट्वीट।