मल्लिका दूबे
गोरखपुर। यूपी के बस्ती जिले में संसदीय चुनाव को लेकर शुरू हुई लड़ाई में मंगलवार को नई हलचल मच गयी। सपा-बसपा गठबंधन में टिकट न मिलने से नाराज चल रहे तीन बार के विधायक और दो बार के मंत्री राजकिशोर सिंह के कांग्रेस का हाथ पकड़कर जंग ए चुनाव में कूद पड़ने की अटकलों के तेज होने से यहां चुनावी खम ठोंक रहे सियासतदां के खेमे में खलबली मच गयी।
राजकिशोर सपा शासन में उस वक्त तक कद्दावर मंत्री रहे जब तक मुलायम सिंह यादव बिना कुर्सी पर बैठे सुप्रीम सीएम थे। राज्यसत्ता पर अखिलेश यादव की पूरी पकड़ होने पर वह धीरे-धीरे हाशिए पर चले गये थे। कांग्रेस में उनके शामिल होने की कयासबाजी के साथ ही उनके चुनावी मैदान में आने की भी अपुष्ट चर्चाएं तेज हो गयी हैं।
अगर राजकिशोर वाकई चुनाव मैदान में आएंगे तो यहां की चुनावी लड़ाई में एक नया कोण जुड़ जाएगा। वैसे राजकिशोर सिंह ने कांग्रेस में शामिल होने को लेकर कुछ वेबपोर्टल पर चल रही खबरों को सिर्फ अटकलबाजी करार दिया है।
सपा से टिकट न मिलने पर नाराजगी
राजकिशोर सिंह इस लोकसभा चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी से टिकट के दावेदार थे। लेकिन, गठबंधन से पहले ही बसपा सुप्रीमो मायावती ने यहां अपने खास, पूर्व मंत्री रामप्रसाद चौधरी को प्रभारी घोषित कर बड़ा संकेत दे दिया था। गठबंधन होने के बाद टिकट बसपा के ही खाते में आया। राजकिशोर सिंह की नाराजगी पार्टी से यूं ही नहीं है। वह बीते दिनों सपा-बसपा गठबंधन के संयुक्त चुनावी कार्यक्रम से भी दूर रहे। लोकसभा चुनाव 2014 में उन्होंने बस्ती संसदीय सीट से अपने भाई बृजकिशोर सिंह ‘डिम्पल” को टिकट दिलाया था।
मोदी लहर में भाई को पहुंचाया था करीबी मुकाबले तक
राजकिशोर सिंह ने पिछले लोकसभा चुनाव में अपने भाई डिम्पल को न केवल सपा का टिकट दिलाया था बल्कि उनकी राह सिम्पल करने में भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। डिम्पल भले ही चुनाव हारकर दूसरे स्थान पर थे लेकिन विजयी भाजपा प्रत्याशी हरीश द्विवेदी को मिले 357680 मतों के मुकाबले 324118 मत प्राप्त किए थे।
गठबंधन में बसपा कोटे से प्रत्याशी बनाए जा रहे पूर्व मंत्री रामप्रसाद चौधरी तीसरे स्थान पर रहकर 283747 वोट प्राप्त किये थे। ऐसा माना जाता है कि मोदी लहर का जबरदस्त असर नहीं होता तो भाई राजकिशोर के बनाए चुनावी राह पर डिम्पल की राह वाकई सिम्पल हो गयी होती।
कभी बस्ती के साथ ही गोरखपुर में तूती बोलती थी राजकिशोर की
गोरखपुर-बस्ती मंडल में बीच के सालों में एक दौर ऐसा भी था जब राजकिशोर सिंह के नाम की तूती बोलती थी। वर्ष 2002 में पहली बार बस्ती जिले के हर्रैया से विधायक बने राजकिशोर ने वर्ष 2003 में मुलायम सिंह यादव का साथ कर लिया।
मुलायम की सरकार बनी तो राज्य में मंत्री भी बने। उनकी जीत का सिलसिला 2007 में भी जारी रहा लेकिन सरकार बसपा की बनी तो पांच साल इंतजार करना पड़ा। 2012 के विधानसभा चुनाव में तीसरी बार जीते और सपा सरकार में मंत्री बने। सरकार के शुरुआती सालों में सत्ता पर पकड़ मुलायम सिंह यादव की रही लिहाजा राजकिशोर भी कद्दावर छवि के मंत्री बने रहे।
सिंह के नाम की वह हनक थी कि तमाम ब्लाक प्रमुखों के ‘चयन” से लेकर गोरखपुर और बस्ती जिले में जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी का फैसला भी उन्हीं के हाथ था। अपने जिले में बेटे को जिला पंचायत का अध्यक्ष बनवाया तो गोरखपुर में तत्कालीन प्रतिकूल समीकरणों में भी अपने प्रत्याशी को जीत दिलायी। सपा में जब मुलायम सिंह यादव का दौर इतिहास के पन्नों में दर्ज हुआ तो राजकिशोर का सियासी ग्लैमर भी फीका पड़ता गया।
सीट जन अधिकार पार्टी को देने से नाराज हैं कांग्रेसी
बस्ती संसदीय सीट कांग्रेस ने अपने गठबंधन की साथी जन अधिकार पार्टी को दे रखी है। लेकिन यहां कांग्रेसी नेतृत्व के फैसले से नाराज हैं। स्थानीय कांग्रेसी यहां कांग्रेस के सिम्बल पर प्रत्याशी चाहते हैं। इसे लेकर बीते दिनों यहां समीक्षा करने पहुंचे कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव सचिन नाइक के साथ अभद्रता हुई और उन्हें कुछ देर के लिए नाराज कार्यकर्ताओं ने बंधक भी बना लिया था। यहां कांग्रेस के असंतोष की रिपोर्टिंग नेतृत्व को की जा चुकी है। इसी रिपोर्ट के चलते कांग्रेस सीट को लेकर दोबारा समीक्षा कर रही है और नए समीकरणों के साथ राजकिशोर की कांग्रेस में आने और प्रत्याशी बनने की अटकलों को बल मिला है।