धीरेन्द्र अस्थाना
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी में ही नहीं, फर्जी फार्मेसी की डिग्री पर पूरे प्रदेश में मेडिकल स्टोर चल रहे हैं। दूसरे प्रदेश की यूनिवर्सिटी के नाम पर ये फर्जी फार्मेसी की डिग्री जारी की गई हैं। इस पूरे खेल में जालसाजों के साथ ही फार्मेसी काउंसिल के तीन बाबू के भी शामिल होने की बात सामने आयी हैं।
मजे की बात ये है कि लखनऊ पुलिस ने इसका खुलासा तो कर दिया, लेकिन यूपी के स्वास्थ्य महानिदेशक इससे तब तक अन्जान थे, जब तक जुबिली पोस्ट ने उनसे पूछा नहीं। जुबिली पोस्ट के पूछने पर उन्होंने साफ कहा मुझे मामले की जानकारी नहीं है।
आधे घंटे के भीतर उन्होंने फोन कर पता किया तो जो बात बताई वो कई और सवाल खड़े करने वाली थी। जी हां, उन्होंने बताया कि फार्मेसी काउंसिल की तरफ से मुकदमा दर्ज कराया गया है, विवेचना के बाद कुछ कहा जा सकता है।
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जबकि पुलिस के अनुसार इस मामले में पकड़े गए आरोपियों ने बताया कि वे अलग- अलग नाम से एजुकेशन सेंटर चलाते हैं। उसी की आड़ में देश की अलग- अलग यूनिवर्सिटी की फर्जी मार्कशीट बनाकर फार्मेसी काउंसिल में जमा करते थे। वहां वेरीफिकेशन प्रक्रिया भी फर्जी तरीके से पूरी कराते और 70 से 80 हजार रुपए लेकर उसे दूसरो को दे देते थे।
यही नहीं पुलिस ने अपने बयान में ये साफ किया है कि यूपी फार्मेसी काउंसिल लखनऊ के विजय कुमार सिंह, विकास सिंह और सतीश विश्वकर्मा इस काम में शामिल थे।
लेकिन सवाल ये खड़ा होता है कि यूपी के स्वास्थ्य महानिदेशक डा. पदमाकर सिंह ही यूपी फार्मेसी काउंसिल के अध्यक्ष भी है और उन्हें इस मामले की जानकारी तक नहीं थी।
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काउंसिल को भेजी गई रिपोर्ट, लेकिन अध्यक्ष को मामला ही नहीं पता
फार्मेसी लाइसेंस के फर्जीवाड़े के खेल की जांच में जिन तीन बाबुओं का नाम सामने आया है। अलीगंज पुलिस ने उनकी जांच के साथ- साथ फार्मेसी काउंसिल को भी उनकी रिपोट भेजी है।
ताकि उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई के साथ- साथ इस बात का पता चल सके कि आखिर कितने समय से यह खेल चल रहा है। लेकिन इस रिपोर्ट की जानकारी विभाग के मुखिया काउंसिल के अध्यक्ष के पास न होना ये कई सवाल खड़ा करता है।
अभ्यर्थी भी फर्जीवाड़े से अन्जान
जिन अभ्यर्थियों को गैंग ने फार्मेसी की डिग्री थमाई है, वह भी इस खेल से अंजान है। क्योंकि फार्मेसी की डिग्री के लिए उन्हें इस पूरी प्रक्रिया से गुजारा जाता था, जो कि असली डिग्री जैसी होती है। गैर प्रदेशों के यूनिवर्सिटी का नाम भी इसलिए यूज किया जाता था कि अभ्यर्थी वहां जाकर इसे सत्यापित न कर सकें।
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बाबू लेते थे मोटा कमीशन
पुलिस के अनुसार इस फर्जीवाड़े में फार्मेसी काउंसिल के बाबू शामिल थे। वे डिग्री के वैरीफिकेशन को पास कराते थे। इसके बदले उन्हें मोटा कमीशन मिलता था।
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ये तीनों बाबू रडॉर पर
- विजय कुमार सिंह, यूपी फार्मेसी काउंसिल, लखनऊ
- विकास सिंह, यूपी फार्मेसी काउंसिल, लखनऊ
- सतीश विश्वकर्मा, यूपी फार्मेसी काउंसिल, लखनऊ
मामले की जानकारी नहीं है, पता करता हूं। इस प्रकरण में एफआईआर काउंसिल की तरफ से करवाई गयी है। पुलिस विवेचना कर रही है। अब देखते है किसकी क्या खामियां निकलती है।
डा. पदमाकर सिंह, स्वास्थ्य महानिदेशक उ.प्र एवं अध्यक्ष यूपी फार्मेसी काउंसिल