Sunday - 17 November 2024 - 12:19 AM

पाला बदलने में माहिर है सियासी कुरुक्षेत्र के नए ‘संजय’

मल्लिका दूबे

गोरखपुर। महाभारत में एक चर्चित्र पात्र थे संजय। अपनी दिव्यदृष्टि से वह धृतराष्ट्र को कुरुक्षेत्र के मैदान का आंखों देखा हाल बताते थे। ये यूपी की सियासत के संजय हैं। उन्हें किसी को सियासी दुनिया का आंखों देखा हाल नहीं बताना है बल्कि अपनी सियासी दृष्टि से वह कभी बीजेपी तो कभी सपा-बसपा को हैरान किए हुए हैं।

विधानसभा चुनाव में उनकी नजर में सभी दल खराब थे तो गोरखपुर के लोकसभा उप चुनाव में उन्हें सपा अच्छी, बीजेपी बुरी लगने लगी। लोकसभा चुनाव के घमासान शुरू होने पर भी उनकी दृष्टि यही थी। लेकिन सपा-बसपा गठबंधन में मनमाफिक सीटों पर बात नहीं बनी तो उन्हें शुक्रवार से उन्हें वही बीजेपी अच्छी लगने लगी जिसे सपा के टिकट पर हराकर उनके बेटे ने पिता को सांसदी का तोहफा दिया था।

योगी से मुलाकात के बाद गठबंधन से किनारा

लोकसभा चुनाव लड़ने को लेकर दो सीटों को लेकर सपा से चल रही अंदरूनी तनातनी के बीच यूपी में निषाद पार्टी ने सपा-बसपा को तगड़ा झटका दे दिया है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय निषाद ने शुक्रवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात के बाद गठबंधन से किनारा कसने के फैसला किया है।

योगी के जरिए भाजपा नेतृत्व से हुए सियासी समझौते के तहत यह बात सामने आ रही है कि बीजेपी निषाद पार्टी के लिए गोरखपुर समेत दो सीटें छोड़ेगी। सपा और बीजेपी दोनों ने ही अभी तक सीएम के गृहक्षेत्र में प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है। चूंकि महराजगंज सीट पर बीजेपी ने वर्तमान सांसद पंकज चौधरी का टिकटू घोषित कर दिया है, इसलिए दूसरी सीट जौनपुर हो सकती है। संजय सपा-बसपा गठबंधन में महराजगंज की सीट चाह रहे थे।

झटका देने में माहिर हैं संजय निषाद

यूपी में विधानसभा चुनावों से ठीक पहले निषाद बिरादरी में अपनी पकड़ के दम पर निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल (निषाद पार्टी) बनाने वाले डा. संजय निषाद सूबे की सियासत में सुर्खियों में छाये हुए हैं। विधानसभा चुनाव में उन्होंने पीस पार्टी से गठबंधन किया तो 2019 के चुनावी घमासान में पीस पार्टी को झटका देते हुए पहले सपा-बसपा गठबंधन का हिस्सा बन गये। सपा-बसपा गठबंधन ने पीस पार्टी को शामिल नहीं किया, इसके बावजूद पीस पार्टी के हमजोली रहे संजय निषाद को अपने पुराने आैर पहले साथी में दिलचस्पी नहीं रही और अब, मनमाफिक सीटों के लिए समझौता न होने पर उन्होंने बीजेपी की नाव पर सवारी कर ली है।

कौन हैं संजय निषाद

संजय निषाद इलेक्ट्रोहोम्योपैथी के डाक्टर हैं। करीब डेढ़ दशक पहले इलेक्ट्रोहोम्योपैथी के डाक्टरों को एकजुट कर उन्होंने संगठन बनाया था और इस चिकित्सा पद्धति को मान्यता देने की मांग के लिए आंदोलनरत रहे। बाद में उन्होंने सजातीय लोगों के बीच बस्ती-बस्ती चौपाल लगानी शुरू कर दी। बिरादरी में पैठ बनाने के बाद उन्होंने निषादों को अनुसूचित जाति का आरक्षण दिलाने के लिए आंदोलन शुरू कर दिया। दो साल पहले गोरखपुर के कसरवल में निषाद आंदोलन के दौरान जबरदस्त बवाल हुआ था जिसमें एक निषाद युवक की जान चली गयी थी।

संजय को जेल की हवा खानी पड़ी लेकिन इस आंदोलन के दम पर वह निषादों के बड़े नेता बन गए। बिरादरी के लोगों के दम पर उन्होंने निषाद नाम से पार्टी बनायी और पीस पार्टी के साथ समझौता कर विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी उतारे। भदोही विधानसभा सीट पर पार्टी को सफलता भी मिली। निषाद बिरादरी के वोटरों में संजय की पकड़ को देखकर ही सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने उनके बेटे प्रवीण निषाद को गोरखपुर लोकसभा उप चुनाव का प्रत्याशी बनाया था। बेटे की जीत के बाद उनका रुतबा और बढ़ गया।

आवास पर सुरक्षा बढ़ायी गयी

शुक्रवार को संजय निषाद की सीएम योगी आदित्यनाथ से मुलाकात के बाद सपाइयों के आक्रोश को भांपते हुए गोरखपुर में प्रशासन ने उनके आवास पर सुरक्षा बढ़ा दी है। सपा-बसपा गठबंधन से संजय के किनारा कसने से सपाइयों में जबरदस्त उबाल है।

 

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