वीपी श्रीवास्तव
जल ही जीवन है। जल के बिना जीवन की कल्पना असम्भव है। पूरेे ब्रह्माण्ड में पृथ्वी ही एक मात्र ज्ञात ग्रह है, जहां जीवन सम्भव है और उसका कारण केवल इतना है कि यहां जल और ऑक्सीजन दोनों उपलब्ध हैं। जल प्रकृति की देन है और कुछ वर्ष पूर्व तक सबके लिए सहज उपलबध था। परन्तु आज जहां विभिन्न आवश्यकताओं के लिए जल की मांग लगातार बढ़ती जा रही है, वहीं अन्यान्य कारणों से उसकी उपलब्धता में कमी होती जा रहा है और साथ ही उपलब्ध जल प्रदूषित होता जा रहा हैं, जिसके कारण, भारत देश को ही लें, तो 70 प्रतिशत बीमारियां जल-जनित हैं।
जीवन में जल के महत्व, उसकी उपलब्धता में होते हुई कमी तथा गुणवत्ता के गिरते स्तर को देखते हुए वर्ष 1993 में संयुक्त राष्ट्र की सामान्य सभा के द्वारा प्रति वर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस के रूप में मनाने का निर्णय किया गया, जिसमें लोगों को जल का महत्व, आवश्यकता एवं संरक्षणता बढ़ाने के लिए जागरूक किया जा सके।
इस अवसर पर वैश्विक सन्देश फैलाने के लिए यूएन एजेन्सी द्वारा प्रति वर्ष एक थीम (विषय) का चुनाव भी किया जाता है। वर्ष 2022 के लिए यह थीम भूगर्भ जल-अदृश्य को दृश्य (Ground Water, Making the Invisible Visible) बनाना है। वर्ष 2023 के लिए यह थीम Accelerating Change अर्थात् रखा गया है। यह थीम जल और स्वच्छता संकट को हल करने के लिए पानी के उपयोग, उपभोग और प्रबन्धन के तरीके को बदल कर और उसमें तेजी लाकर कार्रवाई करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
यहां पानी का अर्थ पीने योग्य स्वच्छ पानी से है। वर्ष 2010 मे संयुक्त राष्ट्र ने स्वच्छ एवं साफ पेय जल के अधिकार को मानव के मूलभूत अधिकार के रूप में होने की व्यवस्था दी थी।
इसी प्रकार विश्व संगठन द्वारा 2015 में घोषित सतत् विकास लक्ष्य 2030 (Sustainable Development Goals – 2030) के लक्ष्य संख्या-6 के रूप में को अंगीकृत किया, जिसे विश्व स्तर पर 2030 तक पूरा करने का लक्ष्य है। पूरे विश्व में धरती का लगभग तीन चौथाई भाग जल से घिरा हुआ है। इसमें से 97 प्रतिशत पानी खारा है, जो पीने योग्य नहीं है।
शेष तीन प्रतिशत में भी दो भाग पानी ग्लेिशयर्स एवं बर्फ के रूप में है। इस प्रकार सही मायने में मात्र 1 प्रतिशत पानी ही मानव के उपयोग के लिए उपलब्ध है, जिसका 80 प्रतिशत भाग खेती व कल-कारखानों में खपत होती है और 20 प्रतिशत भाग खाने, पीने, नहाने, साफ-सफाई में खपत होता है। पीने योग्य स्वच्छ पानी की उपलब्धता मे लगातार भारी गिरावट होती जा रही है, जिसका कारण पानी का अंधाधुंध दोहन, जंगलों का कटना तथा झील, पोखरों आदि का पटान है।
कृषि उत्पादन बढ़ाने में भूमिगत जल की महत्वपूर्ण भूमिका है परन्तु भूमिगत जल का दोहन इस सीमा तक बढ़ गया है कि लाखों कुएं, तालाब तथा ट्यूबवले सूख गये हैं और जल-स्तर कई-कई मीटर नीचे चला गया है।
प्रदेश में 70 सिंचाई भूमिगत जल से होती है। भारत अब भूजल पर आश्रित देश हो चुका है और दुनिया का सबसे बड़ा भूजल उपभोक्ता है। प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता की सूची में भारत 133वें स्थान पर है।
प्रति वर्ष देश में चार हजार अरब घनमीटर बारिश होती है परन्तु व्यवस्था की कमी से केवल 12 ही हम उसका उपयोग कर पाते हैं।
इसी कारण से प्रधानमंत्री ने ब्ंजबी जीम त्ंपद का नारा दिया है, जिसके लिए वर्षा जल संचयन (Rain Water Harvesting) बढ़ाना होगा। इसे शहर और गाँव दोनों जगह अमल में लाना होगा और समाप्त हो गये तालाबों, झीलों, पोखरों, कुंओं को पुनर्जीवित करना होगा। इसके साथ ही एक माप से बड़े मकानों के लिए वर्षा जल संचयन अनिवार्य करना होगा।
वैश्विक स्तर पर बात करें तो 1850 से अर्थात् औद्योगिक क्रान्ति के बाद से पृथ्वी के नम भूमि (Wet Land) जो पानी के उत्सर्जन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, में से 80ः समााप्त हो गये हैं, जिन्हें संरक्षित व पुनर्जीवित करना होगा। इसी प्रकार पेड़ों की जड़ें अस्थाई जल संचयक (Sponge) के रूप में काम करते हैं जो बरसात के पानी को संग्रहीत करते हैं और उसे बाद में रिलीज करते हैं।
इसलिए जल उपलब्धता के लिए वनों का काटना भी रोकना होगा। इन्हीं पेड़ों के माध्यम से धरती के अन्दर पानी भी जाता है, जिससे भूजल बढ़ता है।
जंगल और पेड़ ग्रीन गैसों को सोखने का भी कार्य करते हैं, जिससे नेट उत्सर्जन में कमी आती है और ग्लोबल वार्मिंग से बचाता है। ग्लोबल वार्मिंग से ग्लेशियर पिघल कर समुद्र में जाकर समुद्र के जल स्तर को बढ़ाता है, जो मानवता और समुद्री जीवों के लिए विध्वंसकारी है।
आने वाले समय में जहाँ स्वच्छ पेयजल की कमी को लेकर विश्व युद्ध की सम्भावना जताई जा रही है, वहीं दूसरी ओर जो जल हमारे पास उपलब्ध है, वह प्रदूषित होता जा रहा है।
जल जनित बीमारियों के कारण प्रति वर्ष विश्व में 22 लाख मौतें होती हैं। वर्ष 2017 में प्रकाशित एक वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 6.30 करोड़ लोगों के पास पीने योग्य पानी उपलब्ध नहीं है।
विश्व संसाधन संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 10 करोड़ लोग ऐसे क्षेत्र में रहते हैं, जहाँ पेयजल अत्यन्त प्रदूषित है। इसके अनुसार देश के 632 जिलों में से केवल 59 जिलों का पानी ही सुरक्षित है। भारत सरकार की रिपोर्ट के अनुसार उपलब्ध पेयजल में से 70 प्रतिशत पानी बिना ट्रीटमेन्ट किये पीना सुरक्षित नहीं है।
प्रदूषित होता पानी
पेयजल दो स्रोतों से प्राप्त होता है – नदियों से एवं भूमिगत जल से। घरेलू तथा औद्योगिक कचरे से सभी नदियाँ, झील तथा तालाब प्रदूषित हो गयेहैं, वहीं सुरक्षित माना जाने वाला भूमिगत जल भी प्रदूषित हो रहा है, जिससे जन-स्वास्थ्य को गम्भीर संकट पैदा हो गया है क्योंकि सिंचाई तथा पेयजल के लिए भूमिगत जल मुख्य स्रोत है।
घरेलू तथा औद्योगिक कचरे की मात्रा बढ़ने से तथा उनका ट्रीटमेन्ट न होने से उनमें मौजूद विभिन्न रसायन तथा भारी धातुएं भूमि के जल में रिसाव के माध्यम से पहुंच कर उसे प्रदूषित कर रहे हैं। जल में विभिन्न प्रकार के खनिज तत्व मौजूद होते हैं परन्तु सुरक्षित पेयजल में उनकी सीमा निर्धारित है। उससे अधिक होने पर वे विभिन्न रोगों के कारक बन जाते हैं। मानकों के अनुसार पेयजल में सल्फेट्स (मैग्निशियम, कैल्शियम, सोडियम आदि के) की अधिकतम मात्रा 200 मिलीग्राम प्रति लीटर तथा क्लोराइड्स की अधिकतम मात्रा 250 मिलीग्राम प्रति लीटर स्वीकार्य है।
इसी प्रकार धातुओं में आर्सेनिक 0.01 मिलीग्राम प्रति लीटर, लेड 0.01 मिलीग्राम प्रति लीटर, क्रोमियम 0.051 मिलीग्राम प्रति लीटर, आयरन 0.03 मिलीग्राम प्रति लीटर तथा फ्लोराइड 1.0 मिलीग्राम प्रति लीटर स्वीकार्य है। इसमें सबसे अधिक आर्सैनिक खतरनाक स्थिति में पहुंच गया है।
प्राप्त आंकड़ों के अनुसार देश में 21 राज्यों के 153 जिलों में रहने वाले करीब 24 करोड़ लोग खतरनाक आर्सैनिक स्तर वाला पानी पी रहे हैं, जिसमें 24 जिलों में करीब 7 करोड़ लोग उत्तर प्रदेश से हैं। बहराइच, बलरामपुर, बाराबंकी सबसे अधिक प्रभावित जिलों में है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी दी है कि लम्बे समय तक आर्सैनिकयुक्त पानी पीने से आर्सिनोकोसिस, त्वचा कैंसर, गाॅल ब्लैडर, किडनी या फेफड़े की बीमारी हो सकती है।
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में वाराणसी, सोनभद्र सहित 07 जिलों में कुछ जगहों पर पेयजल में फ्लोराइड इतना अधिक हो गया है कि उससे हड्डी एवं जोड़ों सम्बन्धी बीमारियाँ फैल रही हैं।
शुद्ध जल मौलिक अधिकार है
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में जल, विशेष रूप से नदियों के प्रदूषण और उससे लोगों की सेहत पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव पर चिन्ता जताते हुए कहा है कि साफ पर्यावरण व स्वच्छ जल व्यक्ति का मौलिक अधिकार है।
कोर्ट ने कहा है कि संविधान का अनुच्छेद-21 जीवन का मौलिक अधिकार देता है और इस अधिकार में गरिमा के साथ जीवन जीने और शुद्ध जल का अधिकार शामिल है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि अनुच्छेद 47 और 48 में जन स्वास्थ्य ठीक रखना और पर्यावरण संरक्षित करना राज्य का दायित्व है।
साथ ही प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह प्रकृति अर्थात् वन, नदी, झील और वन्य जीव का संरक्षण और रक्षा करें। पर वास्तविकता क्या है – देश का 70ः पेयजल दूषित है, 50ः से भी कम आबादी को ही शुद्ध पेयजल नसीब हो रहा है। जल गुणवत्ता सूचकांक में 122 देशों की सूची में भारत तीसरा सबसे खराब पानी वाला देश है।
प्राकृतिक नियमों से खिलवाड़, प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधंध दोहन और पर्यावरण के प्रति संवेदनहीनता से मानव ने विकास के नाम पर आपदा मोल ले ली है। यदि आज हम सतर्क नहीं हुए तो भविष्य में आने वाली पीढ़ियाँ हमें कोसेंगी और उनका जीवन दुर्लभ हो जायेगा।
(लेखक एक पर्यावरणविद तथा सामाजिक संस्था C Carbons के अध्यक्ष हैं)