देवेन्द्र आर्य सिर्फ कवि नहीं हैं. वह जनकवि की भूमिका में रहते हैं. उनकी कविताएं आम आदमी की आवाज़ भी बनती हैं और आम आदमी के सवालों को भी बड़ी शिद्दत से उठाती हैं. देवेन्द्र आर्य की कविताओं में सिस्टम, समाज, सरकार और सरकार के सरोकारों पर बड़े सलीके से बात होती है.
जुबिली पोस्ट में हम अक्सर ऐसे जनकवियों की रचनाएं पाठकों तक पहुंचाते हैं जिसे पढ़कर पढ़ने वाले को लगता है कि कवि ने उसी की बात की है. लीजिये पढ़िए देवेन्द्र आर्य की दो कवितायें :-
( एक )
मतों की संख्या ने एक बार फिर साबित किया
कि देश में बढ़ रही बलात्कार की प्रवृत्ति
दरअस्ल प्यार की नयी तकनीक है
कृष्ण के वस्त्र-हरण से
दुर्योधन के चीर-हरण तक की
संवेदना का आधुनिक विस्तार
मतों की संख्या ने साबित किया कि
गाड़ी से कुचले गए लोग
जीते जी वास्तविक मोक्ष के आकांक्षी थे
जिनके लम्बित आवेदनों पर त्वरित कार्यवाही
आवश्यक थी
मतों की संख्या ने साबित किया
कि समस्या रोज़गार के अवसरों की कतई नहीं
अयोग्यता की है
जिसे छिपाने का प्रोपेगेंडा रही हैं हड़तालें
मतों की संख्या बताती है कि
मई दिवस जनता की निगाहों में काला दिवस है
जनता की अहर्निश सेवा करने वाली सरकार को
इतना भी हक़ नहीं क्या कि
वह सौ पचास लोगों को अपनी मर्ज़ी से
आई.ए.एस बना दे
और पढ़ाई-लिखाई-परीक्षा में नष्ट होने वाले समय को
देश सेवा में ख़र्च करे
मतों की संख्या ने
साबित करके रख दिया
कि किसानों से अन्नदाता का ख़िताब
कब का वापस ले लिया जाना चाहिए था
ये खेतों में पसीना नहीं हरामख़ोरी बोते रहे हैं
सोचिये कि मतों की संख्या ने
कितनी कुर्ताझार सच्चाइयों की कलई खोल दी
जिसे मृग-मरिचिका की तरह
आज-तक पोसाया जा रहा था
मतों की संख्या ने मीडिया पर लग रहे
आरोपों को भी धो-पोछ दिया
मतों की तल्लीझार सफ़ाई ने साबित किया
कि मुख्य धारा का मीडिया ही नहीं
सोशल मीडिया भी बिकाऊ होता है
ग्राउंड रिपोर्टिंग असल में
पूंजी राउंड रिपोर्टिंग का ही दूसरा नाम है
बड़े मियां बड़े मियां
छोटे मियां सुब्हानअल्लाह !
मतों की संख्या ने सारे हाइप को
प्रोटोटाइप साबित कर दिया
अरे आपको ऐसे ही समझ लेना चाहिए था
कि बनिया चार पैसे वहीं लगाता है
जहाँ उसके आठ बनने की गुंजाइश हो
ऐसे में सरकार का चुनावी दायित्व है कि वह
देश हित में चार के आठ की रक्षा करे
मतों की संख्या ने ऐसे तमाम उधेड़बुनी मसलों पर
अलिखित फ़ैसला दिया है
जिसे किताब बांचने वाले कोट
फीस काटने के चक्कर में
सालों साल लटकाए रहते हैं
इतनी सारी बीमारियां और समाधान सिर्फ़ एक !
चुनाव
एक ही साधे सब सधे
तो साधो
देखना होगा कि देश में
प्रति वर्ष चुनाव कराए जाने के ख़र्च
और तमाम सुनवाई महकमों
समेत न्यायालयों के ऊपर होने वाले ख़र्च में से
कौन किफ़ायती पड़ेगा
जनता के टैक्स के पैसों की बर्बादी
बरदाश्त नहीं की जानी चाहिए
(दो)
सवालों का गीत
हिन्दू पानी मुस्लिम पानी
क्या पीओगे
हिन्दू जीवन मुस्लिम जीवन
क्या जीओगे
हिन्दू कपड़ा मुस्लिम कपड़ा
क्या पहनोगे
हिन्दू आंसू मुस्लिम आंसू
क्या रोओगे
हिन्दू रोटी मुस्लिम रोटी
क्या खाओगे
हिन्दू सरगम मुस्लिम सरगम
क्या गाओगे
हिन्दू रोज़ी मुस्लिम रोज़ी
कौन चाकरी
हिन्दू कविता मुस्लिम कविता
कौन शायरी
हिन्दू रातें मुस्लिम रातें
कौन सबेरा
हिन्दू सूरज मुस्लिम सूरज
किसका फेरा
हिन्दू क़ुदरत मुस्लिम क़ुदरत
कौन सी क़ुदरत
हिन्दू इज़्ज़त मुस्लिम इज़्ज़त
कौन सी इज़्ज़त
हिन्दू ईश्वर मुस्लिम मौला
क्या पूजोगे
ओ कमबख़्तों
हिन्दू भक्तों
तुम हालात से क्या जूझोगे !
मंदिर मस्जिद ख़ाक में मिल जाएंगे एक दिन
बेघर हो जाएंगे रब और राम एक दिन
बिक जाएगा औने पौने दीन धरम सब
तब जागोगे ?
है तेरा ईमान मुसल्लम
क्यों नहीं बन सकता हिजाब आंचल सा परचम
कौन जलाएगा चराग़ इस देश के लिए ?
कौन करेगा दीया बाती बंदों ख़ातिर ?
हिन्दू लुक्कारा या मुस्लिम मश्अल
बोलो क्या जलाओगे ?