Friday - 25 October 2024 - 9:34 PM

जनहित की योजनाओं को बर्बाद करने वाली सरकार

योगेश यादव

उत्तर प्रदेश विधान सभा 2017 के चुनावों से पहले जब प्रदेश में अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी सरकार काम कर रही थी केंद्र में सरकार बन जाने के बाद भाजपा प्रदेश में भी विपक्ष की प्रमुख पार्टी बन गई थी। प्रदेश में होने वाले अगले चुनाव के लिए सभी विपक्षी दलों के द्वारा बड़े स्तर पर तैयारी की जा रही थी और सभी दल अखिलेश यादव सरकार के खिलाफ माहौल बनाने में लगे हुए थे, उस वक्त भाजपा ने अपराध एवं कानून व्यवस्था को मुद्दा बनाने के साथ प्रधानमंत्री के मंच से शमशान बनाम कब्रिस्तान की बात करके ध्रुवीकरण की एक सफल चाल चली थी।

नौकरियों मे एक जाति के लोगो को भरे जाने और 86 एस.डी.एम. के पदों में से 56 पदों पर एक जाति के लोगो को भर्ती किये जाने को लेकर बहुत हल्ला मचाया था जिसे लेकर उस वक्त प्रदेश के पिछड़ी जातियों से आने वाले कई नेताओं ने(जो बाद में भाजपा के चुनाव में सहयोगी भी बने) ने भी अपने-अपने प्रभाव के इलाकों में तात्कालीन सरकार के खिलाफ माहौल बनाया। इन मुद्दों के साथ प्रदेश में साढ़े पांच मुख्यमंत्री होने जैसे कई मुद्दे ऐसे बनाये गये थे जो भाजपा सरकार के 3 साल बीत जाने के बाद उनके नितान्त झूठ होने पर जनता को कोई भ्रम नहीं रह गया है|

खैर उक्त चालों और रणनीतियों के सफल हो जाने के बाद जब प्रदेश में भाजपा सरकार बनाने में सफल हो गई थी और पहले से ही पिछड़े वर्ग नेताओं को काम निकल जाने के बाद दरकिनार कर देने के लिए कुख्यात भाजपा ने उसके जातीय भगवा चोले में फिट बैठने वाले गोरख पीठ के महंत योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया था । उन्होंने उस अखिलेश यादव की जगह कार्यभार सम्हाला , जिन्होंने उच्च शिक्षित और तकनीकी से रूप से सक्षम 108,102 योजना, महिला सुरक्षा के लिए 1090 योजना, और पुलिस आधुनिकीकरण की डायल 100 जैसी योजना,प्रदेश की राजधानी में मेट्रो ट्रेन आदि का काम किया था। आगरा से लखनऊ एक्सप्रेसवे एक ऐसी कल्पना और सोच थी जिसने प्रदेश को अन्य राज्यों के तुलना में काफी सम्मानजनक स्थति में पंहुचा दिया था। एक्सप्रेसवे के किनारे किसानों के मंडियों के बनाये जाने की योजना थी और इसके साथ नॉएडा में सैमसंग मोबाइल ने देश में अपना सबसे बड़ा सेंटर बना लिया था। प्रदेश के नौजवानों के रोजगार के लिए लखनऊ में बनाई गई आईटी सिटी में HCL का काम शुरू करना एक बड़ी उपलब्धि थी । इसी तरह कई बनारस समेत प्रदेश के कई जिलों में अमूल ने अपना दुग्ध प्लांट लगाया था। इस तरह की योजनाओं की एक लम्बी फेहरिस्त है जिसके द्वारा अखिलेश यादव ने अपने द्वारा शुरू की गई योजनाओं और कार्यों के जरिये देश के नेताओं में अपनी अलग जगह बना ली थी।

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यह बात भाजपा के अंदर भी उस वक्त दरकिनार किये गये BHU से शिक्षित और केंद्र में मंत्री रहे मनोज सिन्हा और अपने हर सभा में उस वक्त की सरकार के खिलाफ और अपने सजातीय पिछडो को भाजपा के साथ जाने के लिए ललकारने वाले केशव प्रसाद मौर्या को भी नागवार लगी थी।

ठीक उसी वक्त प्रदेश की जनता को भी मुख्यमंत्री के रूप में ठगे जाने जैसा प्रतीत हुआ था। योगी आदित्यनाथ ने मुखमंत्री की शपथ लेने के बाद बड़े जोर शोर कार्य शुरू किया । पूर्व की योजनाओ की जाँच का ड्रामा कई महीने चला जिसके बाद सरकार पर अपने कार्यो और एजेंडे को लागु करने का दबाव बढ़ा। साथ ही शुरू से ही यह स्पष्ट होता गया की प्रदेश में मुख्यमंत्री तो योगी बाबा है पर सारे नीतिगत फैसले इनके परामर्श के बिना ही होते है । इसका सबसे प्रमुख कारण योगी आदित्यनाथ का पूर्व में कोई प्रशासनिक अनुभव का न होने के साथ मुख्य सचिव, DGP जैसे मुख्य अधिकारीयों की तैनाती में दिल्ली और राजस्थान का जोर होना शामिल है जो आज तक अनवरत रूप से चल रहा है ।

एक-दो अधिकारीयों को छोड़ दिया जाये तो शेष के उपर मुख्यमंत्री के साथ विभागीय मंत्रियों की बातों को न मानने जैसे बाते अक्सर सामने आती रहती है। शासन- प्रशासन से जुड़े लोग दबी जुबान यह भी कहते सुने जाते है की मुख्यमन्त्री जी की रूचि के पुलिस जैसे 1-2 और विभागों को छोड़ दिया जाये तो बाकी से उनको बहुत ज्यादा मतलब नहीं है या उपर से कोई निर्देश है। कैबिनेट की बैठक के बाद सरकार की बातों की जानकारी देने के लिए कई मंत्री मुख्यमंत्री के रूप में तैनात है।

पिछले तीन साल से जारी इस घोर अव्यवस्था के कारण पूर्व की सरकार द्वारा शुरू की गई कई जनहित की बेहतरीन योजनायें या तो बंद कर दी गई जिसमे प्रदेश के 55 लाख परिवारों के महिला मुखिया को मिलने वाली 500 रूपये की मासिक पेंशन शामिल है । 108 योजना इस कदर घोर उपेक्षा एवं अव्यवस्था की शिकार है की 108 एम्बुलेंस में तेल ना होने की खबरे आये दिन अख़बारों में आती रहती है। 108 योजना का इस कदर बैठ जाना जनहित का बहुत बड़ा नुकसान है। इसके साथ दुनिया की आधुनिकतम योजनाओं में गिनी जाने वाली डायल 100 योजना को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आँखों के तारे रहे अफसरों ने इस कदर उनकी आँखों के सामने बर्बाद किया की कोई भी पीड़ित व्यक्ति डायल 100 पर फ़ोन करने से पहले अपने जेब में हजार-दो हजार रूपये होना सुनिश्चित कर लेता है , क्योकि आधुनिकतम व्यवस्था से सुसज्जित गाड़ी से आने वाले साहब लोगो को नमस्ते भी करना पड़ता है।

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यह बात सत्ता से जुड़े मंत्री और विधायक कई बार बोल चुके है क्योंकि यह आम है की भाजपा के जनप्रतिनिधियों और कार्यकर्ताओं की थानों और तहसीलों में कोई भी सुनवाई नहीं है। कुछ ने अधिकारीयों से अपना व्यवहार केवल अपने कामों और विरोधियों को प्रताड़ित करने भर का बना रखा है। आईएस और आईपीएस अधिकारीयों की तैनाती में जातिवाद और भ्रष्टाचार किस कदर हावी है इसका अंदाज़ा नॉएडा के पूर्व एसएसपी के शासन को लिखे पत्र से ही लगाया जा सकता है। आम जनता त्रस्त है की वह जाये तो जाये कहा ?

प्रदेश का किसान जानवरों की समस्या से इस कदर परेशान है की वह खून का आंसू रो रहा है। सिंचाई की समस्या के सुधार के लिए सरकार ने कुछ नहीं किया अलबत्ता भाजपा के ही सरकार के लोगो ने किसानों के खाद की बोरी में से पांच किलो खाद कम कर दी। बेरोजगार इस कदर परेशान है की एक तो सरकार ने बेरोजगार नवजवानों को रोजगार सृजन के लिए कोई कार्य नहीं किया अलबत्ता कई लाख शिक्षा मित्रों की स्थाई नौकरियां चली गई।

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अब, जब सरकार का कार्यकाल ढलान की ओर है तब सरकार और मुख्यमंत्री को अपने मुह मिट्ठू बनाने वाले सरकार की योजनाओ का प्रचार कम पत्रकारों पर नियंत्रण रखने की भूमिका निभाने में विभाग के कलाकारी के कोटे के अधिकारी के साथ मिलकर मुख्यमंत्री अब विज्ञापनों पर हजारो करोड़ो रूपये खर्च कर अपने मुह ही अपनी तारीफ करने में व्यस्त है।

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है की तीन साल में प्रदेश की जनता के सपनों पर तुषारपात ही हुआ है और इस कदर की अव्यवस्था, अराजकता और अत्याचार के आलम में मुख्यमंत्री का शिक्षा और सबके सुरक्षा के साथ अन्य किसी योजनाओ की बात करना अपने मुह मिट्ठू बनने जैसा ही है।

(लेखक समाजवादी पार्टी के नेता हैं, यह उनके निजी विचार हैं)

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