न्यूज डेस्क
लोकसभा चुनाव में शुन्य से 10 सीटों तक पहुंची बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की मुखिया मायावती ने अपने गठबंधन के साथी रहे समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव पर मुसलमानों को टिकट देने से मना करने का आरोप लगाया है।
मायावती ने कहा है कि अखिलेश ने मुझे संदेश भिजवाया कि मुसलमानों को ज्यादा टिकट नहीं दूं। इसके पीछे धार्मिक आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण होने का तर्क दिया गया। हालांकि मैंने उनकी बात नहीं मानी।
मायावती के इस बयान से देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की सियासत में मुसलमान सियासी विमर्श के केंद्र में आ गए हैं। खुद को मुसलमानों की हितैषी बताती रही सपा सवालों के घेरे में आ गई है। सवाल उठने लगे हैं कि क्या सपा वास्तव में देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में मुसलमानों की भागीदारी की विरोधी है?
सपा के अध्यक्ष ने आखिर मायावती से मुसलमानों को ज्यादा टिकट न देने के लिए क्यों कहा, सियासी गलियारों में इसे लेकर चर्चा शुरू हो गई है और ये भी सवाल उठने लगा है कि क्या अखिलेश मुस्लिम विरोधी हैं।
आपको बता दें कि इससे पहले 2017 में अखिलेश यादव पर मुस्लिम विरोधी होने का आरोप लगा था। तब उनके पिता सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि अखिलेश मुस्लिम पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) की नियुक्ति करने की उनकी राय से नाखुश थे, जिसके बाद इस बात की काफी चर्चा हुई थी क्या अब सपा का मजबूत मुस्लिम वोट बैंक उससे अलग हो जाएगा।
आपको बता दें कि समाजवादी पार्टी का मूल वोटों का आधार यादव और मुसलमानों का ही रहा है। 2017 यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान जब हर तरफ इस बात की चर्चा हो रही थी कि अखिलेश मुस्लिम विरोधी हैं उस समय भी मायावती ने इस बात का फायदा उठाने की कोशिश की और सूबे की 403 सीटों पर 96 सीटें मुस्लिम उम्मीदवारों को दी थी।
2022 विधानसभा चुनाव और आगामी उपचुनाव से पहले मायावती का अखिलेश यादव पर आये इस बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में एक बार फिर ये चर्चा को शुरू हो गई है कि अखिलेश मुसलमानों को लेकर क्या राय रखते हैं। वहीं मायावती मुस्लिम वोटरों को ये दिखाना चाहती है कि यूपी में मुस्लिम हितैशी और बीजेपी को पटखनी देने के लायक अगर कोई पार्टी है तो वो बसपा है।