डा. सी पी राय
आज चौधरी अजीत सिंह का 82 वर्ष की आयु में निधन हो गया जो कुछ दिनों से गुरग्राम के एक अस्पताल मे जीवन के लिये संघर्ष कर रहे थे। अजीत सिंह किसानों के नेता और एक समय इन्दिरा गांधी के बाद सबसे सशक्त और जनाधार वाले नेता पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पुत्र थे इसलिए राजनीति तो उन्हें विरासत में मिली थी।
यदपि वो प्रारंभ से राजनीति मे नहीं थे बल्कि पहले लखनऊ से बीएससी फिर आईआईटी खडगपुर से कम्प्यूटर साइंस मे बीटेक किया और फिर इलिनोइ इन्स्टिट्यूट औफ़ टेक्नोलाजी शिकागो अमरीका से एमएस किया और उसके बाद अमरीका में ही कम्प्यूटर साइंटिस्ट के रूप मे 17 साल तक काम किया।
भारत वापस आने के बाद राजनीति में भी इनका लम्बा पर उठा पटक वाला जीवन रहा। पहले इनके पिता की बनायी पार्टी लोकदल का बटवारा हुआ फिर 1989 मे भाजपा और साम्यवादी को छोड़ सभी विपक्षी दलों के विलय से बने जनता दल बनने के बाद चुनाव के बाद ये मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हो गये।
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मुझे आज भी याद है की उस चुनाव के लिये जोर्ज फर्नांडीज, मधू दंडवते और चिमन भाई पटेल पर्यवेक्षक बन कर आये थे और उस चुनाव में प्रारम्भ से ही मुलायम सिंह यादव को मुख्यमंत्री के रूप में लोग देख रहे थे। पहले प्रयास हुआ कि चुनाव की नौबत न आये और सहमती से मुख्यमंत्री हो जाये पर अजीत सिंह के लोग तैयार नही हुये। एक समय ऐसा भी आया की मुलायम सिंह यादव ने कहा की अजीत जी मेरे नेता के पुत्र है और मेरे नेता है, वो दिल्ली मे मेरे नेता रहेंगे चौधरी साहब की तरह। इस पर मधू दंडवते और जोर्ज ने भी स्टेट गेस्ट मे समझाया और मुलायम सिंह भी आकर मिले और वही सामने भी कहा पर चुनाव ही विकल्प बचा।
उस वक्त तक उस वक्त के प्रधानमंत्री और जनता दल के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रताप सिंह का भी इन पर हाथ था क्योंकि वो मुलायम सिंह की पसंद नही करते थे।पर चुनाव से पहले ही वी.पी सिंह के गुट मे पलटी मार दिया। एक दिन पहले शाम को हम लोग मुलायम सिंह के निवास के ऊपर वाले हिस्से मे बैठे विमर्श कर रहे थे की अचानक नीचे से फोन आया की वी.पी सिंह के करीबी विधायक सच्चिदानंद वाजपेयी और मुहम्मद असलम मिलने आये है जो दोनो बाद मे मंत्री भी बने। दोनो को ऊपर बुला लिया गया। दोनो वी.पी सिंह गुट के विधायको का समर्थन देने आये थे। अगले दिन वोट पड़े और मुलायम सिंह यादव जी मुख्यमंत्री हो गये।
मधू दंडवते ने गिनती कर रिजल्ट बगल में बैठे अजीत सिंह को बताया और पूछा की क्या कितने कितने वोट पड़े ये घोषित करे ? तो अजीत सिंह ने मना कर दिया और उठ कर चले गये और वही से फिर एक गांठ पड़ गई चौधरी साहब के अपने ही दो लोगो के बीच, एक बेटा और एक समर्थक।
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काश मुलायम सिंह का दिल्ली में उन्हें नेता मानने का प्रस्ताव अजीत सिंह जी ने 1989 के उस दिन स्वीकार कर लिया होता तो कम से कम उत्तर प्रदेश हरियाणा और बिहार ही नहीं बल्कि उड़ीसा और राजस्थान इत्यादी का राजनीतिक दृश्य कुछ और हो सकती था जैसा चौधरी साहब के समय था पर राजनीति मे खुश करने का ठेका लिये हुये तथाकथित अपने लोग नेता को कही का नही छोड़ते है।
एक बार अजीत सिंह जी के साथ मुझे हेलिकोप्टर में दौरा करने का और सभाये करने का मौका मिला जब अमर सिंह के कारण मैं बेनी प्रसाद वर्मा, आज़म खान साहब और राज बब्बर पार्टी से निकाल दिये गये थे। उसी दौरे मे मैने अजीत सिंह से कहा था की कांग्रेस की उत्तर प्रदेश की जमीन बंजर होती जा रही है अगर आप कांग्रेस के साथ रहेंगे तो केन्द्रीय नेतृत्व में तो महत्वपुर्ण होंगे ही उत्तर प्रदेश के मुख्य नेता बने रहेंगे क्योंकि आप के अलावा कोई नही है जिसका इतनी सीटो पर मजबूत जनाधार है और भी बाते हुयी राजनीति की और उन्होंने मेरी बात से सहमती जताते हुये मुझे अपना व्यक्तिगत मोबाइल नंबर दिया तथा
तय हुआ की मिलता रहा जाये और बातचीत होती रहे लगातार। वो और खुश हुये जब उन्हें पता लगा कि मैं राज नारायण जी की वजह से राजनीति मे हूँ और उनके लिये पुत्रवत था।
पर जो भी रहा अजीत सिंह ने किसानो के मुद्दो को लगातार उठाया और अपनी पिता की विरासत जोड़े रखने की पूरी कोशिश किया। बार-बार परिवर्तन के कारण उनकी राजनीति को झटका भी लगा और पिता-पुत्र दोनो हार गये और विधान सभा मे भी पार्टी अनुपस्थिति हो गई।
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अजीत सिंह मंत्री वाणिज्य और उद्योग रहे जनता दल की विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार में फिर मंत्री खाद्य प्रसंस्करण रहे, कांग्रेस की नरसिंहा राव सरकार में और कृषि मंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी की भाजपा सरकार मे तथा नागरिक उड्डयन मंत्री कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार में। 1986मे राज्य सभा सदस्य बने फिर 1989 में लोक सभा में चुने गये, फिर 1996 में इस्तीफा देकर फिर 1997 में जीते 1998 मे सोमपाल शास्त्री से हार गये 1999 मे 2004 और 2009 मे फिर लोक सभा चुनाव जीते।
अजीत सिंह एक उच्च शिक्षित और प्ररिब्द्ध नेता थे, उन्होने शिक्षा और अमरीका में अनुभव लिया था उसका सदुपयोग भारत में ठीक से नही हो पाया। अपने पीछे उन्होने दो बेटियो और एक बेटा जो अब उनके दल का नेता है का भरा पूरा परिवार अपने पीछे छोड़ा है। जीत हार अलग बात है पर चौ. अजीत सिंह उत्तर प्रदेश से हरियाणा तक के बड़े हिस्से के सबसे सम्मानित नेता थे जिनकी कमी जल्दी दूर नही हो पायेगी।
(स्वतंत्र राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार)