के पी सिंह
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को सोनभद्र जाने से रोकने के मामले में जनमानस को हाईवोल्टेज पोलिटिकल ड्रामा देखने को मिला। नरसंहार में 11 आदिवासियों के मारे जाने के बावजूद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अभी तक उदासीन रूख अख्तियार किये हुए थे। ट्यूट में मास्टर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी इस भीषण कांड पर चुप्पी अख्तियार कर रखी थी जिसे लेकर सोशल मीडिया पर उनकी लानत मलामत हो रही थी।
प्रियंका गांधी वाड्रा द्वारा मचायी गई हलचल का नतीजा यह हुआ कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को रविवार को अपना हैलीकाप्टर उम्भा में उतारकर पीड़ित परिवारों के आंसू पोंछने पड़े। वहां उन्होंने मृतकों के आश्रितों को मुख्यमंत्री कोष से बड़ी रकम मुआवजे के लिए देने की घोषणा की है जिसका श्रेय प्रियंका को ही मिलेगा।
योगी आदित्यनाथ की बजाय उत्तर प्रदेश में भाजपा का मुख्यमंत्री कोई राजनीतिक व्यक्ति होता तो प्रियंका के सोनभद्र जाने के मामले को इस तरह डील नहीं करता। मुरली मनोहर जोशी ने जब श्रीनगर के लाल चैक में झंडा फहराने के लिए एकता यात्रा निकाली थी उस समय मजे हुए राजनीतिज्ञ नरसिंहाराव प्रधानमंत्री थे। नरसिंहाराव ने जोशी को गिरफ्तार कर जेल भिजवाने की बजाय उन्हें सरकारी हैलीकाप्टर से श्रीनगर पहुंचाकर लाल चैक पर उनके हाथों राष्ट्रीय झंडा फहरवा दिया।
इस दाव से जोशी की यात्रा के कारण भाजपा को जो राजनैतिक लाभ मिलने जा रहा था उसकी हवा निकल गई। लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि प्रियंका गांधी बाड्रा को सोनभद्र जाने से रोकने की तुक क्या थी। इसका न तो कोई वैधानिक और नैतिक औचित्य था और न ही प्रियंका और उनकी पार्टी इस हालत में थी कि रंच मात्र भी उन्हें कोई राजनैतिक नुकसान हो पाता। सोनभद्र के नुकसान के मामले में कोई साम्प्रदायिक या जातिगत संवेदनशीलता का तत्व नहीं है जिससे यह खतरा होता कि किसी नेता के पहुचने से वहां कानून व्यवस्था का संकट पैदा हो जायेगा। प्रियंका को रोककर राज्य सरकार ने अपनी भयभीत मानसिकता को उजागर करके अपनी ही छवि खराब की।
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस इतनी ज्यादा जर्जर हो चुकी है कि फिलहाल कितनी भी बड़ी सर्जरी से भी उसमें ऊर्जा संचार के आसार नहीं है। राहुल गांधी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफे के बाद कांग्रेस केन्द्रीय स्तर पर पूरी तरह से लुंजपुंज हो चुकी है। नये राष्ट्रीय अध्यक्ष को चुनने में हो रही देरी से उसकी हालत अनाथ से भी बदतर हो गई है। उत्तर प्रदेश में भी प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं। सभी जिला इकाइंया भी भंग की जा चुकी हैं। ऐसी मरी हुई पार्टी को राजनीतिक सूझबूझ वाला कोई मुख्यमंत्री कभी संज्ञान में नहीं लेता।
प्रियंका अगर सकुशल सोनभद्र पहुंचकर नरसंहार से पीड़ित परिवारों से मिल लेती तो उनकी खबर अखबारों के अंदर के पन्ने में निपटा दी जाती। उनका धर्म पूरा हो जाता और उनका दौरा प्याली के तूफान की तरह वहीं फुस्स हो जाता। पर उत्तर प्रदेश सरकार अहंकार की मानसिकता के कारण छवि के मामले में लगातार नुकसान उठा रही है। प्रियंका गांधी को पहले मिर्जापुर जिले की सीमा पर रोका गया। इसके बाद भी जब वे सोनभद्र जाने पर अड़ी रही तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और चुनार के गेस्ट हाउस में नजरबंद करने के लिए उतार दिया गया।
प्रियंका को गिरफ्तार ही नहीं किया गया
जब प्रियंका ने फिर भी सोनभद्र जाने का इरादा छोड़ने से इंकार कर दिया और चुनार के गेस्ट हाउस में जमीन पर धरने पर बैठ गई तो अधिकारियों के हाथ पैर फूल गये। मिर्जापुर के डीएम और एसपी हाथ जोड़कर उन्हें मनाने पहुंचे लेकिन उन्होंने मानने से इंकार कर दिया। मिर्जापुर के डीएम जो पहले कह रहे थे कि प्रियंका गांधी को निजी मुचलका भरना पड़ेगा तब जमानत दी जायेगी, कहने लगे कि प्रियंका को गिरफ्तार ही नहीं किया गया है।
पीडित परिवारों से मिलने पर खतरा कैसा
इसी बीच उम्भा गांव के लोग खुद ही प्रियंका से मिलने चुनार गेस्ट हाउस पहुच गये तो फिर एक बार बेहूदगी का परिचय दिया गया। पीड़ितों को कहीं भी किसी से भी गुहार करने का अधिकार है लेकिन उन्हें प्रियंका से मिलने से रोका गया। सरकार ने यह भी नहीं सोचा कि इसे लेकर सवाल होंगे तो क्या जबाव दिया जायेगा। घटनास्थल से इतनी दूर विपक्ष की प्रमुख नेता अगर मरे हुए लोगों के परिवार के लोगों से मिलती है तो इससे स्थिति बिगड़ने का खतरा कैसे हो सकता है। यह भी नहीं सोचा कि इससे उस पर लोकतंत्र को कुचलने का आरोप लगेगा।
फफक कर रो पड़ी प्रियंका
बाद में जब खबर मिली कि राजबब्बर, आरपीएन सिंह, राजीव शुक्ला, जितिन प्रसाद आदि बड़े नेता चुनार गेस्ट हाउस आने के लिए दिल्ली से कूच कर गये हैं तब सरकार ने डरकर मिर्जापुर के प्रशासन को उम्भा के ग्रामीणों की मुलाकात प्रियंका से कराने के निर्देश दिये। इस मुलाकात में कई बार मार्मिक दृश्य उपस्थित हो गये। उनकी कहानी सुनकर प्रियंका गांधी एक बार फफक कर रो भी पड़ी। राज्य सरकार की अभिसूचना मशीनरी और मीडिया के लोग इस मुलाकात पर निगाह जमाये हुए थे।
किसी ने यह रिपोर्ट नहीं दी कि प्रियंका ने उम्भा गांव के लोगों से कोई ऐसी बात कही हो जिससे वे भड़क उठें। पहले से ही प्रियंका गांधी बाड्रा कह रही थी कि वे केवल उम्भा गांव के लोगो को सांत्वना देने के लिए शांतिपूर्ण ढ़ंग से जाना चाहती हैं और उन्होंने यही किया फिर भी उन्हें रोकना सरेआम तानाशाही थी।
कांग्रेस कर रही लाशों की राजनीति
भाजपा के सयाने खुद भी राज्य सरकार की मूढ़ता से सहमत नहीं हैं क्योंकि प्रियंका को रोकने के कदम को सही ठहराने की कोई ठोस दलील उनके पास नहीं है। फिर भी पार्टी का धर्म निभाने के लिए उन्हें प्रियंका के विरोध में कुछ कहना पड़ रहा है। उन्होंने यह कहा है कि कांग्रेस लाशों की राजनीति कर रही है जबकि इतनी बड़ी घटना में विपक्ष का पहुचना लोकतंत्र की अनिवार्य रस्म है और भाजपा जब विपक्ष में थी तब ऐसे मामलों में उसके भी नेता मौके पर पहुंचने की जिद करते थे।
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यह दूसरी बात है कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद से विपक्ष सन्निपात में है। अनुसूचित जाति और जनजातियों की ठेकेदारी करने वाली बसपा के नेतृत्व को भी सोनभद्र कांड की सुध लेने का होश नहीं आया था। समाजवादी पार्टी भी लगभग खामोश थी। राज्य सरकार इसलिए बौखला गई कि प्रियंका की वजह से सारे विपक्ष में गुर्राने की होड़ मच जायेगी। अहंकारी सरकार को विरोध बिल्कुल बर्दास्त नहीं होता जबकि सही मायने में एक लोकतांत्रिक सरकार विरोध की अभ्यस्त होती है और विरोधी प्रतिक्रियाओं पर सहज रहती है।
प्रियंका गांधी के मन में बहुत है कि कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में मुख्य राजनीतिक संघर्ष के केन्द्र में पुर्न स्थापित किया जाये। इसी जद्दोजहद में उन्होंने सड़क पर उतरकर राजनीति करने का रूख अख्तियार किया है। इससे उनके पार्टी के कार्यकर्ताओं में थोड़ी स्थिरता तो आयेगी लेकिन कुछ ही दिन में प्रदेश में होने वाले एक दर्जन विधानसभा उपचुनावों में इसके बावजूद कांग्रेस के कहीं उल्लेखनीय प्रदर्शन करने के आसार न के बराबर हैं।