राजेंद्र कुमार
उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में खेतिहर आदिवासियों के हुए नरसंहार की घटना ने देश के लोगों को भयभीत किया है। वही सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस नरसंहार के लिए कांग्रेस की पुरानी सरकारों को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं। उनका कहना है कि इस विवाद की शुरुआत 1950 के दशक में कांग्रेसी सरकार के दौरान ही हो गई थी और इस हत्याकांड का मुख्य अभियुक्त को समाजवादी पार्टी से जुड़ा है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ये दावा सोनभद्र के उम्भा गांव में किसी के गले नहीं उतर रहा है। इस गांव के ग्रामीणों के अनुसार सोनभद्र कांड को अंजाम देने वाले कई किरदार हैं। इन किरदारों में जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन, राजस्व अधिकारी से लेकर जमीन खरीदें तथा बेचने वाले सभी की भूमिका है। अब देखना यह है कि सूबे की सरकार की लापरवाही से जनचर्चा बन गये इस कांड के असली दोषियों के खिलाफ योगी सरकार क्या कठोर एक्शन लेकर उन्हें सजा दिलवाती है?
वास्तव में योगी सरकार के दो साल के शासन में सोनभद्र का नरसंहार सूबे की सरकार के कामकाज पर गंभीर सवाल खड़ा करने वाली यह पहली घटना है। सोनभद्र के जिस उम्भा गांव में दिनदहाड़े फ़िल्मी अंदाज में 90 बीघा भूमि पर कब्जा करने को लेकर ग्राम प्रधान यज्ञदत्त और उसके लोगों का खेतिहर आदिवासियों से हिंसक संघर्ष हुआ और दस खेतिहर आदिवासियों की मौत हुई। ऐसी घटना राज्य में वर्षों बाद हुई है और ऐसा नहीं है कि सोनभद्र के उम्भा गांव में जमीन पर कब्जा करने को लेकर गत 17 जुलाई को ही पहला प्रयास हुआ था।
उम्भा गांव के लोगों का कहना है कि बीते दो सालों से खेतिहर आदिवासियों को प्रधान यज्ञदत्त जमीन छोड़ने के लिए डरा धमका रहा था, पर कभी भी पुलिस और जिला प्रशासन ने खेतिहर आदिवासियों की मदद नहीं की और अब सूबे के सीएम का 17 जुलाई की घटना के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार बता रहे हैं, सीएम का यह दावा उम्भा गांव के लोगों की समझ से परे है।
उम्मा गांव के ग्रामीण बताते हैं कि 17 जुलाई का नरसंहार जिला और पुलिस प्रशासन की ग्राम प्रधान यज्ञदत्त से मिली भगत का नतीजा है। यदि जिला और पुलिस प्रसासन ने भूमि विवाद के मामले में नियमानुसार एक्शन लिया होता तो शायद दस खेतिहर आदिवासियों की मौत न होती। आखिर ये भूमि विवाद का मामला खूनी विवाद में कैसे तब्दील हो गया?
इस सवाल पर आदिवासियों की तरफ से प्रशासन और पुलिस के पास ग्रामीणों का पक्ष रखने वाले वकील नित्यानंद बताते हैं कि इस जमीन की कहानी 1955 से शुरू होती है। तब बिहार के मुजफ्फरपुर निवासी महेश्वरी प्रसाद सिन्हा ने 12 सदस्यीय आदर्श कोआपरेटिव सोसाइटी बनाई। वह खुद इस सोसाइटी के अध्यक्ष बने और उनकी बेटी आशा मिश्र, दामाद प्रभात कुमार मिश्र सहित कई अन्य रिश्तेदार इस सोसाइटी के सदस्य तथा कर्ताधर्ता बनाये गए।
इस सोसाइटी के नाम पर हर्बल खेती करने के लिए 639 बीघा जमीन आवंटित हुई. वकील नित्यानंद के अनुसार नियमों के मुताबिक सोसाइटी में स्थानीय लोगों को वरीयता दी जानी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
कहा जा रहा है कि महेश्वरी प्रसाद सिन्हा यूपी के राज्यपाल रहे सीपीएन सिंह के चाचा थे, शायद इसीलिए नियमों की अनदेखी तब की गई और बाद में प्रभात कुमार की बेटी विनीता शर्मा को भी सोसाइटी में जोड़ कर उन्हें अहम पद दे दिया गया. विनीता शर्मा की शादी बिहार कैडर के आईएएस भानू प्रताप शर्मा से हो गई. तो उनका भी नाम सोसाइटी में जोड़ दिया गया।
इसके बाद छह सितंबर1989 को सोसाइटी की ये जमीन आशा मिश्र व विनीता शर्मा के नाम कर दी गई। जो नियम विरुद्ध था क्योंकि सोसाइटी की जमीन सीधे किसी व्यक्ति के नाम नहीं की जा सकती। इसके बाद अक्टूबर 2017 से आशा मिश्रा ने ग्राम प्रधान यज्ञ दत्त व उसके रिश्तेदारों को 148 बीघा जमीन बेच दी। उस समय खेतिहर आदिवासियों ने इसका विरोध किया तो तत्कालीन डीएम अमित कुमार सिंह ने दाखिल खारिज करने पर रोक लगा दी।
परन्तु अमित सिंह का ट्रांसफर होने के तत्काल बाद राजस्व विभाग के अधिकारियों ने फरवरी 2019 इस भूमि का दाखिल ख़ारिज कर दिया। नित्यानंद सवाल करते हैं कि आखिर जब एक डीएम ने रोक लगाई थी तो दूसरे डीएम ने पत्रवली को गंभीरता से क्यों नहीं देखा। और ये सब होने दिया।
नित्यानद बताते हैं कि दो साल पहले तक पूरी ज़मीन आदर्श कोऑपरेटिव सोसाइटी के नाम से थी और ये आदिवासी भी उसी सोसाइटी के मेंबर के तौर पर उस पर खेती करते थे और उसका कुछ हिस्सा सोसाइटी को देते थे। ऐसा वो दशकों से करते आ रहे थे। लेकिन जब 17 जुलाई को यज्ञदत्त ने अपने सैकड़ों साथियों के साथ पहुंच कर खेतिहर किसानों को जमीन से बेदखल करने का प्रयास किया तो खेतिहर आदिवासियों से उनका विवाद हुआ। और दस खेतिहर आदिवासियों की जान चली गई।
अब जिन परिवारों को यह दुःख झेलना है, क्या इनकी मदद उस जमीन जिसके चलते यह नरसंहार हुआ है जुड़े किरदार करेंगे? इस जमीन से जुड़े किरदारों में पूर्व आईएएस प्रभात कुमार मिश्रा, पूर्व आईएएस भानू प्रताप शर्मा जो की वर्तमान में एक महत्वपूर्ण पर पर तैनात है और राजस्व विभाग के वह अधिकारी है जिन्होने नियमों के अनदेखी कर सोसाइटी की जमीन को सोसाइटी के सदस्यों के नाम किया, फिर इस जमीन को दाखिल ख़ारिज भी सोनभद्र के जिलाधिकारी रहे अमित सिंह के आदेश के अनदेखी करके किया।
फिलहाल इस जमीन के मामले में पूर्व आईएएस प्रभात कुमार मिश्र का कहना है कि उनके ससुर ने जो सोसाइटी बनायी थी उसमे उन्होंने अपनी बेटी आशा मिश्रा को सदस्य बनाया था और उस नाते मेरा भी नाम सोसाइटी में लिखा गया. बाद में उन्होंने मेरे पत्नी और बेटी के नाम जमीन कर दी। हमने कभी भी कभी भी खेतिहर आदिवासियों को भूमि से बेदखल करने का प्रयास नही किया।
हम इस भूमि पर हर्बल खेती करना चाहते थे, पर खेतिहर आदिवासी इसके लिए तैयार नहीं हुए तो हमने ये जमीन साईं ट्रस्ट को देने का प्रयास किया, लेकिन साईं ट्रस्ट के पदाधिकारियों ने कहा की वह इस जमीन की दीखरेख नहीं कर सकते तो हमने 2017 में जमीन बेचकर उससे मिली धनराशि साईं ट्रस्ट में दान कर दी।
प्रभात मिश्र यह भी कहते हैं कि इस जमीन को लेकर जो दुखद घटना हुई उसके लिए वह जिम्मेंदार नहीं हैं क्योंकि जब तक उनके पास ये जमीन रही तब तक कोई विवाद नहीं हुआ। हमारे जमीन बेचने के दो साल बाद उन्हें नरसंहार के लिए हमे दोषी बताना ठीक नही है।
फ़िलहाल अब सोनभद्र का ये नरसंहार एक हाई प्रोफ़ाइल राजनीतिक मामला भी बन चुका है। इस मामले में योगी सरकार की कार्रवाई पर प्रियंका गाधी से लेकर विपक्षी नेताओं की निगाह रहेगी और इस मामले से योगी सरकार का पिंड आसानी से छूटने वाला नहीं है, इस मलमे को लेकर हुई राजनीति के चलते ये दिख रहा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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