अविनाश भदौरिया
भारत देश में ‘जवान’ और ‘किसान’ के प्रति आदर और सम्मान का भाव हर एक आम नागरिक में देखने को मिलता है। शायद यही वजह है कि देश के सियासी लोग भी जवान और किसान को हमेशा भुनाने की कोशिश करते हैं। लेकिन मंगलवार को लोकसभा में गृह मंत्रालय द्वारा सार्वजनिक की गई जवानों से जुड़ी जानकरी बहुत ही चौकाने वाली है।
लोकसभा में एक सवाल के जवाब में गृह मंत्रालय ने 2014 से लेकर 2018 तक हुई घटनाओं और मारे गए लोगों का वर्षवार ब्योरा दिया। इस ब्योरे के अनुसार पिछले पांच साल में जम्मू-कश्मीर सहित देश के विभिन्न हिस्सों में हुई विभिन्न घटनाओं में कुल 1483 आम आदमियों की मौत हुई है, जबकि 813 जवान शहीद हुए हैं। मिली जानकरी के अनुसार देश के अन्दर होने वाली नक्सल और अन्य विद्रोह की घटनाओं मरने वाले जवानों की संख्या आतंकी घटनाओं में मरने वाले जवानों की संख्या से अधिक है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या जवानों को आतंकियों से ज्यादा अपनों से ही खतरा है।
बता दें कि पिछले पांच वर्षों में जम्मू-कश्मीर में हुई आतंकी घटनाओं में 339 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए हैं। वहीं देश के अन्य हिस्सों में हुए आतंकी हमलों में 11 जवान शहीद हुए। जबकि पूर्वोत्तर में विद्रोह की विभिन्न घटनाओं में 109 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए। वहीं वामपंथी उग्रवाद की घटनाओं में 354 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए हैं।
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इन आकड़ों पर गौर किया जाए तो स्पष्ट होता है कि आतंकी घटनाओं में कुल 350 जवान ही शहीद हुए, वहीं वामपंथी और पूर्वोत्तर विद्रोह में कुल 463 जवान शहीद हुए हैं।
इन आकड़ों के सार्वजानिक होने के बाद एक बात तो बड़ी आसानी से समझी जा सकती है कि, केंद्र सरकार को सीमा पर तैनात जवानों के साथ ही देश के अंदर ड्यूटी करने वाले जवानों को लेकर भी ठोस रणनीति बनाने की आवश्यकता है। हमें अपने घर में छुपे हुए गद्दारों को पहचानने की भी जरुरत है। देश के अन्दर होने वाली इस तरह की विद्रोह की घटनाओं पर कैसे लगाम लगेगी इस पर भी चिंतन करना जरुरी है।