राजीव ओझा
अपना देश और समाज इस समय कई मोर्चे पर जूझ रहा। एक बाहरी खतरा है दूसरा देश के भीतर। देश की सीमा पर दुश्मनों से निपटना आसान है लेकिन देश के भीतर के खतरों से निपटाना सबसे बड़ी चुनौती हैं। समाज में घुलमिल कर वार करने वाले अमन के दुश्मन और आतंक के ये मसीहा बहुत शातिर हैं।
समाज में घुलमिल कर और बहुत सोच समझ कर शिकार चुनते हैं। ऐसा शिकार जो आसान हो लेकिन उसका असर व्यापक हो। इसमें इनका एक घातक हथियार है सोशल मीडिया। सबसे ताजा उदाहरण है हिंदूवादी नेता कमलेश तिवारी की लखनऊ में हत्या। हत्यारों ने समय, स्थान और व्यक्ति को बहुत सोच समझ कर चुना। एक वार से समाज में घृणा, आक्रोश, वैमनस्य और अशांति फैलाने की कोशिश की जा रही है। इसमें किसी एक सम्प्रदाय को दोष देना ठीक नहीं। भड़काऊ भाषण दोनों तरफ से दिए जा रहे। इसमें सोशल मीडिया आग में घी का काम कर रहा।
घृणा के ब्रांड अम्बेसडर को पनाह देने वालों की कमी नही
यह किसी से छिपा नहीं कि उत्तर प्रदेश के कई शहरों में इन घृणा के ब्रांड अम्बेसडर को पनाह और शह देने वालों की भी कमी नही। ऐसे में समाज में फैले इन खरपतवारों निकालना एक चुनौतीपूर्ण काम है। इसी लिए सुप्रीमकोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा है।
सोशल मीडिया का गलत इस्तेमाल रोकने और सोशल मीडिया अकाउंट को आधार से लिंक करने पर नीति बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से जवाब माँगा है।
सुप्रीम कोर्ट ने 24 सितंबर को केंद्र सरकार से 3 हफ्ते में इस दिशा में उठाए गए कदम की जानकारी देने को कहा था। केंद्र ने कोर्ट से 3 महीने का समय मांगा। केंद्र ने कहा कि इस पर मंत्रिमंडलीय समितियों में चर्चा जारी है।
बहती गंगा में हाथ धोने वाले भी कम नहीं
दूसरी तरफ कमलेश तिवारी की हत्या के बाद कई और साधु संतो को जान का खतरा सता रहा है। कुछ पर खतरा वास्तविक है और कुछ बहती गंगा में हाथ धोना चाहते हैं। अब यह सरकार के लिए बहुत बड़ी चुनौती है कि किसको कब कितनी सुरक्षा दी जाये। विश्व हिन्दू परिषद् की सदस्य और बागपत की साध्वी प्राची ने भी अपनी जान को खतरा बताते हुए सरकार से सुरक्षा की मांग की है। उनको सोशल मीडिया पर लगातार धमकियां मिल रहीं हैं।
दूसरा मामला है अमेठी जनपद के गौरीगंज का। यहाँ के सगरा आश्रम के पीठाधीश्वर मौनी जी महाराज को अपनी हत्या का भय सताने लगा है। राममंदिर निर्माण आंदोलन और कई हिन्दू संगठनों की वकालत करने वाले अभय चैतन्य मौनी महाराज की सुरक्षा में लगे जवानों को एकाएक हटा लिया गया है। उन्होंने कहा कि उनके ऊपर पहले भी कई बार हमले हुये है, जिसको देखते हुये पिछली सरकार ने उन्हें सुरक्षा दी थी, पर मौजूदा सरकार ने उसे एकाएक हटा लिया।
कमलेश तिवारी हत्याकांड में अभी तक की जांच में सूरत कनेक्शन सामने आया है। इसके तार नागपुर से भी जुड़े हुए हैं। महाराष्ट्र एटीएस ने नागपुर में दो दिन पहले एक संदिग्ध गिरफ्तार किया था। संदिग्ध सैय्यद अली हत्यारों से सम्पर्क में था। बिजनौर में 2015 में कमलेश के सर पर इनाम रखने वाले दो मौलना का भी सूरत कनेक्शन निकला है और उनको अभी क्लीन चिट नहीं मिली है।
अब उत्तर प्रदेश पुलिस ने कमलेश के हत्यारों पर ढाई-ढाई लाख का इनाम रखा है। हत्यारों की चेहरे, नाम, पता और ठिकाना सब पता चल चुका है लेकिन फिर भी वो पकड़ से दूर हैं। मतलब साफ़ है किसी शहर में किसी ने उनको पनाह दे रखी है।
अब यह सरकार को देखना है कि किस पर कितना खतरा है। सुरक्षा में चार लोग हो या चौबीस, उनमें अगर अनुशासन नहीं होगा तो वो किसी काम की नहीं। यह भी देखना होगा की गनर कहीं स्टेटस सिम्बल के लिए तो नहीं माँगा जा रहा या फिर उन्हें पान और मसाला लाने वाला सेवक तो नहीं बनाया जा रहा। सरकार को पार्टी लाइन से ऊपर उठ कर संतों की सुरक्षा के लिए सही कदम भी उठाने होंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
यह भी पढ़ें : साहब लगता है रिटायर हो गए..!
यह भी पढ़ें : आजम खान के आंसू या “इमोशनल अत्याचार” !
यह भी पढ़ें : काजल की कोठरी में पुलिस भी बेदाग नहीं
यह भी पढ़ें : व्हाट्सअप पर तीर चलने से नहीं मरते रावण
ये भी पढ़े : पटना में महामारी की आशंका, लेकिन निपटने की तैयारी नहीं
ये भी पढ़े : NRC का अल्पसंख्यकों या धर्म विशेष से लेनादेना नहीं