सुरेंद्र दुबे
महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन की सरकार चल रही है। कितने दिन चलेगी पता नहीं, क्योंकि वीर सावरकर को लेकर कांग्रेसऔर शिवसेना में सरकार के समय से ही वाक युद्ध चल रहा है। यह वाक युद्ध कब राजनैतिक युद्ध में तब्दील हो जाएगा इसका अंदाज लगाना मुश्किल है। पर एक बात तय है कि न तो शिवसेना वीर सावरकर का दामन छोड़ सकती है क्योंकि वीर सावरकर आजकल हिंदू अस्मिता के प्रतीक बन गए हैं और न ही कांग्रेस उन पर निशाना साधना छोड़ सकती है क्योंकि उसे मुस्लिम मतदाताओं के नाराज हो जाने का खतरा है।
शिवसेना प्रवक्ता आए दिन वीर सावरकर के मामले में कांग्रेस को आड़े हाथों लेते रहते हैं। उन्होंने हाल ही में कहा था कि जो लोग वीर सावरकर की आलोचना करते हैं उन्हें दो दिन अंडमान निकोबार जेल में भेज दिया जाए तो उन्हें पता चल जायेगा कि वीर सावरकर ने क्या यातना झेली है। उन्होंने कहा 14 साल अंडमान निकोबार में बिताना कोई मजाक नहीं है।
दूसरी ओर कांग्रेस के नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चाव्हाण लगातार ये कह रहे हैं कि सावरकर द्वारा जेल के दौरान अंग्रेजों से माफी मांगने की बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अगर केन्द्र सरकार वीर सावरकर को भारत रत्न देती है तो कांगेस उसका विरोध करेगी।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे ने शनिवार को यह कहकर विवाद को शांत कराने की कोशिश की कि वीर सावरकर के बारे में संजय राउत का बयान निजी है। इसका शिवसेना से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने साफ कहा कि कांग्रेस और शिवसेना के रिश्ते मधुर बने हुए हैं और सरकार पर कोई खतरा नहीं है।
यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि संजय राउत शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे के खास लेफ्टिनेंट हैं और सरकार गठन के समय उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यह कह देने से काम नहीं चलेगा क्योंकि संजय राउत शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादक भी हैं।
शिवसेना की दिक्कत ये है कि केंद्र सरकार वीर सावरकर को भारत रत्न देने का इरादा व्यक्त कर चुकी है। उसी समय शिवसेना ने उनकी बात का समर्थन करते हुए वीर सावरकर को भारत रत्न दिए जाने की वकालत की थी।
महाराष्ट्र में वीर सावरकर की निंदा या उपेक्षा शिवसेना के लिए गले की हड्डी बन सकती है क्योंकि इससे हिंदू मतदाता उनसे छिटक कर भाजपा के पाले में जा सकते हैं, जो आने वाले दिनों में शिवसेना के लिए एक गंभीर समस्या हो सकती है।
दूसरी ओर भगवा का प्रतीक समझे जाने वाले वीर सावरकर को सम्मानित किया जाना कांग्रेस के लिए मुस्लिम मतदाताओं में दिक्कत पैदा कर सकता है। लेकिन सवाल सरकार चलाए रहने का है।
भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इस पर पैनी निगाह बनाए हुए है और वह वीर सारवकर को भारत रत्न देकर शिवसेना और कांग्रेस के बीच खाई पैदा करने की कोशिश कर सकती है। भाजपा महाराष्ट्र में सरकार छिन जाने से बुरी तरह आहत है क्योंकि महाराष्ट्र इस देश के बड़े उद्योगपतियों के व्यवसाय का एक बड़ा केंद्र है। उससे सरकार छिन जाने के कारण कार्पोरेट जगत के दिग्गज भाजपा की मुट्ठी से निकलने के प्रयास में है, जो भाजपा को अपनी राजनैतिक सेहत के लिए मुफीद नहीं लगता।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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