न्यूज डेस्क
बिहार में चुनावी सरगर्मी बढ़ गई है। साल के अंत में यहां विधानसभा चुनाव होना हैं, लिहाजा राजनीतिक दलों ने कमर कस ली है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी अपने काम-काज के साथ-साथ जातीय समीकरण के सहारे चुनाव जीतने का दावा कर रहे हैं लेकिन इस बार उन्हें बिहार महागठबंध के अलावा चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर से चुनौती मिलने वाली है।
इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार को कई चुनौतियों मिलने वाली है। सबसे बड़ी चुनौती उन्हेें चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर से मिलने वाली है। कुछ दिनों पहले तक प्रशांत किशोर नीतीश की पार्टी में उपाध्यक्ष पद पर थे। जाहिर है उन्हें उनकी पार्टी की ताकत और कमजोरी का बखूबी अहसास है। जिसका फायदा पीके चुनाव में उठायेंगे।
प्रशांत किशोर भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से दो-दो हाथ करने के मूड में आ गए हैं। जब प्रशांत किशोर को जेडीयू से बाहर निकाला गया था तो उन्होंने साफ लफ्जों में कहा था कि वो राजनीति से कहीं दूर नहीं जा रहे हैं। उनकी राजनीतिक सक्रियता बढऩे जा रही है। इससे पहले वह 11 फरवरी को पटना में अपने राजनीतिक भविष्य का ऐलान करने वाले थे लेकिन उसी दिल्ली विधानसभा चुनाव का परिणाम आना था और वह दिल्ली आ गए जिसकी वजह से उन्होंने घोषणा नहीं की।
फिलहाल अब जो जानकारी मिल रही है उसके अनुसार प्रशांत किशोर कल पटना में अपने राजनीतिक भविष्य का ऐलान करेंगे। वह बिहार की राजनीति में कौन सा प्रयोग करने जा रहे हैं लेकिन इतना तो तय है कि मुख्यमंत्री नीतीश से लोहा लेने के मूड में वह आ गए हैं।
यदि प्रशांत किशोर की राजनैतिक हैसियत को देखे तो नीतीश कुमार के सामने कहीं नहीं ठहरती, लेकिन प्रशांत को अपनी स्टे्रटजी पर पूरा यकीन हैं। दरअसल 2014 से वह कई पार्टियों के लिए चुनाव के दौरान काम कर चुके हैं। वह नीतीश कुमार के लिए भी काम कर चुके हैं।
हाल ही में दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के लिए उन्होंने काम किया था। राजनीतिक पंडित केजरीवाल की जीत का श्रेय पीके को दे रहे हैंं। इसीलिए कहा जा रहा है कि बिहार में पीके की पूरी कोशिश केजरीवाल फॉर्मूले को लागू करने की होगी। वो बदलाव और नई राजनीति को अपना हथियार बनाएंगे।
जेडीयू के उपाध्यक्ष रहते हुए I-PAC ऐसे लाखों युवाओं का प्रोफाइल तैयार कर चुकी है जो सक्रिय राजनीति में आना चाहते हैं। अब नए मिशन में ये डाटाबेस उनके काम आने वाला है।
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केजरीवाल फॉर्मूला अपनायेंगे पीके
प्रशांत किशोर चुनावी राजनीति में नौसिखिया हैं। उनके लिए चुनावी दंगल में उतरना आसान नहीं होगा। नीतीश कुमार और लालू यादव इसके महारथी हैं। उनके सामने टिक पाना उनके लिए आसान नहीं होगा। इसके अलावा बिहार की राजनीति में जातीय फैक्टर भी बड़ा मुद्दा है। इसका जवाब भी पीके समर्थक बिहार के राजनीतिक इतिहास में ही खोजते हैं जब जेपी के परिवर्तन लहर में जातीयता गौण हो गई थी।
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ऐसी परिस्थितियों में वह युवा शक्ति के सहारे बिहार का केजरीवाल बनने की कोशिश करेंगे। वहीं केजरीवाल ने 16 फरवरी को अपने शपथ के बाद रामलीला मैदान से उत्तर प्रदेश और बिहार को सीधा संदेश दिया था। उन्होंने कहा कि गांव फोन कर बता देना कि उनका बेटा सीएम बन गया है।
केजरीवाल को पता है कि दिल्ली में बिहार और यूपी के लोग भारी संख्या में बसते हैं। बिहार के कोई गांव ऐसा नहीं होगा जहां के 10 लोग दिल्ली में न रहते हों। तो ऐसे समझिए कि जब अलग-अलग सामाजिक पृष्ठभूमि के लोग दिल्ली आकर केजरीवाल को नेता बना सकते हैं तो बिहार में ऐसी संभावना क्यों नहीं बन सकती?
दूसरा बड़ा कारण है कि प्रशांत किशोर बिहार के ही रहने वाले हैं। उनका गांव रोहतास के गांव में है लेकिन उनके पिता बक्सर में बस गए जहां से पीके ने स्कूल की पढ़ाई पूरी की। पीके ब्राह्मण जाति से हैं। इस बिना पर जेडीयू के भीतर भी खलबली मची थी जब उन्हें नीतीश का उत्तराधिकारी बताया जाने लगा।
फिलहाल अब देखना दिलचस्प होगा की केजरीवाल के फॉर्मूले पर प्रशांत किशोर जेडीयू नेताओं के अंदेशे को सही साबित कर पाते हैं या फिर बिहार चुनाव उनके लिए प्रयोगशाल बन कर रह जायेगी।
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