न्यूज डेस्क
कोरोना वायरस पूरी दुनिया को कई मोर्चे पर परेशान किए हुए हैं। एक ओर दुनिया के अधिकांश देश कोरोना से लड़ रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर कोरोना वायरस दुनिया के तमाम हिस्सों में कूटनीतिक तनाव को जन्म दे रहा है। शुरुआत में जब कोरोना का संक्रमण दुनिया के तमाम देशों में पांव पसार रहा था तो ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि इस महामारी को सारे देश साझा चुनौती मान कर आपस में सहयोग करेंगे, ताकि इस संकट का मुकाबला कर सकें, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हो ये रहा है कि तमाम देश अपने निजी हितों को तरजीह दे रहे हैं और सहयोग के बजाय एक दूसरे से होड़ में लग गए हैं।
पिछले दिनों अमेरिका पर जर्मनी और फ्रांस ने आरोप लगाया था कि अमेरिका ज्यादा पैसा देकर मास्क खरीद रहा है। डील होने के बाद भी उन्हें मास्क नहीं मिल रहा क्योंकि अमेरिका उनसे ज्यादा पैसा देकर मास्क खरीद ले रहा है। इसके अलावा भी कई मामले सामने आ चुके हैं।
कोरोना संक्रमण से बुरी तरह जूझ रहे स्पेन की इस संकट के दौर में भी तुर्की सरकार से तनातनी की खबरें सामने आई थी। स्पेन को मेडिकल संसाधनों और उपकरणों की सख़्त ज़रूरत है, खास तौर से स्पेन के उन इलाकों में जहां कोविड-19 का संक्रमण सबसे ज्यादा है।
कुछ दिनों पहले स्पेन के तीन हेल्थ ट्रस्ट ने सैकड़ों वेंटिलेटर्स की जो खेप खरीदी थी, उनसे लदे हुए जहाजों को तुर्की की सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया था। स्पेन के मीडिया ने अपनी सरकार के हवाले से तुर्की की इस करतूत को ‘चोरी’ करार दिया। लगभग एक सप्ताह के खींचतान के बाद आखिरकार स्पेन, अपने मेडिकल उपकरणों से लदे जहाज, तुर्की के शिकंजे से छुड़ाने में सफल रहा।
दरअसल ये घटनाएं महज एक बानगी है कि किस तरह कोरोना वायरस दुनिया के तमाम हिस्सों में कूटनीतिक तनाव को जन्म दे रहा है।
किन देशों के बीच बढ़ रही है तनातनी
इन दिनों सबसे ज्यादा कोरोना संक्रमण के मरीज अमेरिका में हैं। अमेरिका कोरोना पर नियंत्रण करने में अब तक नाकाम साबित हुआ है। संक्रमण बढऩे के साथ-साथ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप की बयानबाजी और धमकियां भी बढ़ गई है।
हालांकि ये भी सच है कि कोरोना वायरस को लेकर अमरीका और चीन के बीच कूटनीतिक बयानबाजी को दुनिया भर में ज़्यादा तवज्जो दी जा रही है। खासतौर से जब ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन पर आरोप लगाया कि वो चीन के इशारे पर चल रहा है और अमरीका अब विश्व स्वास्थ्य संगठन को दिया जाने वाला फंड रोकने पर विचार कर रहा है। इसके पहले भी ट्रंप कोरोना को लेकर चीन के खिलाफ बयान दे चुके हैं। वह कोरोरा को चीनी वायरस कह चुके हैं।
भले ही चीन पर ये आरोप लग रहे हैं कि उसने कोरोना वायरस के मरीजों की संख्या छुपाई है, फिर भी,कोविड-19 से जुड़े हर कूटनीतिक संघर्ष का ताल्लुक चीन से हो ये भी जरूरी नहीं।
कोरोना वायरस की वजह से कई देशों के बीच दरार पड़ गई है। ये दरार खासकर यूरोपीय देशों की एकता में पड़ी है। उदाहरण के लिए एक वाकये का जिक्र करना जरूरी है। जब इटली में कोरोना संक्रमण के मामले तेजी से बढ़े, तो इटली ने अपने पड़ोसी देशों से अपील की कि वो मेडिकल संसाधन मुहैया कराने में उसकी मदद करें, लेकिन, इटली के दो बड़े पड़ोसियों जर्मनी और फ्रांस ने अपने यहां से ऐसे उत्पादनों के निर्यात पर पाबंदी लगा दी।
बीबीसी के अनुसार यूरोपीय यूनियन के मुख्यालय ब्रसेल्स में इटली के राजदूत मॉरिजियो मसारी ने पॉलिटिको नाम की वेबसाइट में लिखा, “निश्चित रूप से ये यूरोपीय एकता के लिए शुभ संकेत नहीं हैं।”
इटली के लोग जर्मनी से नाराज है। इटली ने कोरोना वायरस से लड़ाई में जब भी मदद मांगी तो जर्मनी ने सिरे से नकार दिया। जब एक प्रस्ताव आया था कि कोरोना वायरस की महामारी से सबसे अधिक प्रभावित देशों की मदद के लिए चंदा जुटा कर एक फंड बनाया जाए तो जर्मनी इसका विरोध करने वाले देशों में शामिल हो गया।
इस विरोध में जर्मनी के अलावा नीदरलैंड, ऑस्ट्रिया और फिनलैंड ने भी फंड जुटाने के इस प्रस्ताव का खुल कर विरोध किया था, जबकि, स्पेन, बेल्जियम, फ्रांस, यूनान, आयरलैंड, पुर्तगाल, स्लोवेनिया और लक्जमबर्ग ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया था।
बॉस बनने के लिए क्या है चीन की कूटनीति
चीन की ‘मास्क डिप्लोमैसी’ क्या है इसको ऐसे समझते हैं। चीन ने अपने यहां कोरोना वायरस के संक्रमण पर नियंत्रण करने के बाद अब कई देशों को वह सारे संसाधन मुहैया करा रहा है, जो कोरोना वायरस के प्रकोप को रोनके में मददगार साबित हो सकते हैं। रूस को भी चीन की ऐसी मदद मिल रही है।
इसी तरह चीन ने इटली को भी मेडिकल उपकरण और टेस्टिंग किट उपलब्ध कराई हैं। इतना ही नहीं इटली में चीन ने अपने डॉक्टरों का एक दल भी भेजा है, जिन्हें इटली में हीरो की तरह देखा जा रहा है। इटली के सोशल मीडिया पर #grazieCina या शुक्रिया चीन हैशटैग काफी दिनों तक ट्रेंड करता रहा।
पिछले एक माह में चीन जिस तरह से दूसरे देशों की मदद के लिए आगे आया है उससे अमेरिका की ओर से खाली किए गए कूटनीतिक स्थान को काफी हद तक भरने में कामयाब होता दिख रहा है। हालांकि इसे कुछ लोग चीन की धूर्त कोशिश करार दे रह हैं। लेकिन आज ये हालात बिगड़े हैं तो इसके लिए कहीं न कहीं अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जिम्मेदार हैं।
2016 में सत्ता में आने के बाद से ही ट्रंप ‘अमरीका फ़र्स्ट’ की नीति पर चल रहे हैं। वैसे भी देखें तो अमरीका का रवैया किसी के साथ सहयोग का नहीं दिखता है। चीन के साथ तनातनी के अलावा, ट्रंप सरकार ने अपने पुराने सहयोगी जर्मनी को उस वक्त बहुत नाराज कर दिया, जब उन्होंने एक जर्मन दवा कंपनी द्वारा विकसित किए जा रहे कोविड-19 के टीके के विशेषाधिकार हासिल करने की कोशिश की।
हाल ही में ट्रंप ने भारत को धमकी दी थी कि अगर उसने मलेरिया की दवा हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन के निर्यात पर लगा प्रतिबंध नहीं हटाया तो अमरीका भी भारत पर पलटवार करेगा, क्योंकि हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन को कोविड-19 के इलाज में इस्तेमाल किया जा रहा है।
जानकारों के मुताबिक, “इस वैश्विक महामारी के संकट के दौरान अमेरिका ने एक कूटनीतिक महाशक्ति के तौर पर दखल नहीं दिया है और इसी वजह से चीन को विश्व कूटनीति में अमेरिका के खााली किए हुए स्थान को भरने का मौका मिल गया है। “
चीन की राह आसान नहीं
चीन की ‘मास्क कूटनीति’ की राह इतनी आसान भी नहीं है। दुनिया के कई मुल्क यहीं मानते हैं कि चीन , कोविड 19 के संक्र्रमण को सही समय पर और सही तरीके से रोकने में नाकाम रहा है, जिसकी वजह पूरी दुनिया कोरोना के जद में है। इसलिए कई देश नाराज हैं।
कोरोना के आंकड़े छुपाने को लेकर कई देश चीन के खिलाफ बोल चुके हैं। अमेरिका के अलावा ब्रिटिश अधिकारियों ने भी चीन में कोरोना वायरस के संक्रमण के मामलों की संख्या पर सवाल उठाए हैं।
जानकारों का मुताबिक चीन अपने प्रचार तंत्र के सहारे अपने देश की छवि बेहतर बनाने का अभियान चला रहा है लेकिन जैसे-जैसे लोग चीन में कोविड-19 के असल आंकड़ों के बारे में जानेंगे, वैसे-वैसे दुनिया में चीन के प्रति नाराजग़ी बढ़ेगी। कोरोना वायरस से निपटने के चीन के तौर तरीके पर ब्राजील ने ने भी सवाल उठाए हैं। जब से ये महामारी फैली है तब से ब्राजील और और चीन के बीच कई बार तनातनी हो चुकी है।
एक बार तो हालात इस स्तर पर पहुंच गए थे कि ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो के करीबी अधिकारी और चीन के कूटनीतिक अधिकारी सोशल मीडिया पर खुलेआम एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे थे।
इसकी सबसे हालिया घटना उस वक्त सामने आई जब ब्राजील के शिक्षा मंत्री अब्राहम वीनट्रॉब ने एक ट्वीट किया। अब्राहम के इस ट्वीट से चीन के अधिकारी इतने नाराज हुए कि उन्होंने इसे नस्लवादी तक करार दे दिया। ब्राजील में चीन के दूतावास ने ट्वीट करके कहा, “ऐसे बयान बेहूदा हैं और निंदनीय हैं क्योंकि इनमें एक नस्लवादी सोच दिखती है।”
ब्राजील और चीन की यह प्रतिक्रिया तब है जब चीन, बाज्रील का सबसे कारोबारी साझीदार है। ब्राजील का 80 प्रतिशत सोया चीन ही खरीदता है। जबकि, ब्राज़ील के अधिकारी चीन से वेंटिलेटर और दूसरे स्वास्थ्य उपकरण हासिल करने में संघर्ष कर रहे थे। इसी दौरान शिक्षा मंत्री अब्राहम वीनट्रॉब का ट्वीट आ गया, जिसने पहले से चल रहे तनाव को और भी बढ़ा दिया।