न्यूज डेस्क
दिल्ली में विधानसभा चुनाव की तिथि का ऐलान भले ही अभी नहीं हुआ है लेकिन यहां का सियासी माहौल चुनावी है। राजनीतिक दल अपनी पूरी तैयारी के साथ चुनाव मैदान में उतरने को तैयार हैं। 21 सालों से दिल्ली की सत्ता से दूर बीजेपी भी चुनाव की तैयारी में जुटी हुई है, लेकिन मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर बीजेपी अभी तक असमंजस में है।
मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर भाजपा नफा-नुकसान का आंकलन कर रही है कि वह चुनाव में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के मुकाबले वह मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़े या फिर मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में किसी चेहरे पर दांव लगाए।
केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भी माना है कि पार्टी ने अभी इस बारे में कोई फैसला नहीं किया है। जावेड़कर दिल्ली विधानसभा चुनाव के प्रभारी है।
दरअसल, बीजेपी मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में किसी चेहरे पर दांव लगाने से बच रही है। इसका कारण है कुछ राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी की हार। हाल ही में हुए झारखंड में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी।
झारखंड में बीजेपी ने रघुवरदास को मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाया था। वहीं अक्टूबर 2019 में महाराष्ट्र और हरियाणा में भी ऐसा ही कुछ हुआ था। हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर मुख्यमंत्री उम्मीदवार थे तो महाराष्ट्र में देवेन्द्र फडणवीस। हरियाणा में बीजेपी समर्थन लेकर किसी तरह सरकार बनाने में कामयाब हो गई लेकिन महाराष्ट्र में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद बीजेपी सत्ता से बाहर हो गई।
इसके अलावा 2015 में हुए विधानसभा चुनाव भी एक बड़ा कारण है। बीजेपी चुनाव में मिली हार को अब तक नहीं भूली। 2015 के चुनाव में बीजेपी ने किरण बेदी को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा था और बीजेपी को चुनाव में बुरी हार मिली थी।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक अब तक नेतृत्व की ओर से कोई साफ संकेत नहीं दिए गए हैं लेकिन पार्टी में एक बड़ा वर्ग ऐसा है, जिसका मानना है कि किसी चेहरे की बजाय सामूहिक नेतृत्व में पार्टी चुनाव लड़ती है तो उसे दिल्ली में फायदा होगा। इन लोगों का कहना है कि अगर सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाता है तो इसका सबसे बड़ा फायदा होगा कि दिल्ली में पार्टी के सभी गुट अपने नेता के मुख्यमंत्री बनने की उम्मीद में जमकर कार्य करेंगे। ऐसे में आम आदमी पार्टी का मुकाबला किया जा सकेगा।
इसके अलावा एक कारण यह भी है कि इस वक्त दिल्ली में बीजेपी का कोई ऐसा नेता नहीं है, जो केजरीवाल के मुकाबले बहुत मजबूत नजर आता हो। इसीलिए दिल्ली में बीजेपी मुख्यमंत्री उम्मीदवार के नाम को लेकर असमंजस में है।
दरअसल बीजेपी में मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर सुगबुगाहट तब शुरु हुई जब दो कार्यक्रमों में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने सीएम केजरीवाल को बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा से बहस की चुनौती दे डाली। इसके बाद कयास लगाया जाने लगा कि सांसद वर्मा को बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है। हालांकि अब तक यह साफ नहीं हुआ है कि वर्मा का जिक्र करने का मकसद क्या था।
दिल्ली में चुनाव आयोग कभी भी विधानसभा चुनावों के कार्यक्रम का ऐलान कर सकता है। इस बार के दिल्ली विधानसभा चुनावों पर पूरे देश की नजर टिकी हुई है। बीजेपी की भी प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है।
2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने रिकॉर्ड बनाते हुए दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से 67 सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि बीजेपी को सिर्फ 3 सीटों से संतोष करना पड़ा था। वहीं कांग्रेस के खाते में एक भी सीट नहीं गई थी। अब देखना होगा कि दिल्ली में अपनी खोई जमीन वापस पाने के लिए बीजेपी मुख्यमंत्री उम्मीदवार की घोषणा करती है या मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ती है।
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