न्यूज डेस्क
दिल्ली का चुनावी दंगल खत्म होने के बाद अब लोगों की निगाहें बिहार के दंगल पर जा टिकी हैं। साल के अंत में बिहार में विधानसभा चुनाव होना है और इसके लिए नये-नये समीकरण बनने लगे हैं। राजनीतिक दल नफा-नुकसान का आंकलन कर रही है और उसी के हिसाब से अपनी तैयारी कर रही हैं, लेकिन दिल्ली चुनाव परिणाम के बाद बिहार में नये समीकरण बनने के दावे किए जा रहे हैं।
बिहार में अक्टूबर-नवंबर माह में चुनाव होने वाले हैं। नीतीश कुमार अपने काम को भुनाने में लगे हुए हैं तो वहीं विपक्षी दल मुद्दों की तलाश में जुटी हुई हैं। अन्य राज्यों की तरह बिहार में भी सभी विपक्षी दलों का एक ही मंशा है सत्ता से बीजेपी को बाहर करना। इस बीच कई राजनेता इस बात का दावा कर रहे हैं कि विधानसभा चुनाव से पहले बिहार में फिर नये समीकरण बन सकते हैं।
दरअसल इन नेताओं का इशारा जेडीयू प्रमुख व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तरफ है। उनका मानना है कि वह बीजेपी का साथ छोड़कर राजद के साथ आ सकते हैं। हालांकि गृहमंत्री अमित शाह, बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार पहले ही ऐलान कर चुके हैं कि एनडीए बिहार चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगा।
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फिलहाल नीतीश कुमार भी बीजेपी गठबंधन के साथ सहज महसूस कर रहे हैं। हलिया घटनाओं को देखे तो ऐसा कहीं से नहीं लगता कि नीतीश कुमार बीजेपी से नाराज हैं। उनकी पार्टी ने दिल्ली में बीजेपी के साथ मिलकर एक सीट पर चुनाव भी लड़ा और सीएए और एनआरसी का विरोध कर रहे प्रशांत किशोर को भी उन्होंने पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया।
दरअसल बिहार की सियायत में राजनेता जो दावे कर रहे हैं वह दिल्ली परिणाम को देखते हुए किया जा रहा है। उनका कहना है कि नीतीश चुनाव से पहले बीजेपी को छोड़कर राजद के साथ आ सकते हैं। वहीं यह भी दावा किया जा रहा है कि महागठबंधन में नीतीश के लौटने का कांग्रेस विरोध नहीं करेगी।
हालांकि राजद अध्यक्ष लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव नीतीश की वापसी के खिलाफ हैं लेकिन कई विपक्षी नेता इस मामले में लालू प्रयाद यादव से दखल देने की गुजारिश करने और उनके मन की बात जानने का प्लान कर रहे हैं। इस संदर्भ में यह भी चर्चा है कि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से कुछ नेताओं ने रिम्स में इलाज करवा रहे लालू प्रसाद से मुलाकात पर लगी पाबंदी में ढील देने की गुजारिश की है, ताकि अधिक से अधिक नेता उनसे मिलकर बिहार में बीजेपी विरोधी गठबंधन बनाने में उनसे सलाह-मशविरा कर सकें।
बिहार में नया समीकरण बनेगा या नहीं यह तो वक्त बतायेगा लेकिन दिल्ली चुनाव परिणाम ने राजनीति की दिशा को जरूर बदल दिया है। अब साम्प्रदायिक धु्रवीकरण, राष्ट्रवाद या केंद्रीय मुद्दों से विधानसभा चुनाव नहीं जीता जा सकेगा। अब विधानसभा चुनाव विकास के मुद्दों पर लड़ा जायेगा और जीता जायेगा। दिल्ली में बिहार के रहने वाले लोगों ने भी विकास को तरजीह दी है।
गौरतलब है कि बिहार में 2015 के विधानसभा चुनाव में लालू यादव और नीतीश कुमार ने राजनीतिक असहमति के बावजूद हाथ मिलाया था और बीजेपी के खिलाफ जीत हासिल की थी। बीस महीने तक दोनों पार्टियों की साझा सरकार चली लेकिन उसके बाद नीतीश कुमार ने राजद से गठबंधन तोड़ लिया था और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली थी। तेजस्वी यादव उस गठबंधन सरकार में उप मुख्यमंत्री थे।
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