प्रीति सिंह
12 जून से लीची चर्चा में है। लीची को लेकर जो बातें की जा रही है उस पर कुछ लोगों को यकींन नहीं हो रहा तो कुछ लोग इससे दूरी बनाने में अपनी भलाई समझ रहे हैं। दरअसल बिहार के मुजफ्फरनगर के 68 बच्चों की मौत का इल्जाम लीची पर लगा है। कहा जा रहा है कि लीची खाने की वजह से बच्चों की मौत हुई है। इस खबर से सभी के जेहन में एक ही सवाल उठ रहा है कि क्या वाकई लीची जानलेवा है?
बिहार के मुजफ्फरपुर में बीते दो दशक में सैकड़ों बच्चों की संदिग्ध बीमारी से जान जा चुकी है। स्थानीय लोगों में चमकी की बीमारी के नाम से कुख्यात यह रोग हर साल मई जून में सिर उठाता है और इसमें कई बच्चों की जान चली जाती है।
इस साल भी यहां एईएस (Acute Encephalitis Syndrome) यानी चमकी बीमारी का कहर बरपा हुआ है जिसमें अब तक 68 बच्चों की मौत हो चुकी है। उम्मीद की जा रही है कि आने वाले समय में यह आंकड़ा और अधिक बढ़ सकता है।
आखिर क्यों नहीं ढूढ़ा जा रहा बीमारी का हल
मुजफ्फरपुर में यह बीमारी दो दशक से बच्चों को अपना निशाना बना रही है, लेकिन अब तक इसका समाधान नहीं ढूढ़ा गया। केवल 2014 में ही 390 बच्चों को इसी बीमारी की चपेट में आने के बाद दो अस्पतालों में भर्ती कराया गया जिनमें से 122 की मौत हो गई थी।
वहीं इस साल जनवरी से लेकर अब तक कुल 179 संदिग्ध एईएस मामले सामने आ चुके हैं। यहां सबसे बड़ा सवाल कि आखिर आखिर ये सिंड्रोम फैला कैसे? इस समस्या का समाधान क्यों नहीं ढूढा जा रहा है, जबकि पता है कि बीमारी कैसे हो रही है।
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2017 में बीमारी के कारणों का चला था पता
मशहूर विज्ञान पत्रिका लैंसेट ग्लोबल ने 2017 में छापा था कि खाली पेट ज्यादा लीची खाने के कारण यह बीमारी बच्चों को होती है। करीब तीन साल चले रिसर्च के बाद यह खुलासा हुआ था। यह रिसर्च भारत और अमरीका के वैज्ञानिकों की संयुक्त कोशिश से हुआ था।
वैज्ञानिकों के मुताबिक लीची में हाइपोग्लिसीन ए और मिथाइलेन्साइक्लोप्रोपाइल्गिसीन नाम का जहरीला तत्व होता है। अस्पताल में भर्ती हुए ज्यादातर बच्चों के खून और पेशाब की जांच से पता चला था कि उनमें इन तत्वों की मात्रा मौजूद थी। बीमार ज्यादातर बच्चों ने शाम का भोजन नहीं किया था और सुबह ज्यादा मात्रा में लीची खाई थी। ऐसी स्थिति में इस तत्वों का असर ज्यादा घातक होता है।
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बिहार सरकार ने भी 12 जून को एडवाइजरी जारी कर इस बीमारी का कारण लीची बताया है। केंद्र सरकार की ओर से 7 लोगों की एक टीम 12 जून को मुजफ्फरपुर पहुंची है और मौत की वजह की गहराई से जांच कर रही है।
हालांकि अब तक की रिपोर्ट में पता चला है कि इस बीमारी की वजह से मरने वाले बच्चे लगभग दिनभर लीची खाते थे। उनके माता-पिता का कहना है कि जिले के लगभग सभी गांवों में लीची के बागान हैं और बच्चे दिन में वहीं खेलते हैं। जिन बच्चों की मौत इस बीमारी की वजह से हुई है वो अधिकांशत: रात का खाना भी नहीं खा रहे थे, जिसकी वजह से उनके शरीर में हाइपोग्लाइसीमिया बढ़ रहा था।
कुपोषित बच्चों को ज्यादा खतरा
बच्चों में कुपोषण और पहले से बीमार होने की वजह भी ज्यादा लीची खाने पर इस बीमारी का खतरा बढ़ा देती है। बीमारी से मरे बच्चों में अधिकतर बेहद गरीब परिवारों से हैं, जो इन लीची के बागानों में सुबह से ही घूमते हैं और वहां से लीची खाते हैं। डॉक्टरों ने भी इलाके के बच्चों को सीमित मात्रा में लीची खाने और उसके पहले संतुलित भोजन लेने की सलाह दी है।
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शुगर लेवल कम होना घातक
जो बच्चे पौष्टिक आहार नहीं ले रहे हैं या जिन्हें पेट भर खाना नहीं मिल पाता है उनके लिए ये लीची ही मौत की वजह बन रही है। ऐसे में बच्चों को हाइपोग्लाइसीमिया हो जा रहा है।
ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि लीची में मीथाइलीन साइक्लोप्रोपाइल ग्लाइसिन नाम तत्व पाया जाता है, जो शरीर में शुगर लेवल कम होने पर सीधे दिमाग पर असर डालता है। शुगर लेवल में कमी भूखे रहने या फिर पौष्टिक आहार ना मिलने की वजह से भी आ सकती है।
बच्चों के यूरीन सैंपल की जांच से भी पता चला है कि दो-तिहाई बीमार बच्चों के शरीर में वही विषैला तत्व था, जो लीची के बीज में पाया जाता है। यह जहरीला तत्व कम पकी या कच्ची लीची में सबसे ज्यादा होता है।
एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम की वजह से दिमाग में बुखार चढ़ जाता है जिसकी वजह से कई बार मरीज कोमा में भी चला जाता है। गर्मी, कुपोषण और आर्द्रता की वजह से यह बीमारी बहुत तेजी से बढ़ती है और अपना कुप्रभाव दिखाती है।