जुबिली न्यूज डेस्क
पिछले चार दिनों से भारत में चीन के खिलाफ जबर्दस्त विरोध-प्रदर्शन हो रहा है। लोग चीनी सामान का बहिष्कार कर रहे हैं और सरकार से चीन को सबक सिखाने की मांग कर रहे हैं। इस बीच चीनी एप भी अनइंस्टाल करने की लोगों से अपील की जा रही है। शुक्रवार को उत्तर प्रदेश एसटीएफ ने अपने कर्मचारियों को टिकटॉक, यूसी ब्राउजर और हेलो समेत 52 चाइनीज एप तुरंत हटाने का आदेश दिया।
एसटीएफ की ओर से जारी आदेश में कहा गया कि समस्त अधिकारी और कर्मचारी को आदेश दिया जाता है कि वे अपने वह अपने परिजनों के मोबाइल फोन से ये एंड्राइड एप तत्काल हटा दें। गृह मंत्रालय द्वारा इन ऐप को इस्तेमाल न करने की सलाह दी गई है। यह सभी ऐप चाइनीज हैं। और इनके द्वारा आपके मोबाइल से आपका व्यक्तिगत एवं अन्य डेटा चुराए जाने की संभावना है। अब सवाल उठता है कि क्या भारत-चीन तनाव से पहले ये सारे ऐप सुरक्षित थे? यदि ये सुरक्षित नहीं थे तो इन्हें पहले ही क्यों नहीं हटाया गया।
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आज पूरे देश में चीनी ऐप को अनइंस्टाल करने की मुहिम चलायी जा रही है। अब सरकारी विभाग भी इस मुहिम से जुड़ रहे हैं। इन ऐप को सुरक्षा की दृष्टि से सही नहीं माना जा रहा है, इसलिए अनइंस्टाल करने की बात कही जा रही है। ऐसे में सवाल उठाना लाजिमी है।
चाइनीज ऐप को लेकर पहले भी कई बार ऐसी आशंका व्यक्त की गई थी कि ये सुरक्षा के लिहाज से सही नहीं है। इससे डेटा चुराए जाने की संभावना है। जब ऐसी आशंका पहले ही व्यक्त की जा चुकी थी तो पहले ही यह कदम क्यों नहीं उठाया गया? सरकार ने इस पर पाबंदी क्यों नहीं लगाई?
यह पहला मौका नही है, जब चीनी ऐप के खिलाफ ऐसा माहौल बना हो, कोरोनावायरस के दौर में भी चीनी ऐप को बैन करने की मुहिम चल चुकी है। स्वदेशी सामानों की वकालत करने वाले पहले भी चीनी उत्पादों के बॉयकॉट करने की अपील करते रहे हैं लेकिन चीन से संबंधित मोबाइल फोन ऐप डिलिट करने की बात पहली बार देखी जा रही है।
कुछ दिनों पहले ‘रिमूव चाइना ऐप्स’ नाम से एक नया एंड्रायड ऐप रजिस्टर्ड कराया गया था। गूगल प्ले स्टोर पर कुछ ही दिनों में इसके पचाल लाख डाउनलोड देखने को मिला। यह ऐप स्मार्टफोन को स्कैन करके सभी चाइनीज ऐप को एक क्लिक करने पर अनइंस्टॉल कर देता है। हालांकि यह ऐप गूगल प्ले स्टोर पर तीन जून से हटा लिया गया।
जिन मोबाइल ऐप्स को निशाना बनाया जा रहा है उसमें टिकटॉक, पबजी मोबाइल, शेयरआईटी, जेंडर, कैम स्कैनर, ब्यूटी प्लस, क्लैश ऑफ क्लेन्स, लाइकी और यूसी ब्राउजर शामिल हैं।
हालांकि एक समय ऐसा भी देखने को मिला था जब गूगल प्ले स्टोर पर टिकटॉक ऐप की रेटिंग 4.4 से गिरकर दो रह गई थी, क्योंकि भारतीय यूजर्स निगेटिव रेटिंग दे रहे थे। हालांकि गूगल ने बाद में करीब अस्सी लाख निगेटिव रिव्यू को हटाकर टिकटॉक की रेटिंग फिर से 4.4 कर दी है।
लोगों की इस नाराजगी का बहुत ज्यादा असर हाल-फिलहाल अभी नहीं दिख रहा है, क्योंकि कुछ एक्सपर्ट मानते हैं कि चीन से संबंधित ऐप्स से नाराजगी बहुत समय तक नहीं संभव है क्योंकि उनके विकल्प मौजूद नहीं हैं।
साइबर सिक्युरिटी एक्सपर्ट अंशुल जैन कहते हैं- राष्ट्रवादी भावनाओं से लोकप्रिय ऐप गायब नहीं हो सकते। यह लंबी लड़ाई है। यह तभी संभव है जब हम उसका विकल्प तलाश लेंगे। हमें सोचना होगा कि हम उतना ही लोकप्रिय ऐप स्थानीय स्तर पर कैसे विकसित कर सकते हैं।
2.34 अरब डॉलर का है भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश
आज जब भारत और चीन की सेना आमने-सामने हैं तब इसका नुकसान गिनाया जा रहा है। चीन को सबक सिखाने की बात कही जा रही है। इससे पहले तक न तो डेटा की चिंता थी और न ही भारतीय बाजार में चीन के बढ़ते दखल की।
चीन के साथ भारत का कारोबार कई रूपों में होता है। ऐप को छोड़ दिया जाए तो हम चीन से पतंग का मांझा, चीनी मिट्टी की मूर्तियां, गुलाल, पिचकारी, दीपावली की झालरें जैसी गैर-जरूरी चीजें भी मंगवाते हैं, और मोबाइल फोन, इंजीनिर्यंरग व इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के जरूरी कल-पूर्जे भी।
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चीन पर हमारी व्यापारिक निर्भरता बहुत ज्यादा है। दोनों देशों के बीच पिछले साल लगभग 92 अरब डॉलर का आपसी कारोबार हुआ है, जिसमें हमने चीन से आयात ज्यादा किया और निर्यात कम। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारी निर्भरता चीन पर कितनी है। अर्थशास्त्रियों की माने तो हमारे चीनी सामान का बहिष्कार करके से चीन को सिर्फ चार-पांच बिलियन डॉलर का नुकसान होगा।
इसके अलावा भारत के कई कामयाब स्टार्टअप में चीनी निवेशकों ने पैसा लगाया हुआ है। इसमें फ्लिपकार्ट, पेटीएम, ओइयो, बैजु, ओला, बिग बास्केट, जोमेटो जैसे ब्रैंड शामिल हैं।
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 2.34 अरब डॉलर का है जबकि मुंबई स्थित थिंकटैंक गेटवे हाउस के मुताबिक चीनी के तकनीकी निवेशकों ने भारतीय स्टार्टअप्स में चार अरब डॉलर का निवेश किया है। इस थिंकटैंक के अनुसार मार्च, 2020 तक एक अरब डॉलर से ज्यादा वैल्यू वाले 30 भारतीय स्टार्टअप्स में 18 में चीनी निवेशकों का पैसा लगा हुआ है। ऐसे में सोचने वाली बात है कि भारत का चीनी सामान का बॉयकॉट कितना संभव है।