न्यूज़ डेस्क
लखनऊ। इस दिवाली में मूर्ति बाजार में ‘मेड इन इंडिया’ का जलवा होगा। ‘मेड इन चाइना’ की चमक अब बढ़ती हुई नजर आ रही है। पिछले कई बरसों से दिवाली पर देवी-देवताओं की मूर्तियों के बाजार में चीन का कब्जा था। इस बार देश में बनी मूर्तियां ज्यादा दिखाई दे सकती हैं।
लॉकडाउन ने दुनिया को कई सीख दी, लेकिन इस बीच कई देशों ने कुछ ऐसी पॉलिसी बनाई, जिसने दूसरे देशों के साथ होने वाले कारोबार को दर किनार कर अपने देशी उत्पाद को बढ़ावा देने पर जोर दिया है। इस नीति में भारत ने भी कई सख्त कदम उठाये और लोकल उत्पाद को ग्लोबल बनाने की ओर कदम बढ़ाया।
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यही वजह हैं कि इस बार दिवाली में उत्तर प्रदेश और चीन का जोरदार मुकाबला देखने को मिलेगा। मुख्यमंत्री योगी के निर्देश पर माटी कला बोर्ड ने गौरी- गणेश की चाइनीज मूर्तियों को बाजार से बाहर करने की पूरी तैयारी कर ली है।
इसके लिए प्रदेश स्तरीय ऑनलाइन और वास्तविक कार्यशाला आयोजित की जाएगी। इनके माध्यम से मूर्तिकला के नामी-गिरामी मूर्तिकार और विशेषज्ञ, माटी में जान डालने वालों को अपना हुनर निखारने के लिए टिप्स देंगे।
ऑनलाइन कार्यशाला इस महीने चलायी जाने की योजना पर कार्य किया जा रहा है। इसमें इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ क्राफ्ट एंड डिजाइन (आईआईसीडी जयपुर), महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगिकरण संस्थान (एमजीआईआरआई वर्धा), नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन एंड टेक्नोलॉजी (निट रायबरेली) और उप्र इंडस्ट्रीज ऑफ डिजाइन (यूपीआईडी) के विशेषज्ञ और अन्य विशेषज्ञ गुणवत्ता में बेहतर और दाम में गौरी-गणेश की मूर्तियों को बनाने की जानकारी देंगे।
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ऑनलाइन कार्यशाला या तो सभी मंडलों के महाप्रबंधक उद्योग के कार्यालयों में आयोजित की जाएगी, या फिर किसी अन्य जगह पर आयोजित होगी। हर जगह बड़े-बड़े टीवी स्क्रीन लगेंगे। वहां माटी को जीवंत करने वाले कलाकार सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए मौजूद रहेंगे।
विशेषज्ञ अपनी-अपनी विशेषज्ञता के अनुसार मूर्तियां बनाने की जानकारी के साथ उनकी अन्य समस्याओं का भी समाधान करेंगे। मसलन निट के एक्सपर्ट तैयार उत्पादों के बेहतर और सुरक्षित पैकिंग के बारे में बताएंगे।
महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगिकरण संस्थान के विवेक मसानी गैस की भट्टियों के प्रोसेस और फायरिंग की प्रक्रिया के बारे में बताएंगे। मास्टर ऑफ फाइन आर्ट और मूर्तिकला के विशेषज्ञ के.के श्रीवास्तव और अमरपाल अपने दो दशक के अनुभवों को साझा करेंगे।
प्रदेश स्तरीय वास्तविक कार्यशाला अगस्त में गोरखपुर में होगी। गोरखपुर के चयन के पीछे यहां के भटहट कस्बे के औरंगाबाद और आस-पास के गांवों के लोगों की मिट्टी के सामान (टेरोकोटा) बनाने में महारथ हासिल होना है। इन गांवों के करीब दर्जन भर से अधिक लोग अपने हुनर के लिए प्रदेश और देश स्तर पर सम्मानित भी हो चुके हैं।
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इनके हुनर के कारण ही टेरोकोटा गोरखपुर के एक जिला एक उत्पाद में शामिल है। हाल ही में वहां के टेरोकोटा को जियोग्राफिकल इंडीकेशन भी प्राप्त हुआ। स्वाभाविक है कि यहां के लोगों और विशेषज्ञों की दक्षता से प्रदेश भर से वहां आने लोगों का हुनर और निखरेगा। गुणवत्ता सुधरने से उनके उत्पाद की मांग सुधरेगी। हर जगह स्थानीय स्तर पर लोगों को रोजगार भी मिलेगा।
मुख्यमंत्री का यह भी निर्देश है कि माटी कला बोर्ड के जरिए अधिक से अधिक लोगों को रोजगार मुहैया कराया जाए। सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग विभाग ने इसके अनुसार अपनी कार्ययोजना भी तैयार की है।
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इसमें प्रशिक्षण से लेकर रोजगार देने की योजना है। इस क्रम में विधा से जुड़े लोगों के उत्पाद की गुणवत्ता सुधारने के लिए उनको तीन तरह के अल्पकालिक प्रशिक्षण दिए जाएंगे।
इसमें तीन दिवसीय प्रशिक्षण के 75, सात दिवसीय प्रशिक्षण के 10 और 15 दिवसीय प्रशिक्षण के 15 सत्र होंगे। इसके अलावा 2700 लाभार्थियों को बिजली चालित चाक भी बांटे जाएंगे। इस वित्तीय वर्ष में 10500 लोगों को माटी कला बोर्ड के विभिन्न योजनाओं के तहत रोजगार दिलाने का भी विभाग का लक्ष्य है।
प्रमुख सचिव सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग नवनीत सहगल का कहा स्वदेशी को बढ़ावा देना मुख्यमंत्री की मंशा है। दिवाली में लगभग हर परिवार पूजन के लिए गौरी-गणेश की मूर्तियां खरीदता है। अधिकांश मूर्तियां चीन से आती हैं। चीन का एकाधिकार टूटे।
हमारे यहां के माटी कला से जुड़े कलाकार भी गुणवत्ता में उसी तरह की या उससे बेहतर और दामों में प्रतिस्पर्द्धी मूर्तियां बना सकें, कार्यशाला का यही मकसद है।
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