जुबिली न्यूज़ ब्यूरो
नई दिल्ली. देश की सर्वोच्च अदालत ने यह कहा है कि सिर्फ फिरौती के लिए अगर किसी को अगवा किया गया है लेकिन उसने अपह्रत के साथ कोई जाहिलाना बर्ताव नहीं किया है तो किडनैपर को उम्रकैद की सज़ा नहीं दी जा सकती.
जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस सुभाष रेड्डी ने यह टिप्पड़ी तेलंगाना हाईकोर्ट द्वारा सुनाये गए एक फैसले को लेकर की. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर किडनैपर जान से मारने की धमकी नहीं देता है. अगर वह अपह्रत व्यक्ति के साथ मारपीट नहीं करता है, अगर वह उसके साथ अच्छा व्यवहार करता है तो उसे उम्र कैद नहीं दी जा सकती.
दरअसल मामला एक ऑटो चालक शेख अहमद का है. ऑटो चालक ने एक नाबालिग का किडनैप कर लिया और उसके पिता से दो लाख रुपये की फिरौती माँगी थी. तेलंगाना हाईकोर्ट ने शेख अहमद को अपहरण एवं फिरौती की धारा धारा 364 ए के तहत उम्रकैद की सज़ा सुनाई थी. शेख अहमद ने तेलंगाना हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि अगर कोई सरकार, किसी अन्य देश या सरकारी संगठन पर दबाव बनाने के लिए अपहरण करता है और फिरौती मांगता है तो किडनैपर को ऐसी स्थिति में उम्रकैद या मौत की सज़ा दी जा सकती है जबकि यह आशंका साबित हो कि उसकी बात नहीं सुने जाने पर अपह्रत की हत्या की जा सकती है.
ऑटो चालक ने स्कूल से घर छोड़ने के दौरान 13 साल के बच्चे को अगवा कर लिया था और उसके पिता से फिरौती माँगी थी. बच्चे का पिता जब ऑटो चालक को फिरौती देने गया तब पुलिस ने उसे पकड लिया और बच्चे को छुड़ा लिया. अपह्रत बच्चे के पिता ने कोर्ट में यह बताया था कि ऑटो चालक ने उसके बच्चे को न तो धमकी दी और न उसके साथ मारपीट की. उसने बच्चे को नुक्सान पहुंचाने की कोशिश नहीं की.
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सुप्रीम कोर्ट ने पूरी बहस सुनने के बाद धारा 364 ए के तहत दोषी ठहराए जाने का फैसला रद्द करते हुए कहा कि अपहरण का दंड सात साल की सज़ा और पांच हज़ार रुपये जुर्माना है.