Tuesday - 29 October 2024 - 11:10 PM

तो योगी सरकार का सारा ध्यान आलोचकों का मुंह बंद करने पर है?

प्रीति सिंह

उत्तर प्रदेश सरकार कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर कटघरे में खड़ी है। सरकार न सिर्फ अपराध रोकने में विफल साबित हो रही है बल्कि वह लगातार किरकिरी झेल रही है।

दरअसल योगी सरकार की कानून-व्यवस्था को लेकर न तो कोई व्यवहारिक रणनीति नजर आती है और संकल्पशक्ति। जिस तरह पुलिस और सरकार रवैया अपनाए हुए हैें उससे तो यही लग रहा है कि उसका सारा ध्यान अपने आलोचकों का मुंह बंद करने पर केंद्रित हो गया है। आलोचकों का विरोध दबाने के चक्कर सरकार ऐसे कदम उठा रही है जिसकी वजह से उसके विरोधियों को और बोलने का मौका मिल रहा है।

यूपी पुलिस और प्रशासन का हाथरस सामूहिक बलात्कार मामले में शुरू से लेकर अब तक  जैसा रवैया रहा, उससे यही जाहिर होता है कि सरकार ऐसे मामलों को गंभीरता से लेने के बजाय निहायत लापरवाही भरे ढंग से निपटाने में विश्वास करती है।

हाथरस मामले में पुलिस की लापरवाही की वजह से आज योगी सरकार कटघरे में है। पुलिस ने पूरे मामले में लापरवाही बरती। सबसे पहले तो उसने आरोपियों को पकडऩे में देर की, फिर पीडि़ता के इलाज पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया और जब पीडि़ता ने दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में दम तोड़ दिया, तो उसका शव उसके परिजनों को सौंपने के बजाय रात के अंधेरे में अंतिम संस्कार कर दिया।

पुलिस का यह कृत्य कहां से सही है। जाहिर है पुलिस के इस कदम पर सवाल उठेगा ही। आखिर प्रशासन को इस तरह रात के अंधेरे में अंतिम संस्कार करने का अधिकार किसने दिया, वह भी उस पीडि़ता का जिसका भरा-पूरा परिवार था।

जाहिर है, सरकार ने ऐसा जानबूझ कर ही किया है। वह परिजनों को शव सौंप कर विपक्षी दलों को राजनीतिक हंगामे का मौका नहीं देना चाहती थी। पर ऐसा करके उसने एक तरह से अपने तानाशाही रवैए का ही प्रदर्शन किया। अब परिजनों का आरोप है कि प्रशासन उन पर मामले को रफा-दफा करने का दबाव बना रहा है।

सरकार का तानाशाही रवैया अब भी बरकरार है। सरकार नेअब निषेधाज्ञा लगा कर पीडि़ता के पूरे गांव को एक तरह से छावनी में बदल दिया गया है। कई दलित नेताओं को उनके घरों में नजरबंद कर दिया गया है, ताकि वे इस घटना के विरोध में प्रदर्शन न कर सकें।

गुरुवार को भी उत्तर प्रदेश पुलिस ने अपना पराक्रम दिखाया। दरअसल यूपी पुलिस अपना पराक्रम अपराध रोकने में नहीं बल्कि निहत्थों पर दिखाने में ज्यादा यकीन रखती है।

गुरुवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा पीडि़ता के परिजनों से मिलने के लिए हाथरस के लिए रवाना हुए तो उन्हें उत्तर प्रदेश की सीमा पर ही रोक दिया गया। जब वे गाड़ी से उतर कर पैदल चलने लगे, तो पुलिस ने उनसे धक्कामुक्की की और समर्थकों पर लाठी बरसाई।

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यह सही है कि प्रदेश में कानून-व्यवस्था बनाए रखना सरकार की जिम्मेदारी है। वह किसी भी ऐसे आंदोलन को सिर नहीं उठाने दे सकती, जिससे राज्य की शांति भंग हो, मगर सवाल यह है कि यह मुस्तैदी केवल तभी क्यों दिखाई देती है, जब विपक्षी दल, सामाजिक संगठन या आम नागरिक किसी मामले में सरकार के खिलाफ उठ खड़े होते हैं। अपराध रोकने के मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस का पराक्रम क्यों हमेशा ठंडा ही पड़ा नजर आता है?

उत्तर प्रदेश में हाथरस का मामला अकेला नहीं है। शायद ही कोई हफ्ता बीतता हो, जब राज्य में बलात्कार और हत्या की घटना नहीं होती। अभी हाथरस का मामला चल ही रहा था कि उत्तर प्रदेश में बलात्कार की तीन अलग-अलग घटनाएं हो गर्इं। बलरामपुर में सामूहिक बलात्कार और हत्या की एक और घटना सामने आई। यह सिलसिला लंबे समय से बना हुआ है।

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जिस तरह से प्रदेश में घटनाएं हो रही है उससे जाहिर है कि आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों में पुलिस का अब कोई खौफ नहीं रह गया है। जो मुस्तैदी और तत्परता उत्तर प्रदेश सरकार अपने विपक्षी दलों और आलोचकों का मुंह बंद करने में दिखा रही है, अगर वही अपराधियों पर नकेल कसने में दिखाती, तो अब तक वहां अपराध काफी कम हो चुका होता।

लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ केवल मंचों से अपराध खत्म करने के दावे करते हैं, वास्तव में इसके लिए कोई कारगर रणनीति अब तक नहीं बना सके हैं। अगर पुलिस सचमुच अपराध रोकने और सुरक्षा व्यवस्था कड़ी करने को लेकर प्रतिबद्ध होती, तो अपराधी इस तरह बेखौफ न घूम रहे होते।

Radio_Prabhat
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