जुबिली न्यूज डेस्क
लड़कियों की शादी की उम्र लड़कों के समान यानी 18 से बढ़ाकर 21 किए जाने को लेकर देश में अलग-अलग तर्क दिए जा रहे हैं।
जहां कुछ लोग सरकार के इस फैसले की तारीफ कर रहे हैं तो वहीं बहुत सारे लोगों को यह गैर जरूरी कदम लग रहा है।
हालांकि, अब ऐसी खबरें हैं कि सरकार ने लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने का फैसला 2017 में शीर्ष अदालत के दिए उस फैसले के बाद लिया जिसमें बलात्कार संबंधी कानून को लेकर सवाल किए गए थे।
दरअसल अक्टूबर 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने मैरिटल रेप से छूट के मामले की सुनवाई के दौरान दिया था। उस समय अपने आदेश से कोर्ट ने एक विवाहत नाबालिग और एक अविवाहित नाबालिग के बीच अनावश्यक भेद को खत्म कर दिया था।
अपने आदेश में शीर्ष अदालत ने कहा था कि कोई भी कानून संकीर्ण और स्थिर नहीं हो सकता है। कानून को समाज की जरूरतों के हिसाब से बदलना चाहिए।
अदालत की इसी टिप्पणी को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने शादी की न्यूनतम उम्र को बढ़ाने का फैसला किया।
इकोनॉमिक टाइम्स की खबर के अनुसार, इस मामले से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि शीर्ष अदालत के आदेश को ध्यान में रखते हुए सरकार के कानूनी विशेषज्ञों ने महिलाओं की शादी की वैध उम्र को 18 से बढ़ाकर 21 साल करने का सुझाव दिया।
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सबसे दिलचस्प बात यह है कि अगस्त 2018 में कानून आयोग ने यह राय दी थी कि पुरुषों और महिलाओं के लिए समान रूप से शादी की न्यूनत उम्र 18 वर्ष होनी चाहिए।
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बताते चलें कि संसद का शीतकालीन सत्र खत्म हो गया है। इससे पहले लड़कियों की शादी की उम्र 21 साल करने का बिल संसद की स्थायी समिति को भेज दिया गया था।
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने बीते मंगलवार लोकसभा में बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक, पेश किया था जिसमें महिलाओं की शादी की उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल करने का प्रस्ताव है।