Thursday - 7 November 2024 - 7:17 PM

तो इसलिए बढ़ी अभिभावकों की चिंता

न्यूज़ डेस्क

नई दिल्ली। देश के करीब दो लाख से अधिक अभिभावकों ने एक पिटिशन पर साइन किया है, जिसमें कहा गया है कि जब तक कोरोना संक्रमण से संबंधित ये हालात सुधर नहीं जाते तब तक स्कूलों को खोला नहीं जाना चाहिए।

ये पिटिशन इसलिए दाखिल की गई है कि हाल ही में सरकार ने ऐलान किया है कि जुलाई से स्कूलों, यूनिवर्सिटी और कोचिंग सेंटर समेत अन्य शैक्षणिक स्थलों को खोलने की प्रक्रिया शुरू हो सकती है।

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कई अभिभावकों ने कहा है कि स्कूलों को खोलना इस समय सरकार के सबसे खराब फैसलों में से एक साबित हो सकता है। ये आग से खेलने जैसा है। 2020-21 को ई-लर्निंग प्रोसेस में ही चलना चाहिए। अगर स्कूलों का दावा है कि वो वर्चुअल क्लासों में अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं तो ऐसा साल भर के लिए करना चाहिए।

अभिभावकों का कहना है कि हम कई तरह से एहतियात बरतते हैं। लेकिन जब बच्चे स्कूल जाना शुरू करेंगे तो ऐहतियात बरतना मुश्किल हो जाएगा। बस में, लंच ब्रेक में, हर जगह बच्चों के लिए कोरोना एक खतरे की तरह रहेगा। आज के समय में भी लगातार कोरोना के मामले बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे में सरकार का ये फैसला परेशानी खड़ी कर सकता है।

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दिल्ली के कई अभिभावकों ने सुझाव दिया कि जब लॉकडाउन हुआ था उस समय ऑनलाइन क्लास लेने में सभी को कई परेशानियां हुई थी। बीते दो महीनों में सभी इसके आदि हो चुके हैं। अब कुछ समय तक इस ई-लर्निंग प्रक्रिया को जारी रखना चाहिए।

आपको बता दें कि याचिका में कहा गया है, जुलाई में स्कूलों को खोलना सरकार का सबसे खराब निर्णय होगा। हमें इस समय पूरी ताकत से इस वायरस से लड़ना होगा और यह इस समय आग से खेलने जैसा है।

वर्तमान शैक्षणिक सत्र ऑनलाइन शिक्षण के माध्यम से जारी रहना चाहिए। यदि स्कूल दावा करते हैं कि वे ऑनलाउन पढ़ाकर अच्छा काम कर रहे हैं तो फिर इसे बाकी शैक्षणिक सत्र के लिए जारी रखना चाहिए। याचिका पर 2.13 लाख से अधिक अभिभावकों ने हस्ताक्षर किए हैं।

गृह मंत्रालय ने शनिवार को कहा, स्कूलों और कॉलेजों सहित शिक्षण संस्थानों को राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों की सलाह से जुलाई में खोलने का फैसला लिया जाएगा और इस बीच ये संस्थान के स्तर पर अभिभावकों तथा अन्य संबंधित पक्षों के साथ इस विषय पर चर्चा करेंगे।

फीडबैक के आधार पर इन संस्थाओं को जुलाई 2020 में खोलने का फैसला लिया जाएगा। हालांकि इससे उन सभी अभिभावकों की चिंता बढ़ गई जिनका मानना है कि सरकार का यह कदम बच्चों के लिए काफी असुरक्षित है।

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