जुबिली न्यूज़ ब्यूरो
लखनऊ. रामनगरी अयोध्या को धार्मिक पर्यटन के नक़्शे पर विश्व पटल पर चमकाने के लिए उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार तमाम कोशिशें कर रही है. इन्हीं कोशिशों के तहत अयोध्या के हवाई अड्डे को अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे में बदलने की तैयारियां भी जोर पकड़ चुकी हैं. हवाई अड्डे को अंतर्राष्ट्रीय बनाने के लिए ज़मीनों का अधिग्रहण किया जा रहा है. अवध विश्वविद्यालय की 25 एकड़ ज़मीन और कुछ भवन भी निशुल्क ले लिए गए हैं.
अवध यूनीवर्सिटी की एलुमिनाई एसोसियेशन ने इस संबंध में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर इस फैसले पर पुनर्विचार की बात कही है. पत्र में कहा गया है कि अयोध्या में पहले से बने हवाई अड्डे को अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे में बदलने की जो कोशिशें चल रही हैं वह तकनीकी रूप से सही नहीं हैं.
भगवान श्रीराम के नाम पर बनने वाले इस हवाई अड्डे पर ध्यान इसलिए ज़रूरी है कि वर्षों पहले अयोध्या में बनाया गया हवाई अड्डा अब आबादी के बीच में आ चुका है. इसके आसपास तीन-तीन मंजिला मकान बन चुके हैं. अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाने के लिए आबादी के बाहर की ज़मीन चुनना चाहिए था. इससे ज़मीनों का अधिग्रहण आसान होता. दिल्ली और लखनऊ के हवाई अड्डे आबादी से दूर बनाए गए हैं. दिल्ली में पालम गांव में हवाई अड्डा बनाया गया तो लखनऊ में अमौसी में हवाई अड्डा बना. इसी तरह से अयोध्या में भी गांव में हवाई अड्डा बनाया जाता तो ज़मीनों का अधिग्रहण भी आसान होता और आसपास ऊंची इमारतें भी न होतीं.
अयोध्या में शहर के बीच बने हवाई अड्डे के आसपास इमारतें बन चुकी हैं. 45 साल पहले इसी से लगाकर अवध यूनीवर्सिटी बन चुकी है. अवध यूनिवर्सिटी की 25 एकड़ ज़मीन पर कब्ज़ा कर लोगों ने मकान बना लिए हैं जिन्हें खाली कराने में जिला प्रशासन कोई रूचि नहीं ले रहा है. अब अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के लिए और ज़मीन अधिग्रहीत हो रही है. इससे यूनीवर्सिटी के पास 50 एकड़ ज़मीन कम हो जायेगी. यूनीवर्सिटी के पास ही राजर्षि दशरथ चिकित्सा महाविद्यालय भी बनाया जा चुका है. हवाई अड्डे का प्रस्ताव अवध यूनिवर्सिटी और राजर्षि दशरथ चिकित्सा महाविद्यालय को नुक्सान पहुंचाएगा.
मुख्यमंत्री को भेजे पत्र में बताया गया है कि अवध विश्वविद्यालय बनाया गया था तो इसे 113 एकड़ ज़मीन दी गई थी. 25 एकड़ ज़मीन पर कब्जा कर लोग मकान बना चुके हैं और रह रहे हैं. इसे खाली कराने के मुद्दे पर जिला प्रशासन शुरू से ही उदासीन रहा है. 25 एकड़ हवाई अड्डे में चली गई तो विश्वविद्यालय के पास सिर्फ 63 एकड़ ज़मीन ही बाकी बचेगी.
विश्वविद्यालय के बगल में अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बन जाने के बाद विश्वविद्यालय का विस्तार असम्भव हो जाएगा क्योंकि ऊपरी मंजिल बनाई नहीं जा सकेगी और नीचे ही विस्तार संभव नहीं रह जाएगा क्योंकि इसके पास ज़मीन ही नहीं होगी. इसके साथ ही हवाई अड्डे की वजह से विश्वविद्यालय में चल रहे शोध कार्यों को जारी रख पाना मुश्किल हो जाएगा.
इसी तरह से राजर्षि दशरथ चिकित्सा महाविद्यालय में भर्ती मरीजों की सेहत पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा. हवाई अड्डे का विस्तारीकरण होने से पहले ही हवाई अड्डा प्राधिकरण ने विश्वविद्यालय के अतिथि गृह में लगे इंटरनेट कनेक्शन को लेकर आपत्ति जता दी है, जबकि ज़ियालाजी विभाग में डाटा संग्रह के लिए इससे भी बड़े एंटीना की ज़रूरत होगी जिसे हवाई अड्डा प्राधिकरण किसी भी सूरत में मंजूरी नहीं देगा.
आने वाले समय में हवाई अड्डे का विस्तार करने के लिए फिर से ज़मीन की ज़रूरत पड़ेगी और तब विश्वविद्यालय और मेडिकल कालेज का अस्तित्व खत्म हो जाएगा. पत्र में लिखा गया है कि कोई भी शैक्षिक संस्थान विकसित करने में वर्षों लग जाते हैं लेकिन उसकी बर्बादी में समय नहीं लगता है. हवाई अड्डा ज़रूरी है लेकिन इसे आबादी के बाहर स्थानांतरित कर अवध यूनिवर्सिटी और मेडिकल कालेज को बचाया जा सकता है.
अवध विश्वविद्यालय की पुरातन छात्र सभा के अध्यक्ष ओमप्रकाश सिंह ने इस पत्र में कहा है कि अगर हवाई अड्डा आबादी से दूर ट्रांसफर हो जाए तो आने वाले दिनों में यूनिवर्सिटी और मेडिकल कालेज दोनों का विस्तार हो सकता है. इसी हवाई अड्डे को अगर विस्तारित किया जाएगा तो आने वाले समय में जब ज़मीन की ज़रूरत पड़ेगी तब दोनों शैक्षिक संस्थानों का भविष्य खतरे में पड़ जाएगा.
मुख्यमंत्री को भेजे पत्र में कहा गया है कि अगर इसी हवाई अड्डे का विस्तार अपरिहार्य है तो बेहतर होगा कि विश्वविद्यालय को कहीं और ज़मीन एलाट कर दी जाए और उसके निर्माण में लगने वाले समय तक हवाई अड्डे का काम रोक दिया जाए. विश्वविद्यालय नयी बिल्डिंग में ट्रांसफर होने के बाद इस काम को आगे बढ़ाया जाए.
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