अभिनव सिंह
एक प्रेरक प्रसंग हैं-जो होता है अच्छे के लिए होता है। तो क्या हम कोरोना वायरस की प्रजाति कोविड19 के लिए यह कह सकते हैें। शायद नहीं, लेकिन कहते हैं न कि हर चीज के दो पहलू होते हैं। इंसान सबसे पहले अपने लिए सोचता है और इंसान अब तक ऐसा ही करता आया है। आज परिस्थितियां बदल गई है। कोविड 19 ने इंसान को वहां खड़ा कर दिया है जहां पहले प्रकृति खड़ी थी। हम उसको घाव देते गए और वह चुपचाप सहन करने को मजबूर थी। आज इंसान कोविड 19 की वजह से संकट में घिरा है और प्रकृति इस अवसर का फायदा उठाकर अपने घाव को ठीक करने में जुटी हुई है। प्रदूषण फैलाने वाले मोटर-गाड़ी, फैक्ट्रिया सब बंद हैं और इस माहौल में प्रकृति अपने पुराने वजूद में आती दिख रही है।
पर्यावरण के प्रति पिछले कई सालों से वैज्ञानिक लोगों को आगाह कर रहे हैं, लेकिन हम इंसान अपने अलावा कहां किसी के बारे में सोच पाते हैं। मजबूत अर्थव्यवस्था और विकसित देशों की श्रेणी में आने के लिए जितना प्रकृति का दोहन कर सकते हैं कर रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग का असर दिखने के बावजूद भी हम अलर्ट नहीं हुए। हर साल दुनिया भर के देश के राष्ट्राध्यक्ष जलवायु समिट में इकट्ठा होकर कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए हुंकार भरते आ रहे हैं, लेकिन हकीकत में इस पर शायद कोई ही देश अमल कर रहा हो। खैर जो काम इंसान नहीं कर सके, कोविड 19 ने कर दिखाया। आज इंसान मजबूरी में वह सबकुछ कर रहा है जिसके लिए पर्यावरणविद और वैज्ञानिक गुहार लगा रहे थे।
लॉकडाउन झेल रहे दुनिया के कई हिस्सों से वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण के कम होने की सूचनाएं आने लगी हैं। जिन शहरों में सांस लेना महसूस हो रहा था अब वहां लोग खुलकर सांस ले रहे हैं। जिन नदियों के पानी से नहाने पर तमाम बीमारियां हो रही थी, वह अब निर्मल हो गई है। बहुत से लोगों ने तो शायद ही कभी नदियों का यह रूप देखा होगा जैसा अभी दिख रहा है। धरती भी इस समय सुकून महसूस कर रही है।
यह भी पढ़ें : स्मार्टफोन की मदद से सिंगापुर कैसे रोक रहा है कोरोना
बेल्जियम की रॉयल ऑब्जर्वेट्री के विशेषज्ञों के मुताबिक, विश्व के कई हिस्सों में जारी लॉकडाउन के कारण धरती की ऊपरी सतह पर कंपन कम हुए हैं। भूकंप वैज्ञानिक यानि सीस्मोलॉजिस्ट को धरती के सीस्मिक नॉयज और कंपन में कमी देखने को मिली है। दरअसल ‘सीस्मिक नॉयज’ वह शोर है जो धरती की बाहरी सतह यानि क्रस्ट पर होने वाले कंपन्न के कारण धरती के भीतर एक शोर के रूप में सुनाई देता है।
इस शोर को सटीक तौर पर मापने के लिए भूविज्ञानी और रिसर्चर एक डिटेक्टर की रीडिंग का सहारा लेते हैं जो कि धरती की सतह से 100 मीटर की गहराई में गाड़ा जाता है। इस समय पृथ्वी की सतह पर कंपन पैदा करने वाली इंसानी गतिविधियां काफी कम होने के कारण इस साउंड की गणना सतह पर ही हो पा रही है।
असल में भूकंप जैसी किसी प्राकृतिक घटना में धरती के क्रस्ट में जैसी हरकतें होती हैं। वैसी ही हलचलें थोड़े कम स्तर पर धरती की सतह पर वाहनों की आवाजाही, मशीनों के चलने, रेल यातायात, निर्माण कार्य, जमीन में ड्रिलिंग जैसी इंसान की तमाम गतिविधियों के कारण भी होती हैं। चूंकि दुनिया के अधिकांश देशों में लॉकडाउन के कारण ऐसी इंसानी हरकतें कम होने के कारण ही इसका असर धरती के आंतरिक कंपनों पर पड़ता दिख रहा है। वैज्ञानिक इन्हीं कंपनों को दर्ज कर न केवल धरती के बारे में ज्यादा जानकारी जुटाते हैं बल्कि आने वाले भूकंपों और ज्वालामुखी विस्फोट का आंकलन करने की कोशिश करते हैं।
यह भी पढ़ें : किस देश में लॉकडाउन का पालन न करने पर पुलिस ने मारी गोली
साभार : सोशल मीडिया
भारत में भी 24 मार्च से लॉकडाउन है। देश के कई हिस्सों में इंसानी गतिविधियों की रफ्तार पर विराम लग गया है। इस अवसर का लाभ उठाकर प्रकृति अपनी मरम्मत करती नजर आ रही है। बीते दिनों पंजाब के जालंधर में रहने वालों ने ऐसी तस्वीरें साझा की हैं जिनमें वहां से लोगों को हिमाचल प्रदेश में स्थित धौलाधार पर्वत श्रृंखला की चोटियां दिख रहीं हैं। कुछ लोगों के लिए यह अकल्पनीय है, क्योंकि उन लोगों ने ये दृश्य कभी देखा ही नहीं है।
देश में प्रदूषण कम होने की वजह से लोग नीला आसमान देख पा रहे हैं। लोग गंगा-यमुना नदी को साफ देखकर हैरान हैं। जिन नदियों की सफाई करने में सरकार ने हजारों करोड़ स्वाहा कर दिया और इसके बाद भी सफलता नहीं मिला, वह काम 15 दिन के लॉकडाउन ने कर दिया। सड़कों पर अद्भुत नजारा दिख रहा है। पशु-पक्षी जंगलों से निकल कर सड़कों पर विचरण करते दिख रहे हैं। सुबह-सुबह गाडिय़ों की चीं-पों की जगह पक्षियों की कलरव सुनाई दे रहा है।
यह भी पढ़ें : जमात ने नंगे होकर व्यवस्था की बड़ी ख़ामियों पर पर्दा डाल दिया !
इस लॉकडाउन से पूरी दुनिया में बहुत कुछ बदल गया है। इंसान बेवश नजर आ रहा है है और प्रकृति इठला रही है। वह हम लोगों पर नहीं नहीं हंस रही है, बल्कि बहुत दिनों बाद वह अपने असल रूप में आई है इसलिए इठला रही है। इसलिए दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से अनेक लोगों ने अपने देश की सरकारों को सलाह दी है कि कोरोना संकट बीत जाने के बाद भी प्रकृति को हर साल कुछ दिनों का ऐसा ही ब्रेक देने के आइडिया पर विचार करें। जाहिर है सरकारों को इस दिशा में सोचने की जरूरत है। यदि हम नहीं सोचेंगे तो जाहिर है कोई और सोचेगा और जब कोई और सोचेगा तो स्थिति कैसी होगी वर्तमान हालात से अंदाजा लगाया जा सकता है।
(अभिनव, पर्यावरण विशेषज्ञ हैं। वह लंबे समय से पर्यावरण संरक्षण के लिए करने वाली संस्था के साथ जुड़े हुए हैं। )
यह भी पढ़ें : बच्चे बन सकते हैं कोरोना के आसान शिकार