Monday - 28 October 2024 - 7:18 PM

तो क्या झारखंड चुनाव परिणाम राजग की सेहत पर डालेगा असर

न्यूज डेस्क

बीजेपी के लिए झारखंड विधानसभा चुनाव में एनडीए को जोड़कर रखना बड़ी चुनौती बनती जा रही है। जिस तरह से महाराष्टï्र में एनडीए से शिवसेना की विदाई हुई है और झारखंड में आजसू की, उससे बीजेपी की चिंता बढऩा स्वाभाविक है। जाहिर है अगर पार्टी झारखंड में अपनी सत्ता बरकरार नहीं रख पाई तो एनडीए के कुनबे में खटपट बढ़ सकती है। सहयोगी दल बीजेपी पर दबाव बनाने का मौका नहीं गवाएंगे।

झारखंड में एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) को बचाए रखने के लिए बीजेपी के इस्तेमाल किए गए सारे फार्मूले ध्वस्त हो गए। न भाजपा झुकी और न आजसू रुकी। परिणाम सामने है। गठबंधन टूट चुका है, लेकिन दोनों ही दल इसके फूटने का ठीकरा अपने सिर लेने को राजी नहीं हैं।

गौरतलब है कि 15 नवंबर को ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) ने घाटशिला से कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप बलमुचू समेत छह प्रत्याशी की सूची जारी कर भाजपा को एक और झटका दिया है। इधर, आजसू से चोट खाई भाजपा ने प्लान ‘बी’ पर अमल शुरू कर दिया है। उम्मीदवारों की अगली सूची पर मंथन जारी है। भाजपा अपनी अगली सूची शनिवार को जारी कर सकती है।

बीजेपी से बढ़ती जा रही है सहयोगी दलों की दूरी

मालूम हो कि लोकसभा चुनाव के बाद राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से शिवसेना के बाद आजसू की विदाई हुई है, जबकि अकाली दल और लोक जनशक्ति पार्टी से भाजपा की खटास बढ़ी है। वहीं बिहार में जदयू और भाजपा के रिश्ते लोकसभा चुनाव के बाद से कभी नीम तो कभी शहद जैसे हो गए हैं।

लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी को महाराष्ट्र और हरियाणा में उम्मीदों के अनुरूप सफलता हाथ नहीं लगी। वह भी तब जब बीजेपी मोदी सरकार के सबसे बड़े राष्ट्रवादी एजेंडे में शामिल अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद चुनाव मैदान में उतरी थी।

हरियाणा में बहुमत से चूकी बीजेपी को जहां जेजेपी से गठबंधन करना पड़ा, वहीं महाराष्ट्र में पहले के मुकाबले कम सीटें जीतने के कारण पार्टी ने न सिर्फ अपने सबसे पुराने साथी शिवसेना को खोया, बल्कि राज्य की सत्ता भी शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस गठबंधन को जाती दिख रही है।

झारखंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए गिनाने के लिए बहुत कुछ है। बीजेपी मैदान में ऐसे समय उतरी है जब उसके पास गिनाने के लिए अनुच्छेद 370 के बाद दूसरा सबसे बड़ा राष्ट्रवादी एजेंडा राम मंदिर निर्माण हैं। मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो गया है। ऐसे में यदि बीजेपी झारखंड में सत्ता बरकरार रखने से चूकती है तो दूसरे सहयोगी दल भी भाजपा पर दबाव बनाने से नहीं चूकेंगे। जाहिर है इसका प्रतिकूल असर भाजपा की अजेय छवि पर पड़ेगी।

 

झारखंड चुनाव का असर बिहार विधानसभा चुनाव पर भी पड़ेगा। बिहार में बीजेपी की सहयोगी जदयू उस पर दबाव बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी। जबकि इसके तत्काल बाद होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव में पंजाब में पार्टी की सहयोगी अकाली दल तेवर दिखाने से नहीं चूकेगी।

गौरतलब है कि हरियाणा में अपने इकलौते विधायक को भाजपा में शामिल करने से अकाली दल बेहद नाराज है। जबकि मनमाफिक सीटें नहीं मिलने से बिहार में पार्टी की सहयोगी झारखंड में अकेले चुनाव मैदान में उतर गई है।

गौरतलब है कि वर्ष 2014 में राज्यों के कुछ हिस्सों में प्रभाव रखने वाले छोटे-छोटे दलों को साध कर भाजपा ने बड़ी सफलता हासिल की थी। हालांकि अब यही दल या तो राजग से बाहर आ गए हैं या फिर रूठे हुए हैं। मसलन यूपी में पार्टी का एसबीएसपी से साथ छूटा तो झारखंड में आजसू का। बिहार के कुछ इलाकों में सीमित प्रभाव रखने वाली लोजपा रूठी हुई है तो लोकसभा चुनाव से पहले अपना दल का स्थानीय नेतृत्व से तीखा विवाद हुआ था।

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