Friday - 25 October 2024 - 4:19 PM

तो क्या मोदी सरकार विकास के लिए पर्यावरण की बलि दे रही है?

जुबिली न्यूज डेस्क

केंद्र सरकार के पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए), 2020 के ड्राफ्ट की चारो ओर से आलोचना हो रही है। छात्रों से लेकर कार्यकर्ता और राजनीतिक पार्टियां इसे वापस लेने की मांग कर रही हैं।

इस मसौदे का अंग्रेजी नाम ‘एनवायरंमेंट इंपैक्ट असेसमेंट’ है। केंद्र सरकार ने इस मसौदे को आम लोगों की प्रतिक्रिया के लिए पेश किया था। पर्यावरण मंत्रालय को प्रतिक्रिया भेजने की अंतिम तारीख 11 अगस्त थी।

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फिलहाल इस मसौदे का बड़े स्तर पर विरोध और आलोचना हो रही है। 10 अगस्त को कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने एक ट्वीट किया कर ईआईए 2020 मसौदे को ‘लूट ऑफ द नेशन’ (देश की लूट) कहा था। अब इस मसौदे की आलोचना कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने किया है।

सोनिया गांधी ने भी इस मसले पर एक लेख लिखा है, जिसमें उन्होंने मोदी सरकार की इस नीति की कड़ी आलोचना की है।
उन्होंने कहा कि नई पयार्वरण नीति से पूंजीपतियों को विकास के नाम पर पयार्वरण को हानि पहुंचाने का वैधानिक मौका मिल जाएगा और पयार्वरण संरक्षण की बजाय देश में प्रदूषण फैलाने की नई परम्परा की शुरुआत होगी।

सोनिया गांधी का यह लेख अंग्रेजी के एक समाचार पत्र में प्रकाशित हुआ है। अपने लेख में उन्होंने सरकार को घेरते हुए कहा कि उसे मालूम होना चाहिए कि हमारा देश जैव विविधता का भंडार है और इसकी सुरक्षा हम सबका दायित्व है। कोरोना महामारी के दौरान सरकार को पयार्वरण की रक्षा के लिए काम करना चाहिए था मगर इस दिशा में अच्छे कदम उठाने की बजाय सरकार पयार्वरण को नुकसान पहुंचाने वाली नीति का प्रस्ताव लेकर आई है।

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सोनिया गांधी ने अपने लेख में लिखा कि प्रकृति की रक्षा सबका फर्ज है । देश और दुनिया कोरोना महामारी का जो संकट झेल रही है वह हमारे लिए एक नई सीख है और इससे सबक लेते हुए हमें पयार्वरण की रक्षा के लिए काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि विकास की दौड़ अच्छी है लेकिन इसके लिए पयार्वरण की बलि नहीं दी जा सकती। विकास के लिए प्रकृति दोहन की भी एक सीमा तय की जानी चाहिए। इसमें सरकार की गलत नीतियों के कारण पयार्वरण रक्षा में हम दुनिया से काफी पीछे छूट गए हैं।

उन्होंने कहा कि सरकार को पयार्वरण के बिगड़ते संतुलन की अनदेखी नहीं करनी चाहिए और इसकी सुरक्षा के उपाय करने चाहिए। इसके लिए सबसे पहले यह घातक प्रस्ताव वापस लिया जाना चाहिए। गौरतलब है कि सरकार जिस ईआईए को लागू करने जा रही है, उसके तहत विकास कार्यों के लिए पयार्वरण मंजूरी लेने की जरूरत नहीं है।

क्यों हो रहा है विरोध?

इस मसौदे में आखिर ऐसा क्या है जिसे लेकर इतना विरोध शुरू हो गया है? दरअसल भारत में सभी विकास परियोजनाओं को ‘ग्रीन क्लियरेंस’ की जरूरत होती है। पर्यावरण पर ऐसी किसी भी परियोजना के पडऩे वाले असर को देखते हुए उसे मंज़ूर या नामंज़ूर किया जाता है।

गुजरे वक्त में पर्यावरणविदों की आपत्तियों के बाद कई परियोजनाओं को मंज़ूरी नहीं दी गई थी। इस मसौदे में चार-पांच ऐसे प्रावधान हैं जिन्हें लेकर पर्यावरणविद और कार्यकर्ता चिंता जता रहे हैं।

दरअसल एक बड़ी आपत्ति इस बात को लेकर है कि यह ‘पोस्ट-फैक्टो क्लियरेंस’ को मंजूरी देता है। इसका मतलब यह है कि बिना पर्यावरण मंजूरी के अगर कोई परियोजना शुरू हो जाती है तो उसे बाद में यह मंज़ूरी दी जा सकती है और वो जारी रह सकती है।

यह भी कहा जा रहा है कि इसमें पर्यावरण पर असर के आकलन के नियमों को उदार किया गया है। इससे नियामन प्रक्रिया लचीली बनेगी और कुल मिलाकर यह पर्यावरण के लिए खतरनाक होगा।

जानकारों का कहना है कि जहां आपने पर्यावरण मंज़ूरी को हटाया है, वहां पर आप पर्यावरण को होने वाले नुकसान की भरपाई कैसे करेंगे? इसे लेकर दिशा-निर्देश स्पष्ट होने चाहिए थे।

आलोचकों का यह भी कहना है कि इसमें जलवायु परिवर्तन और इससे जुड़े मसलों पर कोई बातचीत ही नहीं की गई है

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