Saturday - 2 November 2024 - 3:00 PM

…तो क्या शिवपाल की तरह ठगे गए हैं पवार

सैय्यद मोहम्मद अब्बास

लखनऊ। महाराष्ट्र  में कल तक लग रहा था कि उद्धव ठाकरे की ताजपोशी होगी लेकिन रात के अंधेरे में बीजेपी ने पासा पलट दिया और शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की सरकार बनते-बनते रह गई। ऐसे केवल इसलिए हुआ क्योंकि एनसीपी के कुछ लोगों ने मिलकर शिवसेना और कांग्रेस को गच्चा दे दिया। अगर यूपी की राजनीति पर गौर करे तो कुछ इसी तरह का खेल शिवपाल और अखिलेश यादव के बीच देखने को मिला था। दोनों ने सत्ता के लिए अपनी राहे बदल ली थी और जिस तरह से शरद पवार का परिवार टूट गया था और इसी तरह से मुलायम का कुनबा भी टूट गया था। पार्टी पर कब्जा करने के लिए शिवपाल यादव ने चुनाव आयुक्त का दरवाजा खटखटाया था लेकिन अंत में साईकिल की सवारी अखिलेश यादव को नसीब हुई थी।

अजित पवार ने कुछ नया नहीं किया है

इसके साथ ही एनसीपी अजित पवार ने शनिवार को बड़ा उलटफेर करते हुए अपनी पार्टी को तोड़ दिया। अजित पवार ने बीजेपी को समर्थन दे दिया और उप मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हो गए है। इतिहास पर थोड़ा से गौर किया जाये तो शरद पवार के भतीजे ने कोई नया काम नहीं किया है। कुछ इसी तरह 1991 में देखने को मिला था। जब पवार पीएम की कुर्सी पर काबिज होते-होते रह गए थे और सोनिया गांधी के चलते पीवी नरसिम्हा राव को पीएम बनाया गया था। इससे पूर्व लगभग 41 साल पहले यानी 1978 में शरद पवार ने एकाएक पाला बदलते हुए मुख्यमंत्री पद पर काबिज हो गए थे।

विरासत को लेकर सपा में थी रार

उत्तर प्रदेश में सपा का इन दिनों बुरा हाल है और पार्टी लगातार बदलावा के दौर से गुजर रही है। सपा के ये हाल क्यों हुआ सबको पता है। थोड़ा से पीछे जाना पड़ेगा।
जिस अखिलेश को सीएम बनाने में नेताजी ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। मुलायम अपने बेटे के सर पर ताज देखना चाहते थे और इसी वजह से अपने भाई शिवपाल यादव से दूरी बना ली थी। सत्ता में जब सपा आई थी तब लग रहा था कि शिवपाल यादव अखिलेश को सीएम बनते देखना नहीं चाहते हैं और मुलायम की विरासत को सम्भालने का दावा दोनों करते थे लेकिन मुलायम ने हमेशा बेटे अखिलेश को तर्जी देना पसंद करते थे।

शिवपाल और अखिलेश की रार अब भी कायम

बाद में हुआ भी यही अखिलेश को सीएम बनाने में शिवपाल यादव ने हामी भर दी। तब माना जा रहा था कि दोनों में अच्छा रिश्ता है लेकिन साल 2016 में दोनों के रिश्तों में एकाएक खटास आ गई। कभी अखिलेश शिवपाल को पार्टी से अलग-थलग करते तो फिर मजबूरी में  फिर पिता के कहने पर चाचा को वापस गले लगा लेते थे लेकिन यूपी विधानसभा चुनाव से पहले 2016 में यादव परिवार में तनातनी चरम पर पहुंच गई। इसी दौरान चाचा-भतीजे में रार इतनी बढ़ गई कि दोनों एक दूसरे का चेहरा तक नहीं देखना पसंद करते थे।

इतना ही नहीं सपा किसकी पार्टी है इसको लेकर खूब झगड़ा हुआ। दोनों की लड़ाई चुनाव आयोग तक पहुंच गई लेकिन किसी तरह से अखिलेश ने समाजवादी पार्टी पर एकाधिकार कर लिया। उस दौरान चुनाव हुआ तो अखिलेश हार गए और शिवपाल यादव तंज करना शुरू कर दिया। राजनीतिक गलियारों में यह बात भी साफ हो गई परिवार में जो महाभारत चल रही थी उसी वजह से हार का मुंह देखना पड़ा सपा को। इसके बाद शिवपाल यादव ने अखिलेश से अलग होकर नई पार्टी प्रसपा खड़ी कर डाली और लोकसभा चुनाव में तगड़ा नुकसान पहुंचा डाला।

सुलह होते-होते रह गई

हालांकि लगातार मिल रही हार के बाद मुलायम चाहते थे कि शिवपाल दोबारा सपा में शामिल हो लेकिन अखिलेश को ये मंजूर नहीं है। ऐसे में अब साफ हो गया है कि चाचा और भतीजे में अब कोई सुलह की उम्मीद नजर नहीं आ रही है। कुल मिलाकर अखिलेश-शिवपाल में तीन साल की चली आ रही रार का अब तक चल रही है।

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com