प्रीति सिंह
मैन वर्सेस वाइल्ड में बेयर ग्रिल्स से रजनीकांत अपने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बारे में सवाल पूछते हैं कि उन्हें उनके बारे क्या अच्छा लगता है। सवाल के जवाब में ग्रिल्स कहते हैं कि मुझे उनका सेंस ऑफ ह्यूमर बहुत पंसद है, साथ में वह यह भी कहते हैं कि उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय जंगलों में बिताया है।
प्रधानमंत्री की यह खासियत है कि जहां वह जाते हैं तो वहां का बोलचाल, भेषभूषा सबकुछ धारण कर ही लोगों से संवाद करते हैं। उनकी यही खूबी है जिससे लोग उनसे सहज ही जुड़ जाते हैं। इसके अलावा उनकी एक खूबी यह भी है कि वह उस जगह से अपना कोई न कोई पुराना नाता भी जोड़ लेते हैं।
फिलहाल बेयर ग्रिल्स और रजनीकांत के संवाद का जिक्र क्यों किया यह समझ में आ गया होगा। पिछले कुछ दिनों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लुक चर्चा में हैं। आजकल वे एक नए लुक में नजर आ रहे हैं। बढ़ी हुई दाढ़ी में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की तरह!
उनकी बढ़ी हुई सफेद झक दाढ़ी पर बातें हो रही हैं। कुछ दिनों पहले उनकी ही पार्टी के एक नेता ने इसका खुलासा भी किया था कि मोदी ने अपनी दाढ़ी क्यों बढ़ाई है।
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ज्यादातर लोगों का मानना है कि पश्चिम बंगाल चुनाव के मद्देनजर मोदी ने यह रूप धारण किया है। ऐसे में सवाल उठता है, क्या बंगाल में मोदी को मोदी बनकर जाने में डर लग रहा है। आखिर ऐसा क्या है कि अपने दम पर दो लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत हासिल करने वाले मोदी को बंगाल में जाने के लिए रूप बदलना पड़ा।
सवाल यह भी है कि क्या यह ममता बनर्जी की मनोवैज्ञानिक जीत है कि मोदी अपने ब्रांड के बूते बंगाल के चुनावी समर में जाने से हिचक रहे हैं?
अब इसकी वजह की भी पड़ताल कर लेते हैं। बंगाली समाज अपनी संस्कृति और नवजागरण कालीन नायकों के प्रति बहुत भावुक है। विधानसभा चुनाव में भले ही थोड़ा वक्त है लेकिन यह तो तय है कि चुनाव में बंगाली अस्मिता बड़ा मुद्दा बनेगा। ममता बनर्जी भी इस मुद्दे को हवा देने में लगी है। मोदी को दीदी की इस चुनौती का बखूबी एहसास है। इसलिए वह इन दिनों टैगोर के बाने में दिख रहे हैं।
ममता बनर्जी पहले से ही अपने बयानों में इसका संकेत देती रही हैं। वे कई बार कह चुकी हैं कि बंगाल में बंगाली ही राज करेगा, गुजराती नहीं। ममता कई बार अपने भाषणों में बीजेपी को ‘बाहरी’ कह चुकी है।
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ममता अक्सर बंगाली अस्मिता और पहचान का मुद्दा उठाती रही हैं। सत्ता में आने के बाद से ही ममता बांग्ला भाषा और संस्कृति की बात कहती रही हैं। भाषा, संस्कृति और पहचान के प्रति उनका लगाव टीएमसी सरकार के मां, माटी और मानुष नारे में भी झलकता है। पहले वे पार्टी की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए जिस बांग्ला राष्ट्रवाद का इस्तेमाल करती थीं, अब उसे ही बीजेपी के खिलाफ प्रमुख हथियार बना रही हैं।
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दरअसल ममता बनर्जी ने बांग्ला राष्ट्रवाद का कार्ड खेलना राज्य में बीजेपी के उदय के साथ ही शुरू कर दिया था। खासकर साल 2018 के पंचायत चुनावों और उसके बाद बीते लोकसभा चुनावों में भगवा पार्टी को मिली कामयाबी के बाद उन्होंने इसे तुरुप का पत्ता बना लिया है।
भाजपा को भी इसका बखूबी एहसास है कि बंगाल के लोगों में अपनी क्षेत्रीय अस्मिता और नायकों के प्रति गहरा भावनात्मक लगाव है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री से लेकर अमित शाह और जे.पी. नड्डा समेत तमाम बड़े बीजेपी नेता राज्य के दौरे पर अपने भाषणों में चैतन्य प्रभु, रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद का जिक्र करना नहीं भूलते।
पिछले साल केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के बंगाल दौरे पर बिरसा मुंडा की मूर्ति पर माल्यार्पण भी काफी चर्चा में रहा था। भाजपा नेता भी लगातार बंगाल के नायकों को अपना बताने में लगे हुए हैं। उनके प्रति अपनी खूब श्रद्धा भी दिखा रहे हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी का यह रूप उन्हें चुनाव में कितना फायदा पहुंचायेगा यह भी देखना दिलचस्प होगा।
अपने इस रूप के सहारे मोदी बंगालियों से कितना जुड़ पाते है, यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा लेकिन जिस तरह से ममता बनर्जी भाजपा को चुनौती दे रही हैं, ऐसे में मोदी के सामने बड़ा भी संकट है। यदि वे अपने नए गेट अप में बंगाल जाते हैं तो ममता समर्थक उन्हे बहुरूपिया कहने में देर नहीं करेंगे और यदि वे वास्तविक चेहरे के साथ बंगाल पहुंचे तो बंगाली बनाम बाहरी के अस्त्र से बचना मुश्किल होगा।