जुबिली न्यूज डेस्क
उत्तराखंड में हुए उपचुनाव में जिस तरह कांग्रेस को हार मिली है उससे एक बार साबित हो गया कि पार्र्टी के भीतर सब कुछ सही नहीं है।
शुक्रवार को चंपावत उप चुनाव का परिणाम सामने आया जिसमें मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को 58 हजार से अधिक वोट मिला। वहीं कांग्रेस को चार हजार से भी कम। जबकि इसी सीट पर इसी साल फरवरी माह में हुए विधानसभा चुनाव में उसे 27 हजार से अधिक मत मिले थे।
उस समय जीत हार का अंतर पांच हजार के आसपास था, लेकिन इस बार तो कांग्रेस की जमानत ही जब्त हो गई। अब पार्टी के लिए यह मंथन का विषय है कि आखिर तीन महीने में ऐसा क्या हुआ कि उसका वोट प्रतिशत एकदम से फर्श पर आ गया।
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बीते विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद कांग्रेस के पास जीत का स्वाद चखने के लिए चंपावत उपचुनाव एक मौका था, लेकिन उसने यह भी मौका गवां दिया।
पूूरे चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी एक बार फिर एकजुट नजर नहीं आई। पार्टी सूत्रों के अनुसार, उपचुनाव में जमकर भितरघात हुआ है।
वहीं कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ने ऐसी संभावनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए आंतरिक जांच कराए जाने की बात कही है।
बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की झोली में कुमाऊं से 11 सीटें आईं थीं। इस चुनाव में कांग्रेस नेताओं की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं, खासकर कुमाऊं से जीते विधायक निशाने पर हैं।
इनमें से धारचूला विधायक हरीश धामी पहले ही सीएम पुष्कर सिंह धामी के लिए सीट छोडऩे का ऐलान कर चुके थे। चुनाव प्रबंधन के लिए बनाई गई कमेटी में विधायक मनोज तिवारी, भुवन कापड़ी और खुशहाल सिंह अधिकारी को रखा गया था। इस कमेटी ने कैसा प्रबंधन किया, इसको लेकर भी चर्चाएं हैं।
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इधर, विधानसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशी रहे हिमेश खर्खवाल को मुख्य चुनाव संयोजक बनाया गया था। विधानसभा चुनाव में 27 हजार से अधिक मत लाने वाले खर्खवाल भी इस चुनाव में कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाए। दरअसल इस चुनाव में खर्खवाल की भूमिका नगण्य रही।
इसके अलावा अल्मोड़ा संसदीय सीट से 5 विधायक मनोज तिवारी, मयूख महर, मदन बिष्ट, खुशहाल सिंह अधिकारी और हरीश धामी की भूमिका को लेकर भी सवाल उठ रहा है।
वैसे प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा, पूर्व सीएम हरीश रावत, नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य और सांसद प्रदीप टम्टा मोर्चे पर डटे नजर आए लेकिन पार्टी प्रत्याशी को अपने कद के अनुसार वोट नहीं दिलवा पाए।