न्यूज डेस्क
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे सरकार बने डेढ़ माह होने वाले है और अभी से इनके मतभेद सामने आने लगे हैं। शिवसेना जब सरकार बनाने के लिए एनसीपी और कांग्रेस को एकजुट कर रही थी तभी भविष्यवाणी की गई थी कि सरकार भले ही बन जाए लेकिन इनके वैचारिक मतभेद नहीं खत्म होंगे। फिलहाल अब कई मुद्दों पर गठबंधन सरकार में मतभेद दिख रहा है।
पहले नागरिकता संसोधन कानून के मुद्दे पर शिवसेना और कांग्रेस के बीच नाराजगी बढ़ी, फिर सावरकर के मुद्दे पर। सबसे पहले राहुल गांधी के सावरकर वाले बयान पर राजनीति गरमाई। शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने राहुल गांधी को सावरकर के बारे में पढऩे की सलाह दी साथ ही निशाना भी साधा था।
हालांकि वहां राउत ने साफ कर दिया था कि इसका सरकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा। रही सही कसर कांग्रेस सेवादल की पुस्तक ने पूरी कर दी। इसमें सावरकर के बारे में टिप्पणी की गई थी, जिसके बाद महाराष्ट्र की राजनीति और गर्मा गई। कांग्रेस के खिलाफ शिवसेना के साथ एनसीपी भी आ गई। इन दोनों दलों ने कांग्रेस को खरीखोटी सुनाई।
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फिलहाल इन मतभेदों के बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता यशवंतराव गदख ने अपने बयान में कहा है कि यदि ऐसा ही चलता रहा, तो उद्धव ठाकरे को जल्द ही इस्तीफा देना पड़ सकता है।
12 जनवरी को महाराष्ट्र के नेवासा में एक कार्यक्रम के दौरान कांग्रेस नेता यशवंत राव गदख ने कहा कि यदि तुम्हारे मंत्री (कांग्रेस व एनसीपी) इसी तरह सरकारी बंगलों और पोर्टफोलियो के बंटवारे को लेकर सरकार के कामकाज में बाधा डालते रहेंगे तो मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को मजबूरन अपना इस्तीफा सौपना पड़ेगा।
कांग्रेस नेता का यह बयान ऐसे समय में आया है जब महाराष्ट्र में मंत्री पद बंटवारे को लेकर नाराजगी देखने को मिल रही है। पहले ऐसी खबरें आई थी कि शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत नारजा हैं क्योंकि उनके विधायक भाई को मंत्री पद नहीं मिला। उसके बाद शिवसेना कोटे से सरकार में राज्यमंत्री बनाए गए अब्दुल सत्तार ने पद मिलने के कुछ दिन बाद ही इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने इसलिए इस्तीफा दिया क्योंकि उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाने का वादा किया गया था। वहीं कई अन्य नेता भी अपने पोर्टफोलियो से नाखुश बताए जा रहे हैं।
वहीं कांग्रेस कोटे से भूकंप पुनर्वसन मंत्री बनाए गए विजय वेदेट्टीवार भी नाराज नजर आ रहे हैं। हालात ये हैं कि पोर्टफोलियो बंटवारे के बावजूद अभी तक उन्होंने अपना कार्यभार नहीं संभाला है। ऐसी खबरें भी हैं कि महाराष्ट्र सरकार असंतुष्ट नेताओं को खुश करने के लिए 7 मंत्रालयों के गठन पर विचार कर रही है। गौरतलब है कि सरकार गठन के 32 दिन बाद महाराष्ट्र में पहला कैबिनेट विस्तार हुआ था, जिसमें कुल 36 नए मंत्रियों ने शपथ ली थी।
इसके अलावा राष्ट्रीय स्तर पर कई मुद्दों पर भी शिवसेना और कांग्रेस के बीच असहमति नजर आयी है। खासकर संशोधित नागरिकता कानून के मसले पर लोकसभा में शिवसेना और कांग्रेस का स्टैंड अलग-अलग रहा था। शिवसेना ने जहां बिल का समर्थन किया था, वहीं कांग्रेस इसके विरोध में थी।
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