उत्कर्ष सिन्हा
4 जनवरी की उस दोपहरी में थोड़ी ठण्ड भी थी और हलकी सी धूप भी.. स्टेज सजा हुआ था.. ….नीरज जी स्मृतियों के पुराने मकान के कमरों के ताले खोल रहे थे….
“ देव (देव आनंद) बहुत परेशान था, वो मिजाज से बहुत रोमांटिक था इसलिए अपनी फिल्मो में उसे रोमांस की गहराईयाँ चाहती थी… गाना लिखने की सिटिंग चल रही थी ..बर्मन दा (एस डी) हारमोनियम पर धुन बजा रहे थे… लेकिन मुखड़ा नहीं मिल रहा था…
इस बीच वहां वहीदा रहमान आ गयी….. उस वक़्त उसका चुपचाप अफेयर कमलजीत के साथ शुरू हो चुका था…..देव और वहीदा अच्छे दोस्त थे…. मैं परेशांन था………बर्मन साहब झुंझला रहे थे…
थोड़ी देर बाद वहीदा जाने लगी… देव ने उसे रोका ..मगर वहीदा मचल कर सोफे से उठ खड़ी हुई… देव ने उसे हाँथ पकड़ कर रोकना चाहा…. वहीदा बोली …आहिस्ता देव… मेरी चूड़ी टूट जायेगी ….देव ने कहा तो ???…. वहीदा बोली … ये चूड़ी नहीं है, मेरा दिल है ….. (वो चूड़ियाँ उसे कमलजीत ने तोहफे में दी थी) ……
मेरे मुंह से अचानक बोल निकल पड़े… चूड़ी नहीं ये मेरा दिल है ..देखो देखो टूटे ना ……. बर्मन दा चौंक उठे… एक सुपरहिट गाना अपनी शक्ल लेने लगा…
यूपी प्रेस क्लब , लखनऊ में मौका था नीरज जी की 82 वी सालगिरह का…. कवि मित्र सर्वेश अस्थाना ने अद्भुत प्रयोग किया था… तय हुआ कि नीरज जी के सुपरहिट गाने सुने जायेंगे और ख़ास बात ये होगी की हर गाने के पहले नीरज ये बताएँगे की ये गीत बना कैसे और किन परिस्थितियों में ? यानी गीतों के पीछे के किस्से….
दद्दा के देहावसान की खबर ने कविता की घड़ी को कुछ पल के लिए रोक दिया है. रुके समय में कुछ पंक्तियाँ खुद ब खुद रीवाईंड होती जा रही हैं….स्कूल में पढ़ी हुयी कविता, जवानी में गाते हुए गाने और जिंदगी की फिलासफी खोजते हुए गीत .. सब मिल कर मष्तिष्क में एक बवंडर सा उठा रहे हैं.. और ये बवंडर ले जा रहा है फ्लैश बैक में , जहाँ नीरज है , हम हैं और कुछ किस्से हैं… कई बार नीरज महज एक नाम हैं , रेफरेंस हैं और कई बार पजामा और बंडी पहन कर सामने बैठे …अतीत की स्मृतियों में खोये हुए नीरज……
हमारे बचपन में नीरज का पहली बार प्रवेश हुआ हिंदी की पाठ्य पुस्तक से होते हुए परीक्षा की कापी में …… “ प्रस्तुत कव्ययांश हमारे पाठ्य पुस्तक बाल भारती के अध्याय 5 में दी गयी कविता …”जलाओ दिए पर …. “ से ली गयी है .. इस कविता के रचयिता गोपाल दास नीरज हैं ……
फिर ये कविता कब अंतर्मन में गहरे पैठ गयी पता ही नहीं चला… अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए… इसे सूत्रवाक्य बनाने की जद्दोजहद अब तक चल रही है…
लखनऊ. राज्य अतिथि गृह , मीरा बाई मार्ग का कमरा रात 11 बजे
उस वक्त लखनऊ से एक नया अखबार निकले की तैयारी हुयी “अवध प्रान्त”..बतौर संपादक मैंने काम शुरू किया.. लांचिंग के लिए मुझे नीरज जी से ज्यादा उपयुक्त कोई नहीं दिखा… सो उन्हें निमंत्रित करने मैं राज्य अतिथि गृह चला गया… सर्वेश भाई के साथ….. आमंत्रण की औपचारिकता के बाद किस्से शुरू हो गए …. हमने छेड़ा ..दादा वो मीना कुमारी के साथ कुछ था आपका न… बताइए …. नीरज जी कुछ शर्माए …हमने और कुरेदा ..दद्दा क्या आप भी चाहते थे मीना कुमारी को ? ……दद्दा बोले…पता नहीं …( शायद कुछ अनकहा सा था) ….. बोले …मेरे परिवार में एक शादी थी … उन दिनों मेरे गाने बहुत चल रहे थे ….
उधर मीना भी बड़ी स्टार थी…. उसे अकेलापन बहुत था..शायरी भी करती थी और कुछ अच्छी गजले भी लिख के मुझे सुनाती थी… मेरे परिवार के कुछ लोगो ने बहुत दबाव बनाया कि शादी में मीना कुमारी को ले के आइये…. मीना हवाई यात्रा से बहुत डरती थी ..मैं भी संकोच कर रहा था..मगर परिवार का दबाव बहुत बढ़ा तो मैंने मीना कुमारी को कहा..वो तैयार हो गयी…
मगर मुम्बई से आगरा बहुत दूर था और ट्रेन में तब एसी डिब्बे नहीं होते थे…. मीना को गर्मी बहुत लगती थी… इतनी लम्बी यात्रा और वो भी पूरा राजस्थान क्रास करते हुए…. मगर मीना आने को तैयार थीं….. ट्रेन में फर्स्ट क्लास का एक कूपा बुक कराया गया …. थोड़ी थोड़ी दूर के हर स्टेशन पर उस कूपे में बर्फ की सिल्लियाँ लाद दी जाती थी जिससे ठण्ड बनी रहे…. इतना किया मीना ने मेरे लिए …….
……कमरे की मद्धिम रोशनी में भी हमने नीरज की बूढी आँखों में जवानी की एक चमक देखी और साथ ही उसमें उतराती हुयी आंसू की कुछ बूंदे भी ……………
महज चंद मुलाकातों में नीरज जी ने इतनी स्मृतियाँ , इतने किस्से दे दिए हैं जिन्हें लिखना खुद में एक बड़ा काम है….नीरज जी का शरीर गया है, उनकी आत्मा मुक्त हुयी है मगर उनके लिखे हुए बोल फिजाओं में तब तक तैरेंगे जब तक किसी एक के पास भी दिल होगा … वो रोमांस… वो प्यार… वो प्रेरणा …… लेखक कभी मरता नहीं है … आप भी अमर हैं दद्दा ………..
आंसू जब सम्मानित होंगे
मुझको याद किया जाएगा
जहां प्रेम का चर्चा होगा मेरा नाम लिया जाएगा।
मान-पत्र मैं नहीं लिख सका राजभवन के सम्मानों का
मैं तो आशिक रहा जनम से सुंदरता के दीवानों का
लेकिन था मालूम नहीं ये केवल इस गलती के कारण
सारी उम्र भटकने वाला, मुझको शाप दिया जाएगा
मुझको याद किया जाएगा।
(नीरज)