अशोक कुमार
किसी देश के विकास के लिए शिक्षा महत्वपूर्ण कारकों में से एक है। इसे समय की जरूरतों और दुनिया के बदलते परिदृश्य के साथ बदलना चाहिए। यह मानवता के सामने आने वाले सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, नैतिक और आध्यात्मिक मुद्दों पर गंभीर रूप से प्रतिबिंबित करने का अवसर प्रदान करता है।
पिछले 30 वर्षों में, भारत में उच्च शिक्षा में तेजी से और प्रभावशाली वृद्धि देखी गई है। तथापि, संस्थानों की संख्या में वृद्धि, प्रसारित की जा रही शिक्षा गुणवत्ता के अनुपात में नहीं है। अनियोजित अति-विस्तार भारतीय उच्च शिक्षा की अक्सर की सबसे बड़ी गिरावट के रूप में आलोचना की जाती है।
कक्षाओं में छात्र/छात्राओं की उपस्थिति निरन्तर घट रही है। केवल कहने मात्र के लिए 75%प्रतिशत उपस्थिति का नियम रह गया है। कक्षाओं मे छात्र छात्राओ की बढ़ रही अनुपस्थिति दर, चिन्तनीय और विचारणीय विषय है ! क्लास उपस्थिति की बात छोड़ अब प्रायोगिक परीक्षाओमें बिना उपस्थिति के ही पास किया जा रहा है । कुछ महाविद्यालय तो बिना परीक्षा में उपस्थिति के पास होने की भी गारंटी दे रहे हैं। प्रशासन बायोमेट्रिक्स केवल शिक्षकों , कर्मचारियों के लिए लागू करना चाहता है लेकिन किसी ने भी यह प्रस्ताव नहीं रखा की छात्रों की भी बायोमेट्रिक्स होनी चाहिए !
अधिकांश विश्वविद्यालय, महाविद्यालय इस समस्या से जूझ रहे हैं।वर्तमान शिक्षा-प्रणाली भी इस समस्या के लिए बहुत हद तक जिम्मेदार है।नीति-नियामकों द्वारा समय-समय पर जो अव्यावहारिक नीति निर्धारित किया जा रहा है,वह इस समस्या को बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं।बिना पढ़ाए,बिना पाठ्यक्रम पूरा किये विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालयों में केवल परीक्षा ही परीक्षा का बोलबाला है।
सारा सिस्टम केवल परीक्षा और परिणाम निकालने में ही लगातार लगा रह रहा है। छात्र/छात्राओं की अनुपस्थिति के महत्वपूर्ण कारणों में से एक यह भी है।परीक्षा की वस्तुनिष्ठता तो पूरे शिक्षा-व्यवस्था में मट्ठे डालने का कार्य कर रही है।नीति-नियामक समय रहते यदि इन समस्याओं के प्रति सचेत नहीं हुए तो समाज साक्षर तो होगा लेकिन शिक्षित नहीं।
शिक्षा लक्षोन्मुख नही है इसीलिए बच्चों का भविष्य अन्धकारमय है यही कारण है कि शिक्षा के प्रति उनकी रूची समाप्त हो रही है मोटिवेशन कम है। आज का छात्र बहका हुआ है स्ट्रेस बढ़ रहा है पाठ्यक्रम भी प्रासंगिक नही कहा जा सकता, बिना नीव की ईमारत तैयार करने जैसा पाठ्यक्रम है। ऐसी स्थिति परिस्थित में उसका संज्ञान पक्ष कुपोषण का शिकार है और भाव पक्ष अति उद्दीप्त है। विश्वविद्यालय में छात्रों के कक्षा में अनुपस्थित रहने और प्राइवेट कोचिंग क्लास जाने के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
विश्वविद्यालय में अनुपस्थिति के कारण:
• अप्रभावी शिक्षण: कई छात्रों का मानना है कि विश्वविद्यालय में शिक्षण अप्रभावी या उबाऊ है। वे यह भी महसूस कर सकते हैं कि उन्हें कक्षा में पर्याप्त व्यक्तिगत ध्यान नहीं मिलता है।
• असंगठित पाठ्यक्रम: कुछ छात्रों को ऐसा लगता है कि विश्वविद्यालय का पाठ्यक्रम अव्यवस्थित या उनके हितों और भविष्य के लक्ष्यों से अप्रासंगिक है।
• बड़ी कक्षाएं: बड़ी कक्षाओं में, छात्रों को व्यक्तिगत ध्यान देना मुश्किल हो सकता है और वे खोए हुए या अलग-थलग महसूस कर सकते हैं।
• असुरक्षित कक्षा वातावरण: यदि कक्षा का वातावरण असुरक्षित या अप्रिय है, तो छात्र भाग लेने से डर सकते हैं।
• समय प्रबंधन की कमी: कुछ छात्रों के पास समय प्रबंधन कौशल की कमी होती है, जिसके परिणामस्वरूप वे कक्षाओं के लिए अध्ययन करने या तैयारी करने के लिए पर्याप्त समय नहीं निकाल पाते हैं।
• बाहरी दायित्व: छात्रों को पारिवारिक या व्यक्तिगत दायित्वों को पूरा करने के लिए कक्षाओं को छोड़ना पड़ सकता है, जैसे कि नौकरी करना या परिवार के सदस्यों की देखभाल करना।
प्राइवेट कोचिंग क्लास में जाने के कारण:
• व्यक्तिगत ध्यान: प्राइवेट कोचिंग क्लास छात्रों को व्यक्तिगत ध्यान और समर्थन प्रदान करते हैं, जो उन्हें विश्वविद्यालय में प्राप्त करने की तुलना में अधिक प्रभावी ढंग से सीखने में मदद कर सकता है।
• केंद्रित पाठ्यक्रम: प्राइवेट कोचिंग क्लास अक्सर प्रवेश परीक्षा या नौकरी के लिए आवश्यक विशिष्ट पाठ्यक्रम पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
• लचीलापन: प्राइवेट कोचिंग क्लास अक्सर लचीले समय और स्थान विकल्प प्रदान करते हैं जो छात्रों के लिए अधिक सुविधाजनक हो सकते हैं।
• अनुभवी शिक्षक: प्राइवेट कोचिंग क्लास में अक्सर अनुभवी शिक्षक होते हैं जो विशेष रूप से प्रवेश परीक्षा या नौकरी की तैयारी के लिए प्रशिक्षित होते हैं।
• प्रतिस्पर्धात्मक माहौल: प्राइवेट कोचिंग क्लास एक प्रतिस्पर्धात्मक माहौल प्रदान कर सकते हैं जो छात्रों को प्रेरित और प्रेरित रहने में मदद कर सकता है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सभी छात्र प्राइवेट कोचिंग क्लास से लाभ नहीं उठाते हैं। कुछ छात्र विश्वविद्यालय के वातावरण में बेहतर प्रदर्शन करते हैं और व्यक्तिगत ध्यान या लचीलेपन की आवश्यकता नहीं होती है।यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि प्राइवेट कोचिंग क्लास महंगे हो सकते हैं और सभी छात्रों के लिए सस्ती नहीं हो सकते हैं।
निष्कर्ष:
हमें एक ऐसी प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है जहां छात्र कक्षाओं में भाग लेने की अनिवार्यता महसूस करेंगे और महसूस करेंगे कि यदि वे कक्षाओं में भाग नहीं लेते हैं तो उनका नुकसान हो रहा है। प्रतिशत की गणना के लिए उपस्थिति का कोई मतलब नहीं है। दुर्भाग्य से कक्षा शिक्षण और मूल्यांकन के बीच शायद ही कोई संबंध है। छात्रों की 75% उपस्थित का नियम या तो लागू किया जाये अन्यथा यह नियम हटा दिया जाए ।
(पूर्व कुलपति, गोएरखपुर विश्वविद्यालय, कानपुर विश्वविद्यालय
विभागाध्यक्ष राजस्थान विश्वविद्यालय)