अशोक कुमार
राजस्थान सरकार ने सूबे में शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए साल 2019 में महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यम स्कूलों की शुरूआत की थी। शुरुआत में इन्हें सभी जिला मुख्यालयों पर पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू किया गया था। बाद में ब्लॉक व पंचायत स्तर पर भी इनका संचालन शुरू कर दिया गया। वर्तमान में प्रदेश में करीब 3300 स्कूल संचालित है।
प्रदेश में सरकार बदलने के साथ शिक्षा के ढांचे में बदलाव शुरू हो गया है। सरकार ने कांग्रेस राज में महात्मा गांधी के नाम से खुली अंग्रेजी माध्यम स्कूलों की समीक्षा शुरू कर दी है। जिसमें मापदंडों व स्थानीय मंशा के खिलाफ खुली अंग्रेजी स्कूलों को फिर से हिंदी माध्यम में तब्दील किया जाएगा। इसके लिए शिक्षा विभाग ने एक फॉर्मेट जारी किया है। जिसके आधार पर हर महात्मा गांधी स्कूल को अंग्रेजी माध्यम में जारी रखने या वापस हिंदी माध्यम में रुपांतरित करने की रिपोर्ट जिला शिक्षा विभाग को कारण सहित देनी होगी।
महात्मा गांधी स्कूलों का अंग्रेजी या हिंदी माध्यम में संचालन का फैसला 38 बिंदुओं से होगा। जिसमें स्कूल की पूर्व व वर्तमान स्थिति, नामांकन, भवन, खेल मैदान, संकाय, शिक्षक, हिंदी माध्यम में प्रवेश के लिए विद्यार्थियों की संभावित संख्या, नामांकित विद्यार्थियों व भामाशाहों की मंशा, एसडीएमसी का प्रस्ताव व जिला शिक्षा अधिकारी की अभिशंषा आदि बिंदू प्रमुख है।
• शिक्षा का उद्देश्य: शिक्षा का उद्देश्य केवल अंग्रेजी भाषा सीखना नहीं होना चाहिए। इसका उद्देश्य छात्रों को महत्वपूर्ण सोच, नागरिकता और सामाजिक जिम्मेदारी जैसे महत्वपूर्ण कौशल विकसित करना भी सिखाना चाहिए।
• अंग्रेजी स्कूलों को हिंदी माध्यम में परिवर्तित करने के पक्ष और विपक्ष में कई तर्क हैं।
• भारत में सरकारी स्कूलों को अंग्रेजी माध्यम से हिन्दी माध्यम में बदलने का निर्णय एक जटिल निर्णय है जिसे सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद सावधानीपूर्वक लिया जाना चाहिए। शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए अंग्रेजी भाषा महत्वपूर्ण हो सकती है, लेकिन यह एकमात्र कारक नहीं हो सकती। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी छात्रों, चाहे उनकी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि या भाषाई क्षमता कुछ भी हो, को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच प्राप्त हो।
• यह भी महत्वपूर्ण है कि शिक्षा प्रणाली छात्रों को न केवल अंग्रेजी भाषा सीखने में मदद करे, बल्कि उन्हें महत्वपूर्ण सोच, रचनात्मकता, समस्या समाधान और सामाजिक-भावनात्मक कौशल विकसित करने में भी सक्षम बनाए।
• यह एक राष्ट्रीय बहस का विषय है और सभी हितधारकों, शिक्षकों, अभिभावकों, छात्रों और नीति निर्माताओं को इस पर विचार-विमर्श करना चाहिए और एक ऐसा समाधान ढूंढना चाहिए जो सभी के लिए फायदेमंद हो।
अंग्रेजी माध्यम के समर्थकों का तर्क है कि:
• बेहतर रोजगार के अवसर: अंग्रेजी में शिक्षा छात्रों को वैश्विक अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धा करने और बेहतर रोजगार के अवसर प्राप्त करने के लिए आवश्यक कौशल प्रदान करेगी।
• उच्च शिक्षा तक पहुंच: अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा छात्रों को उच्च शिक्षा, विशेष रूप से विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और चिकित्सा (STEM) में, तक पहुंचने में आसानी प्रदान करेगी, जो भारत के विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
• सामाजिक गतिशीलता: अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा सभी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के छात्रों के लिए समान अवसर प्रदान करेगी और सामाजिक गतिशीलता को बढ़ावा देगी।
• वैश्विक नागरिक: अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा छात्रों को वैश्विक नागरिक बनने और विभिन्न संस्कृतियों के साथ प्रभावी ढंग से संवाद करने के लिए तैयार करेगी।
हिंदी माध्यम के पक्ष में तर्क:
• भाषा का संरक्षण: हिंदी भारत की राष्ट्रीय भाषाओं में से एक है और इसका संरक्षण करना महत्वपूर्ण है। अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को हिंदी भाषा का ज्ञान कम हो रहा है, जिससे भाषा के विकास और समृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
• समानता और समावेश: हिंदी माध्यम के स्कूलों में फीस कम होती है, जिससे गरीब और मध्यम वर्ग के परिवारों के बच्चों के लिए शिक्षा अधिक सुलभ हो सकती है। यह सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा देगा।
• राष्ट्रीय पहचान: हिंदी भाषा भारत की राष्ट्रीय पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हिंदी माध्यम में शिक्षा प्राप्त करने से बच्चों को अपनी संस्कृति और विरासत से जुड़ने में मदद मिलेगी।
• भाषाई असमानता: अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों को अक्सर अभिजात वर्ग से जुड़ा माना जाता है, जिसके कारण उन छात्रों को नुकसान हो सकता है जिनकी मातृभाषा अंग्रेजी नहीं है या जिनके पास अंग्रेजी शिक्षा के लिए संसाधनों तक पहुंच नहीं है।
• सांस्कृतिक पहचान का नुकसान: कुछ लोग चिंता करते हैं कि अंग्रेजी माध्यम के स्कूल छात्रों को उनकी संस्कृति और मातृभाषा से अलग कर सकते हैं, जिससे सांस्कृतिक पहचान का नुकसान हो सकता है।
• शिक्षा की गुणवत्ता:* अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता हमेशा बेहतर नहीं होती है। कुछ अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में शिक्षक अप्रशिक्षित या कम योग्य हो सकते हैं, और पाठ्यक्रम स्थानीय छात्रों की जरूरतों के अनुरूप नहीं हो सकता है।
• अतिरिक्त खर्च:* अंग्रेजी माध्यम के स्कूल अक्सर सरकारी स्कूलों की तुलना में अधिक महंगे होते हैं, जिससे गरीब परिवारों के बच्चों के लिए शिक्षा तक पहुंच मुश्किल हो सकती है।
अंग्रेजी स्कूलों को हिंदी माध्यम में परिवर्तित करने का निर्णय एक जटिल निर्णय है जिसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। सभी पक्षों के विचारों पर ध्यानपूर्वक विचार करना और एक ऐसा समाधान खोजना महत्वपूर्ण है जो सभी के हितों को ध्यान में रखे। यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि शिक्षा की गुणवत्ता केवल माध्यम से ही निर्धारित नहीं होती है। शिक्षकों की गुणवत्ता, पाठ्यक्रम की सामग्री और स्कूल के बुनियादी ढांचे जैसे अन्य कारक भी महत्वपूर्ण हैं। यह निर्णय लेते समय कि क्या अंग्रेजी स्कूलों को हिंदी माध्यम में बदला जाना चाहिए, इन सभी कारकों पर विचार करना चाहिए।
अतिरिक्त विचार:
• कुछ स्कूल द्विभाषी शिक्षा प्रदान कर सकते हैं, जहाँ छात्रों को हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में शिक्षा दी जाती है।
• सरकारें गरीब परिवारों के बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करने में मदद करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान कर सकती हैं।
• शिक्षकों को हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में प्रवीण होना चाहिए।
सभी हितधारकों के बीच खुली और ईमानदार चर्चा होना महत्वपूर्ण है ताकि एक ऐसा समाधान ढूंढा जा सके जो सभी के लिए सर्वोत्तम हो।
(पूर्व कुलपति कानपुर , गोरखपुर विश्वविद्यालय)