जुबिली न्यूज डेस्क
पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद हुई हिंसा के मामले में सोमवार को ममता सरकार को कलकत्ता हाईकोर्ट में झटका लगा। राज्य ने इस मामले में बड़ी बेंच के फैसले पर पुनर्विचार की मांग में जो याचिका दायर की थी उसे खारिज करते हुए कोर्ट ने सरकार की आलोचना की है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल ने साफ शब्दों में कहा है कि कोर्ट को इस मामले में सरकार पर भरोसा नहीं है। उन्होंने सवाल किया कि आखिर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की जांच पर सरकार को आपत्ति क्यों है?
इससे पहले उच्च न्यायालय ने 18 जून के अपने फैसले में हिंसा के मामलों की जांच आयोग से कराने का निर्देश दिया था और सरकार को इसमें सहयोग करने को कहा था।
इसके लिए अदालत ने आयोग से एक तीन-सदस्यीय समिति बनाने को कहा था जिसमें समिति में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग और राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण के एक-एक शीर्ष अधिकारी शामिल होंगे। जो राज्य के हिंसा प्रभावित इलाकों का दौरा कर 30 जून को उच्च न्यायालय को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी।
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पांच जजों की पीठ ने कहा था कि पहले तो सरकार हिंसा के आरोपों को स्वीकार नहीं कर रही, लेकिन अदालत के पास कई घटनाओं की जानकारी और सुबूत हैं। इस तरह के आरोपों को लेकर राज्य सरकार चुप नहीं रह सकती। र
ममता सरकार ने इसी फैसले के खिलाफ याचिका दायर की थी, लेकिन हाईकोर्ट ने सोमवार को उसे खारिज कर दिया। इस मामले की अगली सुनवाई 30 जून को होगी।
कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पास 541 शिकायतें दर्ज हुई हैं, जबकि राज्य मानवाधिकार आयोग के पास एक भी शिकायत दर्ज नहीं हुई है। चुनाव के बाद भी राज्य में हिंसा जारी रहना चिंताजनक है।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि चुनाव नतीजे के डेढ़ महीने बाद भी हिंसा की खबरें आ रही हैं। पुलिस के खिलाफ ऐसे मामले दर्ज नहीं करने के आरोप लग रहे हैं, जो मामले दर्ज हुए हैं उनकी भी ठीक से जांच नहीं हो रही है, लेकिन सरकार ने इस मामले में चुप्पी साध रखी है।
चुनावी हिंसा के मामले में दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय ने बीते सप्ताह कहा था कि राज्य ने चुनाव के बाद की हिंसा से संबंधित शिकायतों के समाधान के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।
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कोर्ट ने कहा था,”ऐसे मामलों में जहां चुनाव बाद की हिंसा के कारण राज्य के लोगों का जीवन और संपत्ति कथित खतरे में होने के आरोप लगाए गए हैं, प्रदेश को अपनी पसंद के अनुसार आगे बढऩे की अनुमति नहीं दी जा सकती है। शिकायतों पर तत्काल कार्रवाई की जरूरत है।”
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने ममता सरकार को याद दिलाया कि राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति बनाए रखना और लोगों में विश्वास पैदा करना उनका कर्तव्य है। पीठ में न्यायमूर्ति आईपी मुखर्जी, हरीश टंडन, सौमेन सेन और सुब्रत तालुकदार भी शामिल हैं।
इससे पहले बीते हफ्ते राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि राज्य सरकार चुनाव के बाद की हिंसा के कारण लोगों की पीड़ा के प्रति निष्क्रिय और उदासीन बनी हुई है।