सुरेंद्र दुबे
महाराष्ट्र में कोई सरकार नहीं बन पाई और अंतत: कल छह महीने के लिए राष्ट्रपति शासन लग गया। महाराष्ट्र की जनता ने भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना गठबंधन को बहुमत दिया था। भाजपा को 105 और शिवसेना को 56 सीटें मिली थी। 288 सदस्यीय विधानसभा में 145 सीटें सरकार बनाने के लिए चाहिए थी, जो भाजपा और शिवसेना गठबंधन के पास थी।
परंतु शिवसेना अपना मुख्यमंत्री बनवाने की जिद पर अड़ गई और भाजपा उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी देने के लिए तैयार नहीं हुई। लिहाजा भाजपा और शिवसेना दोनों में से किसी का भी मुख्यमंत्री नहीं बन सका। इस घटनाक्रम से शिवसेना अपने को ठगा हुआ महसूस कर रही है। न भाजपा ने अपना वादा निभाया और न ही शरद पवार कांग्रेस का समर्थन दिला सके।
शिवसेना ने दावा किया की चुनाव पूर्व ही भाजपा नेता अमित शाह से तय हो गया था कि भाजपा और शिवसेना दोनों का ढाई-ढाई साल मुख्यमंत्री रहेगा। परंतु भाजपा ने ऐसा कोई भी समझौता होने से इनकार कर दिया। अमित शाह ने इस मामले में अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी इसलिए यह प्रश्न आज भी बना हुआ है कि भाजपा और शिवसेना में कौन झूठ बोल रहा है।
शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने इसी बात को मुद्दा बनाकर भाजपा को झुठा साबित करने की कोशिश की। राजनीति में सच या झूठ बहुत मायने नहीं रखते। आउट कम महत्व रखता है। आउट कम ये रहा कि शिवसेना का भाजपा के साथ राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन टूट गया और कांग्रेस तथा एनसीपी से समर्थन पत्र न मिल पाने के कारण शिवसेना सरकार नहीं बना सकी।
कुछ राजनीतिक विश्लेषक इसे उद्धव ठाकरे की तगड़ी हार भी मान रहे हैं। उनका कहना है कि उद्धव ठाकरे को अगर भाजपा से अलग ही होना था तो पहले उन्हें एनसीपी और कांग्रेस के साथ सरकार बनाने की भूमिका तैयार कर लेनी थी। परंतु शिवसेना मुख्यत: एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार के साथ सरकार के गठन पर बात करती रही और कांग्रेस को उसने कोई भाव नहीं दिया। संभवत: शिवसेना को ये गलतफहमी बनी रही कि जब शरद पवार तैयार हैं तो कांग्रेस तो तैयार होगी ही। परंतु ऐसा नहीं हुआ।
शिवसेना ये बात भूल गई कि भाजपा के पास केंद्र में सरकार है। इनकम टैक्स और ईडी जैसी बाज मार एजेंसियां हैं। असीमित संसाधन हैं और उनके पास राज्यपाल भी हैं। सरकार गठन में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका राज्यपाल की होती है, जो कल साबित भी हो गया।
एनसीपी को बहुमत बताने के लिए रात आठ बजे तक का समय देने के बावजूद राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने दोपहर एक बजे ही प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुशंसा कर दी। केंद्र में सब कुछ तय था। आनन-फानन में केंद्रीय कैबिनेट बैठक प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई, जिसमें राज्यपाल की रिपोर्ट पर मोहर लगा दी गई और प्रधानमंत्री दोपहर दो बजे ब्रिक्स में भाग लेने के लिए ब्राजिल रवाना हो गए। रात आठ बजे राष्ट्रपति ने अंतिम मुहर लगा दी।
अब जब महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन शुरू हो गया है तब कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना सरकार गठन के लिए एक दूसरे को मनाने तथा न्यूनतम कार्यक्रम बनाने के लिए जुटी है। कल से ही भाजपा के कुछ विधायकों ने ये कहना शुरू कर दिया है कि भाजपा की सरकार बनवाने के लिए वे ऑपरेशन लोटस जैसा कुछ करने के काम लग गये हैं।
अगर हम कर्नाटक की घटनाओं पर ध्यान दें तो भाजपा कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने के लिए हर तरह हथकंड़े अपना सकती है। ऐसा न हो कि शिवसेना सरकार बनाने के लिए फॉर्मूला ही बनाती रह जाए और भाजपा एक दिन तोड़-फोड़ के जरिए 145 विधायकों का समर्थन प्राप्त कर सरकार बनाने का दावा पेश कर दे। हमें ये याद रखना चाहिए कि राज्यपाल विपक्ष की किसी गणित को आसानी से नहीं मानेंगे। परंतु भाजपा की किसी भी गणित को अचानक स्वीकार कर लेंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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