कृष्णमोहन झा
मध्यप्रदेश विधान सभा की 28 सीटों के लिए संपन्न उपचुनावों के जो नतीजे आए हैं उनको अप्रत्याशित नहीं कहा जा सकता। यह नतीजे काफी हद तक राजनीतिक पंडितों के अनुमानों और कुछ समाचार चैनलों के एक्जिट पोल के नतीजों के अनुरूप ही रहे हैं।
कांग्रेस पार्टी शायद इससे कुछ अधिक की उम्मीद लगाए बैठी थी परंतु उसने हवा का रुख समझने में भूल कर दी। उससे यहअनुमान लगाने में भूल हो गई कि मतदाताओं के मन में क्या चल रहा है। इसीलिए 28 में से मात्र 9 सीटों पर ही सिमट कर रह गई और अब अगले तीन साल उसे विधान सभा में सशक्त विपक्ष की भूमिका का निर्वाह ही करना होगा।
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जहां तक सत्तारूढ भारतीय जनता पार्टी का सवाल है उसका इन नतीजों से प्रफुल्लित होना स्वाभाविक है। विधान सभा के अंदर अब उसके पास इतना आसान बहुमत हो चुका है कि अगले तीन साल तक वह राज्य में निष्कंटक शासन कर सकती है। कांग्रेस की भांति ही इन उपचुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने भी अधिकतम सफलता के लिए अपनी ताकत झोंक दी थी परंतु चुनाव परिणाम घोषित होने पर कांग्रेस की अधिकतम सफलता 9 और भाजपा की अधिकतम सफलता 19 सीटों तक ही सीमित हो कर रह गई।
भाजपा के चुनाव अभियान मे सत्ता और संगठन दोनों ने ही अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी और सिंधिया का आशीर्वाद प्राप्त उम्मीदवारों के क्षेत्र में भाजपा के जो पुराने निष्ठावान् और समर्पित कार्यकर्ता पहले आधे अधूरे मन से पार्टी के चुनाव प्रचार में भाग ले रहे थे उन्हें चुनाव अभियान में सक्रिय और प्रोत्साहित करने में संघ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में गत मार्च माह में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत तीन बार भोपाल प्रवास पर आ चुके हैं जो शायद संदेश दे रहे थे कि संघ की भी इन उपचुनावों में बराबर रुचि बनी हुई है। राजनीतिक पंडितों के एक वर्ग का यह भी मानना है कि संघ प्रमुख ने इन उपचुनावों में पार्टी के उदासीन कार्यकर्ताओं को पार्टी उम्मीदवारों की विजय सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय योगदान करने हेतु प्रेरित किया।
संघ पदाधिकारियों की समझाइश के बाद पार्टी के अनमने और उदासीन कार्यकर्ता संपूर्ण ह्रदय से पार्टी के प्रचार अभियान में जुट गए। गौरतलब है कि पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ताओं को पहले यह असमंजस सता रहा था कि 2018 के विधानसभा चुनावों में जिन कांग्रेसी प्रत्याशियों कों हराने के लिए उन्होंने एडी चोटी का जोर लगा दिया था अब भाजपा की टिकट पर लडने वाले उन्हीं प्रत्याशियों के लिए वोट मांगने हेतु मतदाताओं के पास जाना उनके लिए कैसे संभव होगा।
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पार्टी कार्यकर्ताओ को यह समझाया आ गया कि इन प्रत्याशियों ने अपने क्षेत्र की जनता की भावनाओं को ध्यान में रखकर ही दल परिवर्तन किया है और उनके लिए जनता का हित सर्वोपरि है तब वे उनकी विजय सुनिश्चित करनें में जी जान से जुट गए। निश्चित रूप से संघ की भी इसमें विशिष्ट भूमिका रही। ऐसा प्रतीत होता है कि संघ प्रमुख अपने भोपाल प्रवास के दौरान संघ पदाधिकारियों से उप चुनाव का फीडबेक भी लेते रहे।
इस उपचुनाव में भाजपा के संगठन महामंत्री सुहास भगत की महत्वपूर्ण भूमिका रही है वही उनके सहयोगी के रुप में विद्या भारती के पूर्व प्रदेश संगठन मंत्री हित आनंद शर्मा ने भी संगठन मंत्री के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य किया भाजपा द्वारा संगठन मंत्री की नियुक्ति चुनाव के पूर्व चुनाव को दृष्टिगत रखकर की गई थी यह माना जाता है कि हितानंद संगठन महामंत्री सुहास भगत और संघ के क्षेत्र प्रचारक दीपक विस्पुते के अत्यंत निकट है।
उपचुनावों में भाजपा उम्मीदवारों की विजय सुनिश्चित करने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पार्टी के नव नियुक्त प्रदेशाध्यक्ष वी.डी शर्मा और प्रदेश में सत्ता परिवर्तन की पटकथा लिखने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दिन रात एक कर दिए थे। सिंधिया समर्थक 19 में से 13 प्रत्याशियों कों उस क्षेत्रों के मतदाताओं ने विजयी बनाकर यह संदेश दिया है कि वे अपने प्रतिनिधि के फैसले को आज भी सही मानते हैं।
इन उपचुनावों के परिणामों ने यह साबित कर दिया कि राज्य की जनता मुख्यमंत्री की कुर्सी पर शिवराज सिंह चौहान की वापसी के पक्ष में थी। पार्टी के अध्यक्ष पद पर सांसद बी.डी शर्मा की नियुक्ति के बाद प्रदेश में हुए 28 सीटों के उपचुनावों में 19 सीटों पर भाजपा उम्मीदवारों की विजय से यह संदेश भी मिलता है कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने प्रदेशाध्यक्ष पद पर वी. डी शर्मा की नियुक्ति का फैसला करते समय उनसे जो अपेक्षाएं की थीं उनको पूरा करने में वे पूरी तरह समर्थ और सक्षम हैं। ये उपचुनाव भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष के रूप में वी. डी शर्मा का पहला चुनावी इम्तहान थे जिसमें वे खरे उतरे।
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पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ द्वारा सिंधिया समर्थक भाजपा उम्मीदवार इमरती देवी के बारे में दिए गए एक बयान को भाजपा ने एक चुनावी मुद्दा बनाने की पुरजोर कोशिश जिस पर कमलनाथ को खेद व्यक्त करने के विवश होना पड़ा परंतु यह भी कम आश्चर्यजनक नहीं है कि खुद इमरती देवी लगभग 8 हजार के अंतर से चुनाव हार गईं। पूर्ववर्ती कमलनाथ सरकार की किसानों की कर्जमाफी योजना भी इन उपचुनावों में भाजपा का बडा चुनावी मुद्दा थी।
कमलनाथ ने सिंधिया गुट के विधायकों के दल परिवर्तन के पीछे जिस कथित प्रलोभन को चुनावी मुद्दा बनाया था उसका कांग्रेस को कोई लाभ नहीं हुआ। कांग्रेस पार्टी के प्रचार अभियान की बागडोर संभालने वाली कमलनाथ और दिग्विजयसिंह की जोडी ने पार्टी प्रत्याशियों की जीत के जो अतिरंजित दावे किए उनके कारण पार्टी अब जिस तरह असहज स्थिति का सामना करने के लिए विवश है उसके बारे में अनुमान लगाना कठिन नहीं है।
आश्चर्य की बात तो यह है कि मतगणना के ठीक पहले तक पूर्व मुख्यमंत्रियों की यह जोडी राज्य की सत्ता में कांग्रेस की वापसी का सुनहरा स्वप्न संजोए बैठी थी जो परिणामों की घोषणा के बाद दिवा स्वप्न साबित हुआ। उपचुनावों में बसपा उम्मीदवारों की उपस्थिति ने भी लगभग पांच सीटों पर कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फेरने में अहम भूमिका निभाई।
सारे देश का ध्यान आकर्षित करने वाले मध्यप्रदेश विधानसभा के इन उपचुनावों के परिणामों ने मुख्यमंत्री चौहान की लोकप्रियता पर एक बार फिर मुहर लगा दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन परिणामों के बाद प्रदेश की जनता के प्रति आभार जताते हुए आशा व्यक्त की है कि ‘शिवराज जी के नेतृत्व में प्रदेश में विकास की यात्रा और तेज गति से आगे बढेगी।’
इसमें संदेह नहीं कि मध्यप्रदेश में संपन्न 28 विधानसभा उपचुनावों के परिणामों ने पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की दृष्टि शिवराज सिंह चौहान और पार्टी प्रदेशाध्यक्ष बी.डी शर्मा का राजनीतिक कद और ऊंचा कर दिया है। मध्यप्रदेश मे सत्ता परिवर्तन के सूत्रधार और राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया को ऩिकट भविष्य में केंद्रीय मंत्रमंडल में शामिल किए जाने की संभावनाएं भी बलवती हो उठी हैं।
दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी में प्रदेशाध्यक्ष और विधानसभा में विपक्ष के नेता पद के रूप में दोहरी जिम्मेदारी संभाल रहे पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ पर अब एक पद छोड़ने के लिए दबाव बढ़ सकता है।
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