जुबिली न्यूज़ डेस्क
मुंबई। देश की तीसरी सबसे बड़ी विधानसभा महाराष्ट्र का चुनावी बिगुल बज चुका है। राजनीतिक पार्टियां अपनी गुणा गणित में लग गयी है। क्या पांच महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में आये परिणाम का असर विधानसभा के चुनाव में बरकरार रह पायेगा या फिर शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस और कांग्रेस जैसे विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना के सामने चुनौती देने की स्थित में है। या फिर क्या सूखे, बाढ़ और उद्योगों की मंदी जैसे मुद्दे राष्ट्रवाद और धारा 370 के सामने टिक पाएंगे? क्या 2014 का अपना प्रदर्शन शिवसेना-बीजेपी दोहरा पाएंगे या सालों से महाराष्ट्र की सत्ता मे रहे कांग्रेस-एनसीपी फिर से उभर कर आएंगे? या फिर देश में चल रही राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की हवा महाराष्ट्र का रुख तय करेगी? लेकिन इस सबसे पहले बीजेपी और शिवसेना में जारी गठबंधन की खींच तान एक बार फिर से गठबंध का रूप अख्तियार कर चुवावी मैदान में साथ साथ उतरेगी?
वैसे तो बीजेपी और शिवसेना के गठबंधन में महाराष्ट्र मे बनी यह दूसरी सरकार हमेशा से इन दोनों मित्र-दलों के झगड़ों की खबरें सुर्खियों में रहती है। शिवसेना सत्ता मे शामिल रही मगर बीजेपी की राजनीतिक और आर्थिक नीतियों के खिलाफ हमेशा आक्रामक रही, जितना शायद विपक्षी दल भी नही थे। चाहे वह नोटबंदी का फैसला हो या फिर मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन लाने का फैसला या फिर मुंबई मेट्रो की आरे कारशेड का विरोध, शिवसेना कई बार विरोध में खड़ी नज़र आयी है।
इन पिछले पांच सालों में राज्य में हुए लगभग सभी चुनावों मे बीजेपी और शिवसेना जीतते गए चाहे पंचायत के चुनाव हो, या फिर नगरपालिका और महानगरपालिका के चुनाव, शिवसेना-बीजेपी अलग-अलग लड़े। लेकिन विपक्षी दलों को मौका नही मिला। मुंबई महानगपालिका में जबरदस्त टक्कर का मुकाबला हुआ। ऐसा लगा कि सालों मायानगरी में काबिज रही शिवसेना की मुंबई की सत्ता चली जाएगी लेकिन शिवसेना ने पार्षदों की गिनती में अपने 2 पार्षद ज़्यादा के लेकर एक बार फिर मुंबई पर कब्ज़ा कर लिया और झगड़ो के बावजूद शिवसेना सरकार मे बनी रही। सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप भी कई बार लगने के बाद राजनीतिक उठापटक भी देखने को मिली।
सरकार मे नंबर टू रहे और बीजेपी ने राज्य के वरिष्ठ नेता एकनाथ खडसे को ज़मीन के मामले में इस्तीफा देना पड़ा। पंकजा मुंडे, विनोद तावडे जैसे मंत्रियों पर भी विपक्षियों ने आरोप लगाए, मगर उनकी कुर्सी बची रही। महाराष्ट्र में बीते पांच साल में बड़े किसान आंदोलन हुए। आंदोनल की वजह से राज्य सरकार को किसानों की कर्ज़ माफी की घोषणा भी करनी पड़ी। हालांकि इस योजना को लेकर किसानों की कई शिकायते भी हैं। एक जनवरी 2018 को पुणे के नज़दीक भीमा-कोरेगांव ऐतिहासिक युद्ध को 200 साल पूरे हो रहे थे तब,हिंसा भड़क गई और पत्थरबाज़ी हुई, गाडियां जलाई गईं। देशभर में इसकी प्रतिक्रिया आई। इसके बाद सरकार को कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा और उसका महाराष्ट्र की राजनीति पर असर भी पड़ा।
पांच महीना पहले हुए लोकसभा चुनाव से कुछ दिन पहले भारतीय जनता पार्टी ने शिवसेना के साथ गठबंधन बना लिया था। तब यह तय हुआ था कि छह महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में सीटों का आधा-आधा बंटवारा होगा। यानी 135-135 सीटें बीजेपी और शिवसेना को मिलेगी। बाकि 18 सीटें सहयोगी दलों के छोड़ी जाएंगी। लेकिन लोकसभा में आये हुए नतीजे के बाद बीजेपी अब शिवसेना को इतनी सीटें देने के लिए तैयार नहीं हो रही है। बीजेपी मे एक गुट कह रहा है कि अकेले अपने दम पर बीजेपी बहुमत ला सकती है। हालांकि, मुख्यमंत्री फडणवीस और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे बार-बार यह कह रहे है कि गठबंधन होकर रहेगा। मुंबई में पिछले हफ्ते हुए एक कर्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने उसी मंच पर बैठे उद्धव ठाकरे को ‘छोटा भाई’ कहा जिसका महाराष्ट्र की राजनीति में गठबंधन में कम जगह मिलती है उसे मुंबई की राजनीति में छोटा भाई कहने का चलन है। वहीँ बीजेपी और शिवसेना के प्रचार प्रसार के तरीके से दिखाई दे रहा है की शायद वह अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ने की भी तैयारी में है। मुख्यमंत्री फडणवीस की अगस्त के महीने में ‘महाजनादेश यात्रा’ की शुरूआत का एलान होते ही शिवसेना के नेता और उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ने ‘जनआशीर्वाद’ यात्रा की शुरुआत कर दी। शिवसेना की तरफ से मुख्यमंत्री पद के लिए आदित्य के नाम की चर्चा भी तेज हो गयी है।
हालाँकि ठाकरे परिवार से अभी तक कोई भी चुनाव नही लड़ा है। लेकिन अब ऐसा होता दिखाई दे रहा है समीकरण ऐसे बनते हुए दिखाई दे रहे है कि आदित्य मुंबई की किसी सीट से चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में हैं। कांग्रेस और एनसीपी के नेता और विधायक बीजेपी और शिवसेना में लगातार शामिल हो रहे है। संख्या इतनी ज्यादा हो चुकी है कि यह भी सवाल उठ रहा है कि क्या बीजेपी और शिवसेना अपने नेताओं को टिकट दे पाएंगे? वहीँ राजनीति को इस तरह से भी देखा जा रहा है कि अगर शिवसेना-बीजेपी का गठबंधन ना हुआ, तो सारी सीटों पर उम्मीदवार खड़े करने के लिए विकल्प हो।
अब ऐसे में देखना यह है कि महाराष्ट्र का एक हिस्सा, मराठवाड़ा, सूखे की चपेट में है और दूसरा हिस्सा, पश्चिमी महाराष्ट्र, हाल में आई बाढ़ से अभी उभर नहीं पाया है। साथ ही मुंबई, पुणे, नासिक, औरंगाबाद जैसे उद्योगक्षेत्र आर्थिक मंदी की मार लगातार झेल रहै है। जब स्थिती ऐसी बनी हुई है तो यह बुनयादी सवाल चुनाव पर असर डालेंगे या फिर राष्ट्रवाद और आर्टिकल 370 जैसे मुद्दे माहौल गरमाएंगे यह भी इस चुनाव में देखना दिलचस्प होगा। इस बार महाराष्ट्र विधान सभा चुनवा में महाराष्ट्र की सत्ता बीजेपी और कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दलों के लिए जितना अहम है तो उतना ही राष्ट्रवादी कांग्रेस और शिवसेना जैसे प्रदेशिक दलों के अस्तित्व का बचाव भी चुनौतीपूर्ण होता दिखाई दे रहा है।
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